जयपुर: कोटा अस्पताल में एक महीने में 77 बच्चों की मौत, डॉक्टरों ने लापरवाही से किया इनकार

Edited By Seema Sharma,Updated: 27 Dec, 2019 12:11 PM

jaipur 77 children died in a month in kota hospital

राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में इस महीने 77 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है जिससे राज्य में हड़कंप मचा हुआ है। पिछले तीन दिनों में 10 बच्चों की मौत हो चुकी है। इसमें नवजात शिशु भी शामिल हैं। एक महीने में 77 बच्चों की मौत से अस्पताल...

जयपुर/कोटा: राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में इस महीने 77 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है जिससे राज्य में हड़कंप मचा हुआ है। पिछले तीन दिनों में 10 बच्चों की मौत हो चुकी है। इसमें नवजात शिशु भी शामिल हैं। एक महीने में 77 बच्चों की मौत से अस्पताल प्रशासन की नींद नहीं खुली है और वह इन आंकड़ों को नॉर्मल ही बता रहा है। बच्चों की मौत पर अस्पताल प्रशासन ने डॉक्टरों की ओर से किसी तरह की लापरवाही से इनकार किया है।

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अस्पताल ने दी सफाई
बच्चों की मौतों की जांच के लिए गठित एक कमिटी ने कहा कि अस्पताल के सारे उपकरण सुचारू रूप से चल रहे हैं, इसलिए अस्पताल की तरफ से लापरवाही का सवाल नहीं पैदा होता। बच्चों की मौत पर अस्पताल की ओर से सफाई दी गई कि जिन 10 बच्चों की मौत हुई है उनकी स्थिति काफी गंभीर थी और वे वेंटिलेटर पर थे। अस्पताल ने यह भी दावा किया कि 23 और 24 दिसंबर को जिन 5 नवजात शिशुओं की मौत हुई वे सिर्फ एक दिन के थे और भर्ती करने के कुछ ही घंटों के अंदर उन्होंने आखिरी सांस ली। रिपोर्ट में कहा गया कि वे हाइपॉक्सिक इस्केमिक इंसेफ्लोपैथी से पीड़ित थे, ऐसे अवस्था में नवजातों के मस्तिष्क में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती। अस्पताल प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि 23 दिसंबर को पांच महीने के बच्चे की गंभीर निमोनिया की वजह से मौत हुई जबकि 7 साल के एक बच्चे की एक्यूट रेस्पिरटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम यानी सांस लेने में दिक्कत की वजह से मौत हुई। इसी दिन एक डेढ़ महीने के बच्चे की मौत भी हो गई जो जन्म से ही दिल की बीमारी से पीड़ित था। इनके अलावा 24 दिसंबर को दो महीने के बच्चे की गंभीर एस्पिरेशन निमोनिया और एक अन्य डेढ़ महीने के बच्चे की ऐस्पिरेशन सीजर डिसऑर्डर की वजह से मौत हुई।

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बच्चों की मौत पर अस्पताल अधीक्षक डॉ. एसएल मीणा ने बताया कि जांच के बाद सामने आया कि 10 बच्चों की मौत नॉर्मल थी न कि अस्पताल प्रशासन की लापरवाही। अस्पताल के पीडिएट्रिक विभाग के अमृत लाल बैरवा ने कहा कि बच्चों को गंभीर अवस्था में अस्पताल लाया गया था। नैशनल एनआईसीयू रिकॉर्ड के अनुसार, शिशुओं की 20 फीसदी मौत स्वीकार्य है जबकि कोटा में शिशु मृत्यु दर 10 से 15 फीसदी है जो खतरनाक नहीं है क्योंकि ज्यादातर बच्चों को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था। इसके अलावा बूंदी, बारां, झालावाड़ और मध्य प्रदेश से भी गंभीर हालत में बच्चों को यहां लाया गया था।

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