Edited By Seema Sharma,Updated: 11 Jul, 2019 11:30 AM
‘बिक्रम और बेताल’ का किस्सा पुराना हुआ। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की उपलब्धियों का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह एक कदम और आगे बढऩे जा रहा है। इसरो मिशन चंद्रयान-2 से ‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’ की नई गाथा लिखने जा रहा है।
नेशनल डेस्कः ‘बिक्रम और बेताल’ का किस्सा पुराना हुआ। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की उपलब्धियों का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह एक कदम और आगे बढऩे जा रहा है। इसरो मिशन चंद्रयान-2 से ‘विक्रम’ और ‘प्रज्ञान’ की नई गाथा लिखने जा रहा है। अगले सप्ताह चंद्रयान-2 अभियान शुरू होगा और 6-7 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर दो क्रेटर्स के बीच की सतह पर लैंडर ‘विक्रम’ उतरेगा। लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम अम्बालाल साराभाई के नाम पर रखा गया है। चांद की सतह पर घूम कर जानकारिया जुटाने वाले रोबोट का नाम प्रज्ञान संस्कृत के शब्द प्रज्ञा से बना है, जिसका अर्थ बुद्धि है।
ऐसे किया स्थान का चयन
चंद्रयान-2 से जुड़े वैज्ञानिकों ने नासा के उपग्रह लूनर रीकॉन्सिएंस ऑर्बिटर तथा जापान के कगुया लूनर ऑर्बिटर से जुटाए गए डाटा का अध्ययन किया। इसके बाद दो जगहों को चुना गया। पहली जगह चांद के दक्षिणी ध्रुव के ऐटकेन बेसिन से 350 किलोमीटर उत्तर में क्रेटर मेंजिनस और सिम्पेलियस के बीच है। अगर लैंडिंग में कुछ दिक्कत होती है तो दूसरी जगह भी पास ही है। इसका खुलासा इसरो के वैज्ञानिक पिछले साल साइंस कान्फ्रेंस में कर चुके हैं। दो स्थान क्यों चंद्रयान-1 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे और इसरो के वैज्ञानिक एम आनंदुरई के अनुसार धरती से 3 लाख 84 हजार किलोमीटर दूर जाकर लैंडिंग होनी है। इसलिए लैंडिंग साइट की कोई गलती होती है तो यह एक किलोमीटर तक हो सकती है। इसलिए दूसरी वैकल्पिक साइट का भी चयन किया गया है।
15 मिनट होंगे कठिन
- परीक्षा के चार दिन तक चांद की 100 किलोमीटर की कक्षा में चक्कर काटने के बाद लैंडर ‘विक्रम’ रोवर ‘प्रज्ञान’ को लेकर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और 30 किलोमीटर गुणा 100 किमी की कक्षा में पहुंचेगा। उस समय ‘विक्रम’ की गति 6120 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी।
- 10 मिनट 30 सैकेंड बाद ‘विक्रम’ चांद के ऊपर 7.4 किलोमीटर की दूरी पर होगा। उस समय इसकी गति 526 किलोमीटर प्रति घंटा होगी।
- अगले 38 सैकेंड में ऊंचाई पांच किलोमीटर रह जाएगी और रफ्तार घटते हुए 331.2 किमी प्रति घंटे तक आ जाएगी।
- अगले 89 सैकेंड में ‘विक्रम’ 400 मीटर की ऊंचाई पर होगा और इसकी रफ्तार करीब-करीब थम जाएगी।
- 400 मीटर की ऊंचाई पर ‘विक्रम’ 12 सैकेंड के लिए थमेगा और सतह की जानकारियां जुटाएगा।
- अगले 66 सैकेंड यह चांद की सतह से 100 मीटर ऊपर होगा और 25 सैकेंड के लिए रुकेगा और तय करेगा कि तय इसी साइट पर उतरना है या वैकल्पिक साइट पर लैंडिंग करनी है।
- 10 मीटर की ऊंचाई से सतह को छूने में में ‘विक्रम’ 13 सैकेंड लेगा।
- जैसे ही ‘विक्रम’ के चारों पैर चांद की सतह को पर होंगे सेंसर इसके पांचों इंजनों को बंद कर देंगे। यह सुरक्षित लैंडिंग होगी
इसलिए चुना दक्षिणी ध्रुव
चांद का यह हिस्सा अधिकतर छाया में रहता है। इसलिए यहां पानी के बर्फ के रूप में मौजूद होने की काफी संभावना है।
15 मिनट बाद मिलेगा पहला फोटो
‘विक्रम’ लैंड करने के 15 मिनट बाद आसपास की सतह का पहला फोटो बेंगलुरु के पास बयालु में स्थित भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क सेंटर को भेज देगा।
‘‘विक्रम तू उतरा तो मैं चला ’’
‘विक्रम’ की सफल लैंडिंग के चार घंटे बाद इसका द्वार खुलकर नीचे की तरफ स्लोव बनाएगा। उसके बाद इसके अंदर से रोवोर ‘प्रज्ञान’ निकल कर चांद की सतह पर चलेगा। यह आधा किलोमीटर तक घूमकर चांद की सतह के बारे में जानकारियां जुटाएगा और विक्रम को भेजेगा।