कर्नाटक विधानसभा चुनाव: 600 मठों का होगा असर या काम करेंगे राज्य के मुद्दे

Edited By ASHISH KUMAR,Updated: 07 Apr, 2018 05:34 AM

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दो दिन पहले देश में हुए जातीय हिंसा का विरोध बीजेपी व कांग्रेस सहित लगभग सभी छोटे बड़े दलो ने गला फाड़ कर किया था। जबकि इसके उलट एक सत्य यह भी है कि राजनीति के लिए जितना जरूरी नेता हैं उतना ही जरूरी जातिवाद का मुद्दा हो गया है। एक तरफ जातिवाद को सभी...

नेशनल डेस्क (आशीष पाण्डेय): दो दिन पहले देश में हुए जातीय हिंसा का विरोध बीजेपी व कांग्रेस सहित लगभग सभी छोटे बड़े दलो ने गला फाड़ कर किया था। जबकि इसके उलट एक सत्य यह भी है कि राजनीति के लिए जितना जरूरी नेता हैं उतना ही जरूरी जातिवाद का मुद्दा भी है। हालांकि एक तरफ जातिवाद को सभी पार्टियां देश के लिए खतरा बताते नहीं थकतीं हैं, वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में इसका खुलेआम प्रदर्शन होते देखा जा सकता है। इन्हीं पार्टियों द्वारा जातीय समीकरण को साधने के लिए सभी दांव पेंच का खुलेआम प्रदर्शन किया जा रहा है। राहुल गांधी और अमित शाह कर्नाटक के सैकड़ों मठो पर माथा टेककर इसी बात पर मुहर भी लगा रहे हैं। 

तीन नाम तीन समुदाय
कर्नाटक की राजनीति में आजकल तीन नाम काफी चर्चा में हैं। पहला नाम प्रदेश के सीएम सिद्धारमैया है तो दूसरा नाम सीएम उम्मीदवार व बीजेपी नेता  बी.एस येदियुरप्पा का है, तीसरे नाम की दावेदारी जनता दल सेक्यूलर के एच.डी देवेगौड़ा ने कर रखी है। ये तीन नाम केवल नेताओं के नहीं हैं बल्कि उन समुदाय के प्रतिक के हैं जिनकी कर्नाटक की राजनीति में तूती बोलती है। ये तीनों नेता लिंगायत, वोक्कालिग्गा और कुरबा समुदाय आते हैं। इन तीनों समुदायों का कर्नाटक में करीब 600 मठों से सीधा संबंध है। जातीय समीकरण के लिहाज से इन मठों का अपना प्रभुत्व है। कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री के. सिद्धारमैया कुरबा समुदाय से आते हैं तो वहीं बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बी.एस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से जबकि जनता दल सेक्यूलर के एच.डी देवेगौड़ा वोक्कालिग्गा समुदाय से हैं।
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लिंगायत समुदाय
यह कर्नाटक का सबसे प्रभावशाली और ताकतवर समुदाय है। लिंगायत समुदाय की करीब 17 फीसदी आबादी है। कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों में से 100 सीटों पर इसी समुदाय का असर है। यही बड़ा कारण है कि बीजेपी ने एक बार फिर लिंगायत समुदाय से आने वाले बी.एस येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों से लिपटे होने के बावजूद मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है।

वोक्कालिग्गा समुदाय
पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा वोक्कालिग्गा समुदाय (ओबीसी) के प्रभावशाली नेता के तौर पर जाने जाते हैं। जनसंख्या के लिहाज से वोक्कालिग्गा कर्नाटक की दूसरी प्रभावी जाति है। इसकी आबादी 12 फीसदी है, इस समुदाय का प्रमुख मठ आदि चुनचनगिरी है। जिसे जनता दल (एस) का समर्थक मठ भी कहा जाता है। कर्नाटक में वोक्कालिग्गा समुदाय के 150 मठ हैं, जिनमें से ज्यादातर दक्षिण कर्नाटक में हैं। मठ के दर्जनों शिक्षण संस्थान भी हैं, मठ का प्रभाव दक्षिण कर्नाटक में अपेक्षाकृत अधिक है।

कुरबा समुदाय
राज्य में तीसरा प्रमुख मठ कुरबा समुदाय से जुड़ा हुआ है। इस समुदाय से 80 से ज्यादा मठ जुड़े हैं। इसका मुख्य मठ दावणगेरे में श्रीगैरे मठ है और सूबे में कुरबा आबादी करीब 8 फीसदी है। मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरामैया इसी समुदाय से आते हैं।
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लिंगायत की मान्यता बीजेपी का संकट
जिस तरह से कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म बनाने की लंबे समय से की जा रही मांग मानकर बीजेपी के खिलाफ सबसे प्रभावी दांव चला है। अलग धर्म की मान्यता देने पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार करेगी। लिंगायत समुदाय में सेंध लगाने के लिए सिद्धारमैया ने मास्टरस्ट्रोक मारा है। हालांकि अब गेंद मोदी सरकार के पाले में है और बड़ा सकंट यह है कि अमित शाह इस मांग को मानने से साफ इनकार कर चुके हैं। जो बीजेपी के लिए गले की फांस बन सकता है। हालांकि बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि अगर मठों के समर्थन से राजनीतिक लाभ मिलने पर गौर किया जाए तो बीजेपी को अधिक फायदा होता दिख रहा है। कारण यह है कि उसके समर्थक समुदाय के न सिर्फ सबसे ज्यादा मठ हैं, बल्कि तीनों प्रमुख समुदायों में सबसे ज्यादा आबादी भी इसी समुदाय की है।

प्रचार के केंद्र में सभी मठ
अपने-अपने समुदाय के मठ तो इन तीनों दलों के चुनाव प्रचार के केंद्र में हैं ही, साथ ही बीजेपी-कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता दूसरे समुदायों के मठों का भी आशीर्वाद ले रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व अमित शाह अपने दौरों में मठों पर खास ध्यान देते नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं बीजेपी और अमित शाह इस बार वोक्कालिग्गा समुदाय में भी पैठ बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अमित शाह के अलावा अनंत कुमार, सदानंद गौड़ा जैसे केंद्रीय मंत्री भी चुनचुनगिरी मठ का दौरा कर चुके हैं। यानी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कर्नाटक में नेताओं का काफिला मठों से होकर गुजर रहा है। ऐसे में अब देखना होगा कि 12 मई को सूबे की 224 विधानसभा सीटों पर वोटिंग के बाद जब 15 मई को नतीजे घोषित होंगे, तो क्या उन पर मठों का असर नजर आएगा या राज्य के मुद्दे काम करेंगे।

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