दिलचस्प रहें हैं कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम

Edited By Anil dev,Updated: 30 Mar, 2018 01:34 PM

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के आधार पर 2019 में बीजेपी और कांग्रेस का भविष्य भी तय हो सकता है। राज्य में 12 मई को वोट डाले जाएंगे और 15 मई को मतगणना होगी। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने कर्नाटक विधानसभा चुनाव को...

नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के आधार पर 2019 में बीजेपी और कांग्रेस का भविष्य भी तय हो सकता है। राज्य में 12 मई को वोट डाले जाएंगे और 15 मई को मतगणना होगी। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों दल भले ही बड़े बड़े दावे कर रहे हों लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि राज्य में 1985 के बाद से किसी भी दल की लगातार दोबारा सरकार नहीं बनी है और 2013 को छोड़कर केंद्र में सत्तारूढ़ दल कभी भी राज्य में बहुमत हासिल नहीं कर सका। राज्य के पिछले चार दशक के चुनावी इतिहास पर नजर डाली जाए तो 1983 और 1985 में लगातार दो बार जनता पार्टी की सरकार बनी थी लेकिन उसके बाद से कोई भी दल लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बना सका है। यही बात इस बार कांग्रेस के खिलाफ जाती है जिसने 2013 में हुए पिछले चुनाव में 122 सीटें जीत कर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था। 
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राज्य विधानसभा चुनाव का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि 1978 के बाद से केंद्र में सत्तारूढ़ दल राज्य में बहुमत हासिल करने में सफल नहीं रहा। सिर्फ पिछले चुनाव में इसमें बदलाव देखने को आया था जब केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस कर्नाटक में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल हुई थी। देखना है कि क्या इस बार भाजपा भी ऐसा कर पाती है जो केंद्र में इस समय सत्तारूढ़ है।
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आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में जनता पार्टी ने शानदार सफलता के साथ केंद्र में सरकार बनाई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने थे लेकिन 1978 में कर्नाटक में हुए चुनाव में जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। वह विधानसभा की 224 सीटों में से सिर्फ 59 सीटें ही जीत सकी। कांग्रेस (इंदिरा) ने 149 सीटें जीतकर जबर्दस्त सफलता हासिल की। वर्ष 1983 में हुये चुनाव में इसका उल्टा हुआ। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं लेकिन उनकी पार्टी को 82 सीटें ही मिलीं। जनता पार्टी ने 95 सीटें जीतीं और रामकृष्ण हेगड़े ने भाजपा तथा अन्य छोटे दलों के साथ मिल कर राज्य में पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनाई।
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यह सरकार ज्यादा नहीं चल सकी और 1985 में फिर चुनाव हए। इस चुनाव में जनता पार्टी को शानदार सफलता मिली। उसने 139 सीटें जीतीं। कांग्रेस 65 सीटें ही जीत सकी। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। वर्ष 1989 के चुनाव में कांग्रेस को जबर्दस्त सफलता मिली। उसने 178 सीट जीत कर जो रिकार्ड बनाया उसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है लेकिन उस समय केंद्र में उसकी सरकार नहीं थी। केंद्र में पी वी नरसिंहराव की सरकार के दौरान 1994 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल ने 115 सीटें जीत कर सरकार बनाई। इसके बाद 1999 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 132 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की। उस समय में केंद्र में भाजपा नीत राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी।
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कांग्रेस ने 2004 में केंद्र में सत्ता में वापसी की और उसके नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार बनी लेकिन उसी समय हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में वह पिछड़ गई और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस को 65 और भाजपा को 79 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने जनता दल(सेकुलर) के साथ मिलकर सरकार बनाई जो राज्य की पहली साझा सरकार थी। पांच साल बाद 2008 में हुए चुनाव में भाजपा ने 110 सीटें जीत कर राज्य में पहली बार सरकार बनाई। पूरे दक्षिण भारत में यह उसकी पहली सरकार थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार थी लेकिन वह विधानसभा में 80 सीटें ही जीत सकी।

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