GDP को लेकर जेतली का जवाब, कहा- UPA के कारण खतरे में बैंक

Edited By vasudha,Updated: 20 Aug, 2018 11:14 AM

jaitley says bank in danger due to upa

केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली ने सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को लेकर कांग्रेस को करारा जवाब दिया है। जेतली ने कहा कि वृद्धि दर तेज करने की संप्रग सरकार की नीतियों ने वृहद-आर्थिक अस्थिरता पैदा कर दी थी...

नेशनल डेस्क: केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली ने सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को लेकर कांग्रेस को करारा जवाब दिया है। जेतली ने कहा कि वृद्धि दर तेज करने की संप्रग सरकार की नीतियों ने वृहद-आर्थिक अस्थिरता पैदा कर दी थी। उन्होंने कहा कि 2004-08 तक का दौर वैश्विक आर्थिक तेजी का दौर था और उसका फायदा भारत समेत सभी अर्थव्यवस्थाओं को मिला था।
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केंद्रीय मंत्री ने जीडीपी की नयी श्रृंखला की पिछली कडिय़ों के अनुमानों पर ताजा रपट को लेकर छिड़ी बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि संप्रग ने राजकोषीय अनुशासन भंग कर दिया था। साथ ही बैंकों को अंधाधुंध कर्ज बांटने की जोखिमभरी सलाह दी थी। जीडीपी की पिछली कडिय़ों के इन अनुमानों का संकेत है कि मनमोहन सिंह सरकार के समय अर्थव्यवस्था की रफ्तार बेहतर थी।  जेतली ने फेसबुक पर एक लेख में कहा कि राजकोषीय अनुशासन के साथ समझौता किया गया और बैंकिंग प्रणाली को अंधाधुंध कर्ज बांटने की जोखिमभरी सलाह दी गई और यह नहीं देखा गया कि अंतत: इससे बैंक खतरे में पड़ जाएंगे। उस पर भी 2014 में जब संप्रग सरकार सत्ता से बेदखल हुई तो उसके आखिरी के तीन वर्षों में वृद्धि दर साधारण से भी नीचे थी।

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इस समय राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) की एक उपसमिति द्वारा जीडीपी की नयी श्रृंखला की पीछे की कडिय़ों को तैयार करने के संबंध में जारी रपट को लेकर पक्ष-विपक्ष के बीच बहस छिड़ी हुई है। नयी श्रृंखला के लिए 2011-12 को आधार वर्ष बनाया गया है जबकि पिछली श्रृंखला 2004-05 को आधार वर्ष मानकर तैयार की गई थी। वास्तविक क्षेत्र के आंकड़ों पर इस उपसमिति की ताजा रपट के अनुसार मनमोहन सरकार के कार्यकाल में 2006-07 के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर 10.08 तक पहुंच गई थी जो 1991 में उदारीकरण शुरू होने के बाद जीडीपी वृद्धि दर का सर्वोच्च आंकड़ा है।

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जेतली ने कहा कि वृद्धि बढ़ाने की संप्रग सरकार की नीतियों से वृहद-आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई। इस तरह उस वृद्धि की गुणवत्ता खराब रही। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में 1999 से लेकर 2017-18 तक के राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति, बैंक ऋण वितरण और चालू खाते के आंकड़ों का हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि 2003-04 वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए तेजी का दौर था। इससे वैश्विक वृद्धि को बल मिला। ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन अच्छा रहा और सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर भी ऊंची हो गई थी।

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