आज निकलेगी भव्य श्री जगन्नाथ रथ यात्रा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Jul, 2019 02:56 PM

आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है। हर साल इस दिन ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। इसका समापन आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है।

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आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है। हर साल इस दिन ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। इसका समापन आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है। ये उत्सव 9 दिनों तक चलता है। इस रथ यात्रा में भाग लेने देश-विदेश से कृष्ण भक्त आते हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर से इस यात्रा का आरंभ होता है, तीन बड़े-बड़े रथ सज-धज कर तैयार होते हैं, जिन्हें मोटी-मोटी रस्सियों से भक्त खींचते हैं। रथ यात्रा में सबसे पहले जगन्नाथ जी के बड़े भाई बलराम जी, फिर बहन सुभद्रा जी और अंत में जगन्नाथ जी का रथ चलता है।

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जगन्नाथ मंदिर, जो भगवान जगन्नाथ को समर्पित हिन्दुओं के चार पवित्रतम धामों में से एक है, समुद्र तट पर भुवनेश्वर से 60 कि.मी. की दूरी पर है। 12वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। यहां भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और बड़े भाई बल्लभ के साथ विराजमान हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा करते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटी बद्रीनाथ धाम में स्नान, पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र धारण, पुरी में भोजन और दक्षिण में रामेश्वरम में विश्राम करते हैं। पद्म पुराण के अनुसार श्री जगन्नाथ के अन्न भक्षण से सबसे अधिक पुण्य मिलता है।

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कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति पुरी में तीन दिन-तीन रात ठहर जाए तो जन्म-मरण के चक्कर से मुक्ति पा सकता है। यहां केवल हिन्दू धर्मावलम्बियों को प्रवेश मिलता है। वर्ष में एक बार जुलाई माह में यहां भव्य रथ यात्रा निकलती है। मन्दिर का मुख्य द्वार सिंह द्वार है। यहां लाखों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। मुख्य मन्दिर के पास अन्य देवी-देवताओं के भी मन्दिर हैं। 

यहां कुछ अनूठी विशेषताएं भी हैं, जैसे मन्दिर में लगा ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह सामने लगा दिखेगा। मन्दिर के गुंबद के ऊपर पक्षी भी नहीं उड़ते। इस मंदिर को 27 बार यवनों ने लूटने का प्रयास किया परंतु उनके मंदिर पर धावा बोलने से पहले ही भगवान की मूर्तियों को अन्यत्र कभी किसी अनजान गांव में, तो कभी चिलिका झील के किसी टापू पर छिपा कर बचा लिया जाता रहा। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत है। 

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पुरी से कुछ दूर चंद्रभागा तट है, जहां पूरे रास्ते मेें छोटे-बड़े तालाब हैं, उनमें खिले श्वेत व रक्तकमल, लंबे झूमते नारियल के वृक्ष। छोटे, मगर सुंदर घर और हर घर के बाहर मां तुलसी का बिरवा, जिसका चौरा खूब सजा-संवरा हुआ। तुलसी के बिरवे को पूर्ण नारी शृंगार में हर घर में देखना एक अलग अनुभव था। कहते हैं भगवान जगन्नाथ की पूजा तुलसी के बिना अधूरी रहती है। इसीलिए मां की सेवा कर पिता को प्रसन्न करने का, उनकी कृपा पाने का कितना सहज-सरल ममता भरा उपाय है ये। 

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