अंतरिक्ष में भारत की ताकत दिखाते इसरो के सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल्स

Edited By Yaspal,Updated: 06 Sep, 2019 08:35 PM

isro s satellite launch vehicles showing india s strength in space

चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के साथ ही भारत एक बार फिर विश्व पटल पर अपनी धाक जमाने में कामयाब हो जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। दुनिया के कई देश इसरो की सहायता से अपने उपग्रह

नेशनल डेस्कः चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के साथ ही भारत एक बार फिर विश्व पटल पर अपनी धाक जमाने में कामयाब हो जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। दुनिया के कई देश इसरो की सहायता से अपने उपग्रह अंतरिक्ष तक पहुंचा रहे हैं। अमेरिका, यूके, कनाडा, जर्मनी, रिपब्लिक ऑफ कोरिया और सिंगापुर सहित करीब 28 देशों को भारत ऐसी सेवाएं आगे भी देने वाला है।
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इसरो अब तक 115 अंतरिक्ष मिशन पूरे कर चुका है। इसमें दूसरे देशों के उपग्रह भी शामिल हैं। इसरो इन उपग्रहों को पीएसएलवी और जीएसएलवी के जरिए भेजता है। इन दोनों को इसरो ने ही विकसित किया है। पीएसएलवी का पूरा नाम ‘पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ और जीएसएलवी का पूरा नाम ‘जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ है।

क्या है पीएसएलवी?
पीएसएलवी को धरती के ऑब्जर्वेशन या रिमोट सेंसिंग सैटेलाइटों को धरती से 600 से 900 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसके जरिए 1750 किलोग्राम तक की सैटेलाइट स्थापित की जा सकती है। ये सैटेलाइट को समकालिक सूरज की सर्कुलर ध्रुवीय कक्षा (SSCPO) तक पहुंचाने में सक्षम है। SSCPO के अलावा पीएसएलवी का इस्ते माल 1400 किलोग्राम वजन वाली सैटेलाइटों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में पहुंचाने का काम है।
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जीएसएलवी क्या है?
जीएसएलवी को इसरो ने मुख्य तौर पर कम्यूनिकेशन सैटेलाइट्स लॉन्च करने के लिए डिजाइन किया है। इनमें वो सैटेलाइट शामिल हैं, जो जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट यानी 250x36000 किलोमीटर पर स्थापित की जाती है। यहां से सैटेलाइट्स को उसके फाइनल मुकाम तक पहुंचाया जाता है। इसमें मौजूद इंजन सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस अर्थ ऑर्बिट यानी GEO जो 36 हजार किलोमीटर ऊंचाई पर पहुंचाती है। अपनी जियो-सिंक्रोनस नेचर के चलते, सैटेलाइट अपनी ऑर्बिट में एक फिक्स पोजीशन में घूमती है। ये धरती से एक नियत स्थान पर दिखाई देती है।
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इसरो का इतिहास
हमारे देश में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरूआत 1960 के दौरान हुई थी। उस समय अमेरिका में भी उपग्रहों का प्रयोग करने वाले परीक्षण शुरू हो चुके थे। अमेरिकी उपग्रह ‘सिनकॉम-3’ द्वारा प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में टोकियो ओलंपिक खेलों के सीधे प्रसारण ने संचार उपग्रहों की सक्षमता को प्रदर्शित किया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई ने इससे होने वाले लाभों को पहचान लिया।
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डॉ. साराभाई यह मानते थे कि अंतरिक्ष के संसाधनों में इतना सामर्थ्य है कि वह मानव तथा समाज की वास्तविक समस्याओं को दूर कर सकते हैं। अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) के निदेशक के रूप में डॉ. साराभाई ने देश के सभी ओर से सक्षम तथा उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, विचारकों तथा समाजविज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिए एक दल गठित किया।
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डॉ. साराभाई तथा डॉ. रामनाथन के नेतृत्व में इंकोस्पार (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति) की शुरुआत हुई। 1967 में अहमदाबाद स्थित पहले परीक्षणात्मक उपग्रह संचार भू-स्टेशन (ईएसईएस) का प्रचालन किया गया, जिसने भारतीय तथा अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी कार्य किया।
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चंद्रयान-2ः हम चांद पर क्यों जा रहे हैं?
चंद्रमा पृथ्वी का नजदीकी उपग्रह है जिसके माध्यम से अंतरिक्ष में खोज के प्रयास किए जा सकते हैं और इससे संबंध आंकड़े भी एकत्र किए जा सकते हैं। यह गहन अंतरिक्ष मिशन के लिए आवश्यक टेक्नोलॉजी के परीक्षण का केंद्र भी होगा।

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