विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका को देश और देशवासियों के लिए 'एक सोच' रखने की जरूरत है : मुर्मू

Edited By Parveen Kumar,Updated: 27 Nov, 2022 02:27 AM

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को देश और देशवासियों के लिए ‘समान सोच' रखने की आवश्यकता है।

नेशनल डेस्क : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को देश और देशवासियों के लिए ‘समान सोच' रखने की आवश्यकता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा यहां संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए मुर्मू ने मामूली अपराधों के लिए वर्षों से जेलों में बंद गरीब लोगों की मदद करके वहां कैदियों की संख्या कम करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, ‘‘कहा जाता है कि जेलों में कैदियों की भीड़ बढ़ती जा रही है और और जेलों की स्थापना की जरूरत है।

क्या हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं? और जेल बनाने की क्या जरूरत है? हमें उनकी संख्या कम करने की जरूरत है।'' मुर्मू ने कहा कि जेलों में बंद इन गरीब लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘आपको इन लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। कौन हैं ये लोग जो जेल में हैं? वे मौलिक अधिकारों, प्रस्तावना या मौलिक कर्तव्यों को नहीं जानते हैं।'' देश के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘सरकार के तीन अंगों - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की देश और देशवासियों के वास्ते एक सोच होनी चाहिए।'' मुर्मू ने कहा, ‘‘हमारा काम लोगों (जेल में बंद गरीब विचाराधीन कैदियों) के बारे में सोचना है। हम सभी को सोचना होगा और कोई न कोई रास्ता निकालना होगा... मैं यह सब आप पर छोड़ रही हूं।'' उन्होंने कहा कि ये लोग किसी को थप्पड़ मारने या इसी तरह के छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेलों में बंद हैं और इनमें से कुछ प्रावधान ऐसे मामलों में लागू नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मैं एक बहुत छोटे से गांव से आती हूं। जहां मैं पैदा हुई थी, वहां के लोग तीन लोगों को भगवान मानते थे - शिक्षक, डॉक्टर और वकील।'' मुर्मू ने कहा कि लोग अपने परिवार के सदस्यों को जेलों से मुक्त नहीं करवा पाते क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके लिए उन्हें अपनी संपत्ति और घर के बर्तन बेचने होंगे। उन्होंने कहा कि वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बहुत कुछ करते हैं, यहां तक कि दूसरों को मार भी देते हैं, लेकिन वे खुलेआम घूम रहे हैं।'' राष्ट्रपति ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए एक प्रभावी विवाद समाधान तंत्र विकसित करने का आग्रह करते हुए कहा कि न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया को सस्ती बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।

उन्होंने कहा कि संविधान सुशासन के लिए एक मानचित्र की रूपरेखा तैयार करता है और इसमें सबसे महत्वपूर्ण विशेषता राज्य के तीन अंगों - कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के कार्यों और शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत है। मुर्मू ने कहा, ‘‘यह हमारे गणतंत्र की पहचान रही है कि तीनों अंगों ने संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं का सम्मान किया है।''

उन्होंने कहा, ‘‘न्याय हासिल करने की प्रक्रिया को किफायती बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।'' उन्होंने इस दिशा में न्यायपालिका द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की। मुर्मू ने कहा, ‘‘भारत का सर्वोच्च न्यायालय और कई अन्य अदालतें अब कई भारतीय भाषाओं में निर्णय उपलब्ध कराती हैं।'' उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय और कई अन्य अदालतों ने अपनी कार्यवाही की ‘लाइव स्ट्रीमिंग' शुरू कर दी है। उन्होंने विश्वास जताया कि उच्चतम न्यायालय हमेशा न्याय का प्रहरी बना रहेगा।

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