370 पर निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में

Edited By Pardeep,Updated: 29 Aug, 2019 05:04 AM

judgment on 370 within the scope of judicial review

जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में बदलाव करने का केन्द्र का निर्णय बुधवार को न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करने के केन्द्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच सदस्यीय...

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में बदलाव करने का केन्द्र का निर्णय बुधवार को न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करने के केन्द्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के हवाले कर दिया, जो इनपर अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत में बुधवार को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करने को लेकर उठे मुद्दे पर 11 याचिकाएं सूचीबद्ध थीं। नेशनल कांफ्रेन्स के नेताओं ने कहा है कि राष्ट्रपति के आदेश ने समूचे जम्मू कश्मीर में संविधान के प्रावधान लागू करने का मार्ग प्रशस्त किया है और यह अनुच्छेद 35ए को खत्म करने और अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने वाला है। 

इन लोगों ने दायर की याचिका
अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करने संबंधी राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली पहली याचिका अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने दायर की थी। इसके बाद जम्मू कश्मीर के एक अन्य वकील शाकिर शब्बीर भी शामिल हो गए। नेशनल कांफ्रेन्स ने भी 10 अगस्त को राज्य की स्थिति में बदलाव को चुनौती देते हुये शीर्ष अदालत में याचिका दायर की। याचिका में दलील दी गई थी कि राज्य के नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए हैं। संसद द्वारा पारित और बाद में राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश असंवैधानिक है और इसे शून्य और अप्रभावी घोषित करने का अनुरोध किया गया है। यह याचिका नेशनल कांफ्रेन्स के लोकसभा सदस्य व जम्मू कश्मीर विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष मोहम्म्द अकबर लोन और सेवानिवृत्त न्यायाधीश हसनैन मसूदी ने दायर की है। हसनैन मसूदी जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं। जिन्होंने 2015 में अपने फैसले में कहा था कि अनुच्छेद 370 संविधान का स्थायी हिस्सा है। 

केंद्र व जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे औरन्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने इस मुद्दे को लेकर दायर याचिकाओं पर केन्द्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किए। पीठ ने इन याचिाकाओं में उठाए गए मुद्दों पर केन्द्र से जवाब मांगा है। याचिकाओं में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करने संबंधी कानून और राष्ट्रपति के आदेश गैरकानूनी और जम्मू कश्मीर की जनता को संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला है। पीठ ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सालिसीटर जनरल तुषार मेहता की इन दलीलों से असहमति व्यक्त की कि चूंकि वे न्यायालय में मौजूद हैं, इसलिए नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं है। पीठ ने कहा, ‘हम इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपेंगे।’ 

पीठ ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि नोटिस जारी करने का सीमा पार से अप्रत्यक्ष परिणाम होगा। अटॉर्नी जनरल का कहना था कि इस मामले को संविधान पीठ को सौंपते समय नोटिस जारी नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि यहां होने वाली चर्चा को संयुक्त राष्ट्र ले जाया जाएगा। उनका इशारा संभवत: इस ओर था कि इस मामले की सुनवाई की ओर वे लोग संयुक्त राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करेंगे जो पड़ोसी देश सहित केन्द्र के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। इस मुद्दे पर दोनों ही पक्षों के वकीलों में बहस के बीच ही पीठ ने कहा, ‘हमें पता है कि क्या करना है, हमने आदेश पारित कर दिया है। हम इसे बदलने नहीं जा रहे।’ 

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