Edited By Anil dev,Updated: 26 Jul, 2019 05:54 PM
26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में भारत को विजय मिली थी। 1999 में घुसपैठियों के रूप में पाकिस्तानी सेना ने करगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन सौरभ कालिया और लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय जैसे शूरवीरों की वीरता के आगे...
नई दिल्ली: 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में भारत को विजय मिली थी। 1999 में घुसपैठियों के रूप में पाकिस्तानी सेना ने करगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन सौरभ कालिया और लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय जैसे शूरवीरों की वीरता के आगे कारगिल की पहाडिय़ों की ऊंचाई भी कम पड़ गई। करीब दो महीने चले इस युद्ध में आखिरकार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी लेकिन इस युद्ध में भारत के 513 वीर जवान देश की रक्षा करते शहीद हो गए।
भारत के उन वीर शहीदों में से एक थे 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा। वो विक्रम बत्रा जिनके साहस और बहादुरी के चर्चे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी हैं, जिन्हे पाकिस्तानी सेना ने शेरशाह का नाम दिया। कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सेना सम्मान परमवीर चक्र से समान्नित किया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही इन वीर सपूतों का हृदय से वंदन करते हों लेकिन सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है जो उन्होंने कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता की मांग अभी तक पूरी नहीं की है? पिछले एक साल से कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता श्री गिरधारी लाल बत्रा पालमपुर से दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उनकी आवाज़ अभी तक मोदी सरकार के कानों में नहीं पड़ी है। कारगिल विजय दिवस की 20 वीं सालगिरह के अवसर पर पंजाब केसरी से एक्सक्लूसिव बात करते हुए उन्होंने अपना दर्द बयां किया।