जम्मू हित की बात : तमाम दलों में फैलने लगा असंतोष

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 May, 2018 07:57 PM

jammu peoples are feeling annoyed by govt policies

पिछले कुछ समय में जम्मू एवं कश्मीर दोनों संभागों और डोगरा एवं कश्मीरी हितों को लेकर तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के बीच मतभेद की खाई और चौड़ी हुई है।

जम्मू  ( बलराम सैनी) : पिछले कुछ समय में जम्मू एवं कश्मीर दोनों संभागों और डोगरा एवं कश्मीरी हितों को लेकर तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के बीच मतभेद की खाई और चौड़ी हुई है। यही कारण है कि विभिन्न पार्टियों के कश्मीर प्रेम से परेशान होकर जम्मू के नेता अपनी ही पार्टियों के खिलाफ मुखर होने पर विवश हुए हैं। इसके उदाहरण के तौर पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री शामलाल शर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व मंत्री चौ. लाल सिंह, पूर्व पी.डी.पी. नेता एवं पूर्व एम.एल.सी. विक्रमादित्य सिंह और नैशनल कांफ्रैंस के पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष शांतिस्वरूप के नाम लिए जा सकते हैं, जिन्होंने पार्टी लाइन से हटकर न केवल जम्मू हित की बात की, बल्कि अपने पदों को कुर्बान करने में भी झिझक महसूस नहीं की।


अपने पद कुर्बान करने वाले नेताओं की कड़ी में ताजा उदाहरण पूर्व मंत्री शामलाल शर्मा का है, जिन्होंने कांग्रेस के कश्मीर मोह के चलते जम्मू के हितों को लेकर अपनी बात न सुने जाने पर पार्टी के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। शामलाल शर्मा  जब उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नैशनल कांफ्रैंस-कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, तब भी जम्मू संभाग के हितों और राष्ट्रीय हितों को लेकर राज्य मंत्रिमंडल की बैठकों, राज्य विधानसभा और आम जनता के बीच तमाम मंचों पर कई बार अपनी ही सरकार को घेरते हुए नजर आते थे। मंत्री पद जाने के बाद जब वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए तो उन्होंने पार्टी फोरम पर जम्मू के मुद्दों को उठाना शुरू कर दिया, लेकिन कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गुलाम अहमद मीर और पार्टी के ज्यादातर विधायक कश्मीर घाटी से संबंधित होने के कारण उनकी बात को तरजीह नहीं दी जा रही थी। इसी बात से परेशान होकर उन्होंने 21 मई को पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में आयोजित एक समारोह के दौरान वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। 


इसी प्रकार, कठुआ दुष्कर्म एवं हत्याकांड की सी.बी.आई. जांच को लेकर धरने पर बैठे हिन्दू एकता मंच के नेताओं के साथ खड़े होकर उनकी मांग का समर्थन करने पर भाजपा द्वारा वन एवं पर्यावरण मंत्री चौ. लाल सिंह और उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा से इस्तीफा ले लिया गया। गंगा तो भाजपा के अनुशासित सिपाही होने के नाते चुपचाप घर बैठ गए, लेकिन चौ. लाल सिंह ने इस मौके का फायदा उठाकर लोगों के सरकार के प्रति गुस्से को भुनाने की ठान ली। करीब महीनाभर जम्मू संभाग में जनसभाएं करके जनसंपर्क अभियान चलाने के बाद उन्होंने 20 मई को हीरानगर के कूटा मोड़ में जो ऐतिहासिक रैली की, उसने सभी पार्टियों को यह सोचने पर विवश कर दिया कि जम्मू के लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करना जोखिमभरा हो सकता है। इससे पूर्व, नैशनल कांफ्रैंस द्वारा हीरानगर में अपने ब्लॉक अध्यक्ष शांति स्वरूप को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पिछले करीब 3 दशकों से नैशनल कांफ्रैंस के साथ जुड़े शांति स्वरूप का कसूर इतना था कि उन्होंने कठुआ कांड की सी.बी.आई. जांच की मांग कर रहे हिन्दू एकता मंच का समर्थन किया था। 


जम्मू और डोगरा हितों के लिए अपने पद की कुर्बानी देने वालों में एक प्रमुख नाम विक्रमादित्य सिंह का है। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के पौत्र विक्रमादित्य सिंह ने वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले ही मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुवाई में पी.डी.पी. के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। पार्टी द्वारा उन्हें एम.एल.सी. मनोनीत करवाया गया, लेकिन जब उनके दादा महाराजा हरि सिंह के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में सार्वजनिक अवकाश घोषित करने को लेकर जम्मू में आंदोलन हुआ तो पी.डी.पी. नेतृत्व ने इससे किनारा कर लिया। इसके बावजूद पी.डी.पी. का हिस्सा बने रहने के कारण विक्रमादित्य सिंह की खूब किरकिरी हुई, जिसके चलते उन्होंने न केवल एम.एल.सी. पद, बल्कि पी.डी.पी. की प्राथमिक सदस्यता तक से इस्तीफा दे दिया। ये तो कुछ उदाहरण हैं, लेकिन ऐसे नेताओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है जो अपनी पार्टियों के कश्मीर प्रेम और जम्मू की अनदेखी से परेशान तो हैं, लेकिन सत्ता सुख और पार्टी में उच्च पदों पर आसीन होने के कारण जुबान खोलने से परहेज कर रहे हैं। 

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