BJP-जदयू गठबंधन तोडऩा चाहते थे प्रशांत किशोर

Edited By Anil dev,Updated: 01 Feb, 2020 10:09 AM

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जदयू के एक बड़े नेता नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहते हैं कि चुनाव परिणाम के बाद प्रशांत किशोर ने भाजपा-जदयू गठबंधन को तोडऩे की साजिश की। इसके लिए वह कई तरह की गतिविधियों में लगे रहे जिसकी जानकारी नीतीश कुमार तक पहुंचती रही। जदयू के एक बड़े...

पटना: जदयू के एक बड़े नेता नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहते हैं कि चुनाव परिणाम के बाद प्रशांत किशोर ने भाजपा-जदयू गठबंधन को तोडऩे की साजिश की। इसके लिए वह कई तरह की गतिविधियों में लगे रहे जिसकी जानकारी नीतीश कुमार तक पहुंचती रही। जदयू के एक बड़े नेता ने बताया कि लोकसभा चुनाव के समय से ही प्रशांत किशोर ने गड़बडिय़ां शुरू कीं। वह ट्वीट भी करते थे। इन्होंने खुद नीतीश कुमार से कहा कि भाजपा के लोग जदयू वाली सीटों पर हैल्प नहीं करेंगे। इसका मुख्य कारण यही था कि पी.के. के लिए इस अलायंस में कोई रोल था ही नहीं। उन्हें लगा कि यहां दाल गलने वाली नहीं है, तभी वह ममता और केजरीवाल की तरफ भागे। प्रशांत किशोर जितना कार्य करते थे उससे ज्यादा वसूलने की कोशिश करते थे। वह 2014 में मोदी के लोकसभा चुनाव में जीतने का श्रेय उनको मिलने के बाद चर्चा में आए।  इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के लिए 2017 में पंजाब चुनाव, वाई.एस.आर. के लिए भी आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार किया।

पार्टी में प्रशांत की यात्रा 
पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आधिकारिक आवास पर सितम्बर 2015 में जदयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक होनी थी। इस दौरान के.सी. त्यागी ने बताया कि आज प्रशांत किशोर जदयू ज्वॉइन करेंगे। इस दौरान 3 बड़े नेताओं ने कहा कि कुछ नहीं, बस सोशल मीडिया देखेंगे। ठीक एक महीने बाद 16 अक्तूबर को नीतीश ने प्रशांत किशोर को जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घोषित कर दिया। इस फैसले ने नीतीश के करीबियों को भी चौंका दिया। पी.के. को पार्टी में नंबर टू बताया जाने लगा। इसके बाद चर्चा शुरू हुई कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के साथ सीट शेयरिंग पी.के. ही करेंगे। इससे नीतीश के करीबी आर.सी.पी. सिंह, संजय झा, ललन सिंह जैसे नेता भी असहज थे। दूसरी ओर नीतीश कुमार ने पी.के. पर भरोसा बनाए रखा। हालांकि भाजपा के साथ सीट शेयरिंग में भी पी.के. की कोई भूमिका नहीं रही।

केजरीवाल के लिए काम करना जदयू को नहीं भाया 
दिल्ली में केजरीवाल के लिए काम करने का फैसला भी जदयू आलाकमान को नहीं भाया। इसके बाद एन.आर.सी. और एन.पी.आर. के मुद्दे पर वह बिना नीतीश की सलाह लिए अपनी राय को पार्टी की राय बताते रहे। प्रियंका गांधी के कांग्रेस महासचिव बनाए जाने का भी पी.के. ने स्वागत किया था जिससे जदयू इत्तेफाक नहीं रखती थी। 
 

पार्टी लाइन पर बने रहने का दिया था संदेश
15 दिसम्बर 2019 को पी.के. ने नीतीश से भेंट की। इस मुलाकात में नीतीश ने क्लीयर मैसेज दिया कि पार्टी लाइन पर बने रहें तो इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है। बावजूद इसके पी.के. रुके नहीं।
 

उत्तराधिकारी बताने पर पार्टी में बढ़ा असंतोष
जिस तरह पी.के. काम करते थे, उससे पार्टी के भीतर असंतोष था। प्रशांत किशोर ने पर्दे के पीछे खुद को नीतीश का उत्तराधिकारी बताना शुरू कर दिया। नीतीश कुमार के बेहद करीबी नेता ने बताया कि प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव के दौरान जो भूमिका निभाई उसी समय से वह राडार पर आ गए। इससे पहले वह जदयू को 7-8 सीटें मिलने की बात किया करते थे लेकिन भाजपा ने जदयू को 17 सीटें दीं। चुनावी नतीजे भी शानदार आए। पोल स्ट्रैटेजिस्ट का तमगा लगाने के बावजूद चुनाव प्रचार में पी.के. इग्नोर रहे तब पूरे बिहार में ओ.बी.सी. रैली कर चुके आर.सी.पी. सिंह कुछ अन्य नेताओं के साथ स्ट्रैटेजी संभाल रहे थे।

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