'नाटो का खाका भारत पर लागू नहीं होता', जयशंकर ने NATO में शामिल होने की संभावनाओं को किया खारिज

Edited By Yaspal,Updated: 09 Jun, 2023 06:52 PM

jaishankar rules out possibilities of joining nato

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होने की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा कि नाटो का खाका भारत पर लागू नहीं होता

नेशनल डेस्कः विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होने की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा कि नाटो का खाका भारत पर लागू नहीं होता। अमेरिकी कांग्रेस कमेटी की सिफारिश पर एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि नाटो की शर्तें भारत पर लागू नहीं होती हैं। जयशंकर मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल पूरा होने पर नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। हाल ही में अमेरिका की ओर से कहा गया था कि भारत के नाटो में शामिल होने के लिए दरवाजे खुले हैं।

आपको बता दें, कि नाटो 31 देशों का सैन्य गठबंधन है, जिसमें 29 यूरोपीय देश और दो उत्तरी अमेरिका के देश शामिल हैं। यह एक इंटर-गवर्मेंटल सैन्य गठबंधन है, जिसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य माध्यमों से अपने सदस्यों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है। नाटो में शामिल होने से भारत का इनकार भारत ने नाटो में शामिल होने से उस वक्त इनकार किया है, अमेरिकी कांग्रेस की एक शक्तिशाली कमेटी ने भारत को नाटो प्लस में शामिल करने की मजबूत सिफारिश की थी।

अमेरिकी कांग्रेस की कमेटी ने कहा था, कि एशिया में नाटो प्लस में भारत को शामिल करने की मजबूत कोशिश की जानी चाहिए। नाटो प्लस, नाटो का ही एक एक्सटेंशन है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इजरायल और दक्षिण कोरिया हैं और ये एक सुरक्षा व्यवस्था है, जिसे नाटो से टेक्नोलॉजिकल, खुफिया और हथियारों की मदद मिलती है।

भारत को बोर्ड पर लाने से इन देशों के बीच सहज खुफिया जानकारी साझा करने में सुविधा होगी और भारत बिना किसी समय के नवीनतम सैन्य तकनीक तक पहुंच बना सकेगा। हालांकि, प्रस्ताव को खारिज करते हुए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, कि "नाटो का खाका भारत पर लागू नहीं होता है।"

डिप्टी एनएसए ने नाटो में शामिल होने पर दी प्रतिक्रिया
इससे पहले डिप्टी एनएसए विक्रम मिस्री ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारत सैन्य गठबंधनों का हिस्सा बनने में यकीन नहीं रखता है, हालांकि वह जिन तंत्रों का हिस्सा है, वहां स्वयं को बराबर के सहभागी के रूप में देखता है। ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज' (आईआईएसएस) द्वारा आयोजित ‘सांगरी-ला डायलॉग' में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए मिस्री ने कहा कि इनमें से कई तंत्रों के मूल में समानता है।  

मिस्री ने कहा, ‘‘भारत सैन्य गठबंधनों का हिस्सा बनने में यकीन नहीं रखता है। लेकिन, हमारी सैन्य और रक्षा क्षेत्रों में विभिन्न देशों के साथ साझेदारी है।'' उन्होंने कहा, ‘‘गठबंधनों का अलग ही संकेतक है और उनकी व्याख्या भी बहुत अलग है। हम किसी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। हम जिन तंत्रों का हिस्सा हैं, वहां स्वयं को बराबरी के साझेदार के रूप में देखते हैं।''

गौरतलब है कि इस कार्यक्रम में चीन के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने भी हिस्सा लिया। चीन में भारत के राजदूत रह चुके मिस्री ने हिन्द महासागर में भारत-अमेरिका की साझेदारी पर कहा, ‘‘हर जगह साझेदारी मुक्त और समावेशी होनी चाहिए और अगर मैं गलत नहीं हूं तो यह भारत के हिन्द-प्रशांत विचारधारा का भी मूल है।''

मिस्री ने कहा, ‘‘यह स्वतंत्र और मुक्त हिन्द-प्रशांत की हमारी व्याख्या है। यह वास्तविक रूप से हमारी सोच और इन विषयों पर हमारी विचारधारा के अनुरुप है।'' इस दौरान, चीनी प्रतिनिधि के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए मिस्री ने कहा, ‘‘चूंकि आपने भागीदारी के रूप में मुक्त और समावेशी विचार की बात की है, मैं आशा करता हूं कि इन सिद्धांतों का हर जगह और हर किसी के द्वारा, विभिन्न भौगोलिक स्थानों पर भी समान रूप से सम्मान किया जाएगा।'' 
 

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