यूं ही कोई जेतली नहीं बन जाता, 'मोदी है तो मुमकिन है' का दिया था नारा

Edited By Pardeep,Updated: 25 Aug, 2019 05:17 AM

just as there is no jaitley the slogan of modi hai to mumkin hai

पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे अरुण जेतली के लिए राजनीतिक हलकों में अनौपचारिक तौर पर माना जाता था कि वह ''पढ़े लिखे विद्वान मंत्री'' हैं। सौम्य, सुशील, अपनी बात स्पष्टता के साथ कहने वाले और राजनीतिक तौर पर उत्कृष्ट...

नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे अरुण जेतली के लिए राजनीतिक हलकों में अनौपचारिक तौर पर माना जाता था कि वह 'पढ़े लिखे विद्वान मंत्री' हैं। सौम्य, सुशील, अपनी बात स्पष्टता के साथ कहने वाले और राजनीतिक तौर पर उत्कृष्ट रणनीतिकार रहे जेतली भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुख्य संकटमोचक थे जिनकी चार दशक की शानदार राजनीतिक पारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते समय से पहले समाप्त हो गई। खराब सेहत के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार बनी सरकार से खुद को बाहर रखने वाले 66 वर्षीय जेतली का शनिवार को यहां एम्स में निधन हो गया। 
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बता दें कि जेतली की सबसे बड़ी खूबी थी संवाद। कानून की पढ़ाई ने उन्हें तार्किक तो बनाया ही था, सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहने के कारण उनका संवाद सामने वाले व्यक्ति को भरोसा दिलाता था। अपनी क्षमता के कारण उन्होंने कानून, वाणिज्य, वित्त जैसे बड़े मंत्रालयों को बखूबी चलाया था। जीएसटी जैसे बड़े सुधार भी उनके ही काल में हुए थे।
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'मोदी है तो मुमकिन है' का दिया था नारा
'मोदी है तो मुमकिन है' जैसे नारे भी उनकी कमेटी ने ही दिए थे। बिहार में भाजपा के विकास और जदयू के साथ तालमेल में उनकी अहम भूमिका रही। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि जेटली के बाद पार्टी में ऐसा कोई नेता नहीं बचा है, जिसका अधिकतर दलों के नेताओं के साथ वह तालमेल रहा हो जितना जेटली के साथ था। दरअसल, वह मध्यम मार्ग के समर्थक थे। भाजपा की विचारधारा के प्रति संकल्प के बावजूद उनका उदारवादी चेहरा सामंजस्य बनाने में मदद करता था। संसद में अपनी प्रखरता के कारण वह विरोधी दलों को कठघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे, लेकिन जब व्यक्तिगत दोस्ती की बात आती थी, तब वह उनके साथ खड़े दिखते थे। वाजपेयी काल से लेकर मोदी काल तक के दो दशक में एक दशक तो संघर्ष में बीता। वह काल भाजपा के लिए कठिन था, लेकिन दूसरे नेताओं के साथ-साथ अरुण जेटली की प्रखरता ने भाजपा कार्यकर्ताओं में निराशा नहीं आने दी थी।
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लंबा रहा वकालत का तजुर्बा
अरुण जेटली ने 1977 में वकालत की शुरुआत की। सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश के विभिन्न हाई कोर्ट में वकालत की। 1990 में एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किए गए। 1989 में वीपी सिंह सरकार में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त हुए। बोफोर्स घोटाले की सुनवाई के लिए कागजी कार्रवाई की। लालकृष्ण अडवाणी, शरद यादव और माधवराव सिंधिया जैसे बड़े नेताओं के वकील रहे। कानून और करंट अफेयर्स पर कई लेख लिखे। उन्होंने भारत ब्रिटिश कानूनी फोरम के समक्ष भारत में भ्रष्टाचार और अपराध से संबंधित कानून पर एक पेपर प्रस्तुत किया था। जून, 1998 में संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में भारत सरकार के प्रतिनिधि रहे, जहां ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित कानूनों को मंजूरी दी गई।
 

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