Edited By Tanuja,Updated: 07 Apr, 2018 05:18 PM
अमरीकी रक्षा विभाग पेंटागन के उच्चाधिकारी और डिफैंस फॉर साउथ एंड साउथईस्ट एशिया के उप-सहायक सचिव जोई फेल्टर ने एक इंटरव्यू में मालदीव में चीन की बढ़ रही गतिविधियों पर चिंता जताते हए कहा कि
वाशिंगटनः अमरीकी रक्षा विभाग पेंटागन के उच्चाधिकारी और डिफैंस फॉर साउथ एंड साउथईस्ट एशिया के उप-सहायक सचिव जोई फेल्टर ने एक इंटरव्यू में मालदीव में चीन की बढ़ रही गतिविधियों पर चिंता जताते हए कहा कि ड्रैगन का मालदीव को शिकंजे में फंसाना अमरीका और भारत दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की प्राथमिकताओं पर ध्यान देने का संकेत दे रही है।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो भारत और अमरीका दोनों के लिए यह रणनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है। जोई फेल्टर ने कहा कि इस क्षेत्र (मालदीव) के आसपास (के देशों में भी) ऐसी ही गतिविधियां देखने को मिल रही हैं जो चिंता पैदा करती हैं। गौरतलब है कि हाल में मालदीव के पूर्व विदेश मंत्री अहमद नसीम ने अपने अमरीकी दौरे के दौरान कहा था कि चीन उसके अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है। उन्होंने बताया था कि मालदीव की जमीन पर चीन कब्जा करता जा रहा है। अहमद नसीम ने आरोप लगाया कि चीन मालदीव में एक अड्डा बना रहा है जिसे एक दिन हथियार और पनडुब्बियां रखने के काम में लाया जा सकता है।
फेल्टर ने कहा कि हर छोटे-बड़े राज्य के अधिकार तभी पूरे किए जा सकते हैं, जब एक स्वतंत्र और खुले इंडिया-पैसिफिक नियम अपनाएं और नियम आधारित आदेश बनाएं जाएं। हालांकि उन्होंने संदेह जताया है कि भारत इन चिंताओं को साझा करता भी है या नहीं। उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के संबंधों में आए दिन तनाव की स्थिति बनी रहती है। मालदीव में अगर चीन बेस बना लेता है तो चीनी पनडुब्बियां भारत के बेहद करीब तक आ जाएंगी जो भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
पिछले महीने मलदीव में एमरजैंसी लगने के दौरान भारत के विरोध पर मालदीव ने आपत्ति जताई थी। इसका एक कारण चीन से उसकी बढ़ती करीबी को भी माना गया। बता दें कि मालदीव भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है। मालदीव के समुद्री रास्ते से निर्वाध रूप से चीन, जापान और भारत को एनर्जी की सप्लाई होती है। चीन का रिकॉर्ड छोटे देशो के खिलाफ खतरनाक रहा है। वह रीपेंमेंट में नाकाम देशों पर अपनी शर्तें थोपता है। कई बार न चाहते हुए भी देशों को अपनी इकोनॉमिक पॉलिसी बदलने के साथ ही चीन को अपने यहां टिकने की जमीन देने के लिए मजबूर हो जाता है। श्रीलंका इसका सबसे बड़ा उदारण है। कम्बोडिया, नाइजीरिया के साथ भी वह ऐसा ही कर चुका है।