सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों ने भारत के कानूनी और संवैधानिक ढांचे को मजबूती दी: राष्ट्रपति

Edited By Yaspal,Updated: 23 Feb, 2020 07:46 PM

judiciary has moved ahead on the goal of gender justice president kovind

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने “लैंगिक न्याय के लक्ष्य” पर आगे बढ़ने के लिए भारतीय न्यायपालिका के प्रयासों की रविवार को प्रशंसा की और कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा से “सक्रिय एवं प्रगतिशील” रहा है। ‘न्यायपालिका और बदलती दुनिया'' विषयक अंतरराष्ट्रीय...

नई दिल्लीः राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने “लैंगिक न्याय के लक्ष्य” पर आगे बढ़ने के लिए भारतीय न्यायपालिका के प्रयासों की रविवार को प्रशंसा की और कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा से “सक्रिय एवं प्रगतिशील” रहा है। ‘न्यायपालिका और बदलती दुनिया' विषयक अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 में राष्ट्रपति ने कहा कि शीर्ष अदालत ने “प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन” की अगुवाई की है। उन्होंने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए लागू दो दशक पुराने विशाखा दिशा-निर्देशों के संदर्भ का जिक्र किया। साथ ही उन्होंने सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमान पोस्टिंग देने के हालिया निर्देश का भी जिक्र किया।

कोविंद ने कहा, “अगर एक उदाहरण दें तो लैंगिक न्याय के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट हमेशा से सक्रिय और प्रगतिशील रहा है।” उन्होंने कहा, “कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए दो दशक पहले दिशा-निर्देश जारी करने से लेकर सेना में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए इस महीने निर्देश जारी करने तक सुप्रीम कोर्ट ने प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन की अगुवाई की है।” कोविंद ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि उच्चतम न्यायालय के फैसले अब नौ स्वदेशी भाषाओं में उपलब्ध हैं जिससे आम लोगों की पहुंच इन फैसलों तक सुगम होगी। साथ ही उन्होंने राष्ट्र की भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए किए गए इस प्रयास को “असाधारण” करार दिया।

कोविंद ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट की कई क्रांतिकारी सुधार करने के लिए भी प्रशंसा की जानी चाहिए जिनसे न्याय तक आम लोगों की पहुंच सुगम बनी है। इस अदालत द्वारा पारित ऐतिहासिक फैसलों ने देश के कानूनी एवं संवैधानिक ढांचों को मजबूत किया है।” उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट की पीठ एवं बार को अपने कानूनी विद्वता एवं बौद्धिक विवेक के लिए जाना जाता है। इसने जो हासिल किया है वह न्याय देने के तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली समस्याओं का पता लगाने और उन्हें ठीक करने की मौन क्रांति से कम नहीं है।” कोविंद ने पर्यावरणीय संरक्षण एवं सतत विकास के समन्वय में न्यायपालिका की भूमिका का संदर्भ दिया जिस पर कई देशों में बहुत ध्यान दिया जाता है।

सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के मद्देनजर न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों पर राष्ट्रपति ने कहा कि डेटा संरक्षण और निजता के अधिकार जैसे नये प्रश्न उठ गए हैं। उन्होंने कहा, “सूचना प्रौद्योगिकी के उदय के साथ, नये सवाल भी पैदा होए हैं जैसे डेटा और निजता से जुड़े प्रश्न।” कोविंद ने कहा, “अंतत: सतत विकास की सबसे अहम चिंता पर अभी से अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। आपने इन मुद्दों पर व्यापक चर्चा की और चुनौतियों से निपटने के लिए उपाय भी सुझाए।”

कोविंद ने कहा कि सम्मेलन के सत्रों के लिए, लैंगिक न्याय, संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण पर समसामयिक दृष्टिकोण, बदलती दुनिया में संविधान की गतिशील विवेचना, पर्यावरण संरक्षण एवं सतत विकास का समन्वय और इंटरनेट के युग में निजता के अधिकार का संरक्षण जैसे पांच अहम पहलुओं को चुने जाने से बेहतर कोई और विषय नहीं हो सकते थे। उन्होंने कहा कि ये पहलु वैश्विक समुदाय के प्रत्येक सदस्य को प्रभावित करते हैं। इस बात पर गौर करते हुए कि इन पांच स्पष्ट रूप से परिभाषित विषयों में दुनिया भर में न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियां शामिल हैं, उन्होंने कहा कि लैंगिक न्याय वैश्विक एजेंडा पर सबसे ऊपर रहना चाहिए।

उन्होंने कहा, “पिछले दशक में संवैधानिक मूल्यों के संदर्भ में बढ़ते लोकलुभावनवाद पर काफी चर्चा हुई। परिणामस्वरूप, कई को संविधानों पर नये सिरे से नजर डालनी पड़ी।” हालांकि उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में विश्व बहुत तेजी से और अप्रत्याशित ढंग से बदला है और न्यायपालिका की भूमिका, “इन नाटकीय परिवर्तनों के बीच निर्णायक” होनी चाहिए।

 

 

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