भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपने बढ़ते कदमों की रफ्तार बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है। भारतीय अंतरिक्ष संगठन (ISRO) चंद्रयान और मंगलयान के बाद अब शुक्र ग्रह यानी वीनस के लिए मिशन की तैयारी कर रहा है। इसरो ने हमारे सौर मंडल के सबसे गर्म ग्रह शुक्र पर अध्ययन करने के लिए ‘शुक्रयान-1’ मिशन का प्रस्ताव दिया है...
नेशनल डेस्कः भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपने बढ़ते कदमों की रफ्तार बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है। भारतीय अंतरिक्ष संगठन (ISRO) चंद्रयान और मंगलयान के बाद अब शुक्र ग्रह यानी वीनस के लिए मिशन की तैयारी कर रहा है। इसरो ने हमारे सौर मंडल के सबसे गर्म ग्रह शुक्र पर अध्ययन करने के लिए ‘शुक्रयान-1’ मिशन का प्रस्ताव दिया है।
बता दें कि शुक्र ग्रह, धरती का सबसे करीबी ग्रह है, जिसका वायुमंडल यहां के मुकाबले काफी घना है। इसकी सतह का तापमान 470 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। वहीं, धरती के मुकाबले शुक्र ग्रह पर दबाव 90 गुना ज्यादा है। ये स्थितियां इंसानों और अंतरिक्षयानों के लिए बहुत दुर्गम हैं। हालांकि, एक ताजा अध्ययन में इस ग्रह पर जीवन के संकेत मिले हैं।
दरअसल, सतह पर बेहद गर्म शुक्र ग्रह पर जैसे-जैसे ऊपर की ओर जाएंगे तो तापमान और दबाव सामान्य होता जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार शुक्र की सतह के 50 किलोमीटर ऊपर का ताप और दाब धरती जैसा है। इसरो ने जो प्रस्ताव रखा है उसमें ग्रह का चक्कर लगाया जाएगा और वहां के वायुमंडल का अध्ययन किया जाएगा।
शुक्र की परिक्रमा व वायुमंडल का होगा अध्ययन
जानकारी के अनुसार इस मिशन के लिए बनाए जाने वाले अंतरिक्षयान को सोलन रेडिएशन (सौर विकिरण) और सोलर विंड (सौर हवाएं) के बीच इसरो के अबसे आधुनिक जीएसएलवी मार्क-3 के साथ लॉन्च किया जाएगा। इस पर भारत के 16 और अन्य देशों के सात पेलोड होंगे जो शुक्र की परिक्रमा करेंगे और चार साल तक उसका अध्ययन करेंगे।
शुक्र पर मिले हैं फॉस्फीन और ओजोन के निशान
उल्लेखनीय है कि शुक्र ग्रह से संबंधित एक खोज के रूप में वैज्ञानिकों को इसी साल अच्छी खबर मिली थी। सितंबर में अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञानियों के एक दल को शुक्र ग्रह के वायुमंडल में फॉस्फीन गैस के प्रमाण मिले थे। इससे पहले यूरोपीय अंतरीक्ष एजेंसी ने अपने मिशन 'वीनस एक्सप्रेस' में शुक्र के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन के निशान मिले थे।
मिशन को लेकर रूस और स्वीडन भी आए साथ
इस मिशन में रूस की सरकारी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोसोमोस और रूस के वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र लेटमोस एटमॉस्फियर्स के भी सहयोग कर रहा है। वहीं, स्वीडन ने भी इससे जुड़ने का निर्णय किया है। रूस जहां वीनस इन्फ्रारेड एटमॉस्फेरिक गैसेज लिंकर बनाने में में मदद कर रहा है। वहीं, स्वीडन ग्रह पर खोज करने के लिए एक विशेष उपकरण उपलब्ध कराएगा।
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