शिक्षा से सियासत तक: हर क्षेत्र में अव्वल रहे एनडी तिवारी ने कभी पीछे नहीं देखा

Edited By Anil dev,Updated: 19 Oct, 2018 12:43 PM

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मशहूर ब्रिटिश अर्थशास्त्री हेराल्ड जोसेफ लॉस्की के शिष्य और जवाहर लाल नेहरू की पसंद एनडी तिवारी ने छात्र जीवन में ही सियासी ककहरा सीख लिया था। एक तरह से उन्होंने राजनीति और पढ़ाई एक साथ की। भले ही उनका व्यक्तिगत जीवन विवादों में घिरा रहा।

देहरादून(संजय झा): मशहूर ब्रिटिश अर्थशास्त्री हेराल्ड जोसेफ लॉस्की के शिष्य और जवाहर लाल नेहरू की पसंद एनडी तिवारी ने छात्र जीवन में ही सियासी ककहरा सीख लिया था। एक तरह से उन्होंने राजनीति और पढ़ाई एक साथ की। भले ही उनका व्यक्तिगत जीवन विवादों में घिरा रहा। परंतु सियासी तौर पर विकास पुरुष के रूप में वह हमेशा हिंदुस्तान के जेहन में जिंदा रहेंगे। नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था। उनके पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में काम करते थे। एनडी तिवारी की शिक्षा एमबी स्कूल हल्द्वानी, इएम हाई स्कूल बरेली और सीआरएसटी हाई स्कूल नैनीताल में हुई। अपने जीवन के प्रारंभिक काल में ही उन्होंने राजनीति में हिस्सा लेना शुरू कर दिया और भारत के स्वाधीनता आंदोलन में भी भाग लिया।

पहली बार नैनीताल से बने विधायक 
 आजादी के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए पहली बार 1952 में मतदान हुआ। उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और नैनीताल सीट से चुनाव जीत गये। पहली बार एमएलए बने। वर्ष 1957 में वह दोबारा नैनीताल से चुनाव जीते और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। 1963 में एनडी तिवारी ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया और 1965 में काशीपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। इस बार उन्हें मंत्री बनाया गया। 1968 में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू युवा केन्द्र की स्थापना की। 1969 से 71 के तक इंडियन यूथ कांग्रेस के पहले अध्यक्ष मनोनीत हुए। वह उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री नियुक्त हुए। सबसे पहले जनवरी 1976 से अप्रैल 1977 तक, अगस्त 1984 से सेप्टेम्बर 1985 तक और जून 1988 से दिसम्बर 1988 तक मुख्यमंत्री रहे। 1980 में सातवीं लोकसभा के लिए चुने गये और केन्द्रीय मंत्री बनाये गये। 1988 तक राज्यसभा सदस्य रहे। इस दौरान उद्योग मंत्री रहे। 1986 में पेट्रोलियम मंत्री बने। इसी दौरान अक्टूबर 86 से जुलाई 87 तक वह विदेश मंत्री भी बनाये गये। जून 1988 तक वित्त व वाणिज्य मंत्री रहे। उसके बाद जून 88 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए।

एनडी की सबसे बड़ी सियासी हार 
1990 के दशक के प्रारंभ में वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन यह बाजी नरसिंहराव जीत गये। इसका एक प्रमुख कारण यह था कि तिवारी 1991 का चुनाव महज 800 मतों से चुनाव हार गए। यह एनडी की सबसे बड़ी सियासी हार थी। 1994 में उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और नई पार्टी बनाई। 

पितृत्व विवाद
 वर्ष 2008 में रोहित शेखर ने एनडी तिवारी को अपना पिता बताते हुए अदालत में एक याचिका दी। रोहित ने इसके लिए एनडी तिवारी का डीएनए टेस्ट कराने का आदेश अदालत से लिया। बाद में पितृत्व विवाद का फैसला आया और एनडी को रोहित शेखर का बायोलोजिकल पिता घोषित किया गया। तीन मार्च 2014 को उन्होंने रोहित शेखर को अपना बेटा मान लिया। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे नारायण दत्त तिवारी के नाम ऐसा रिकॉर्ड है जो शायद ही टूटे। वह दो राज्यों के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड।

वर्षों पहले बनाई थी विकास पुरुष की छवि
नारायण दत्त तिवारी वास्तव में विकासवादी नेता थे, जिन्होंने यूपी के विकास को नई दशा-दिशा दी और उत्तराखंड के विकास का रोडमैप तैयार किया। ये तिवारी ही थे, जिन्होंने न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) की कल्पना की और उसे जमीन पर उतारा। उस वक्त वो यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। आज नोएडा, यूपी का सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जिला है। नोएडा की तरह ही यूपी के कई इलाकों में औद्योगिक क्षेत्र बसाए गए ताकि तरक्की को रफ्तार दी जा सके। छोटे और मझोले कारोबारियों को मदद के जरिए उन्होंने यूपी के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान दिया।

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