BJP- कांग्रेस के CM चेहरे की कर्नाटक में अच्छी- खासी पकड़, पढ़ें इनका राजनीतिक सफरनामा

Edited By Anil dev,Updated: 12 May, 2018 01:20 PM

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के लिए बेहद मायने रखता है। बीजेपी इस चुनाव के जरिए दक्षिण भारत में अपने कदम जमाने की कोशिश कर रही है वहीं कांग्रेस राज्य में अपना किला बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। माना जा रहा है कि कर्नाटक चुनाव 2019 का...

नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के लिए बेहद मायने रखता है। बीजेपी इस चुनाव के जरिए दक्षिण भारत में अपने कदम जमाने की कोशिश कर रही है वहीं कांग्रेस राज्य में अपना किला बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। माना जा रहा है कि कर्नाटक चुनाव 2019 का रास्ता तय करेगा क्योंकि इसके बाद कई राज्यों जैसे राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में चुनाव होने है। कर्नाटक के नतीजे इन राज्यों में भी असर डाल सकते है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही राज्य में अच्छी खासी पकड़ है। तो आईये जानते है बीजेपी के सीएम चेहरे येदियुरप्पा और कांग्रेस के सीएम चेहरे सिद्धारमैया का राजनीतिक सफर।

कौन है सिद्धारमैया
  मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने एक साल पहले तैयारी शुरू कर दी थी।  सिद्धारमैया जेडीएस छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे । वह एन धरम सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री थे। जब एच डी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने तब साल 1996 में वकील से नेता बने सिद्धारमैया मुख्यमंत्री की बनते बनते रहे गए। सिद्धारमैया कुरूबा समुदाय के हैं। ये जाति राज्य की तीसरी सबसे बड़ा जाती है। सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में जे एच पटेल ने पीछे उस वक्त पीछे छोड़ दिया था। देवगौडा और पटेल दोनों जब मुख्यमंत्री थे तब सिद्धारमैया वित्त मंत्री रहे थे।  

कौन है  बी एस येदियुरप्पा 
बुकंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा (68) कर्नाटक में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के रूप में तीन साल दो महीने शासन कर चुके हैं। हमेशा सफेद सफारी सूट में नजर आने वाले येदियुरप्पा नवम्बर 2007 में जनता दल (एस) के साथ गठबंधन सरकार गिरने से पहले भी कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री रहे थे। यदुरप्पा ने एपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1972 में शिकारीपुरा तालुका के जनसंघ अध्यक्ष के रूप में की थी। इमरजेंसी के वक्त भी वो बेल्लारी और शिमोगा की जेल में भी रहे। यहां से उन्हें इलाके के किसान नेता के रूप में जाना जाने लगा था। साल 1977 में जनता पार्टी के चसिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनिति में उनका कद और बढ़ गया। 

1988 में पहली बार चुने गए थे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष 
कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा को नजरअंदाज करना मुश्किल है। क्योंकि साल 1988 में ही बीजेपी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। साल 1983 में में पहली बार शिकारपुर से विधायक चुने गए थे। छह बार उन्होंने यहा से जीत हासिल की। 1994 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद येदियुरप्पा को असेम्बली में विपक्ष का नेता बना दिया गया। सन् 1999 में वो चुनाव हार गए थे इसके बीद बीजेपी  ने उन्हें MLC बना दिया। राज्य में जिन दो जातियों के हाथ में राजनीति रही है वो हैं लिंगायत और वोक्कालिगा। अधिकतर कर्नाटक में मुख्यमंत्री इसी समुदाय से ही रहे हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से जो हार मिली उससे बीजेपी को इत ना तो समझ आ गया है कि बिना येदियुरप्पा के कर्नाटक में सरकार बनाना मुश्किल है। 

येदियुरप्पा पर लगे है ये आरोप 
- साल 2004: जमीन घोटाले और अवैध खनन घोटाले के भी आरोप लगे
- साल 2010: आरोप लगा की उन्होंने बेंगलुरु में प्रमुख जगहों पर अपने बेटों को भूमि आवंटित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया। 

 सिद्धारमैया ने खेला ये दाव
राज्य में अपनी सत्ता को बनाए रखेने के लिए  सिद्धारमैया ने एक साथ कई दाव खेले है। सिद्धारमैया के  इन दावों ने बीजेपी के लिए भारी मुश्किले खड़ी कर दी है।  

लिंगायत 
लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग रख दी। हालांकि लिंगायत इस मांग को लेकर लंबे समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें हिंदु धर्म से अलग दर्जा दिया जाए। कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन एक्ट की धारा 2 डी के तहत मंजूर कर लिया गया। अब इससे आगे का फैसला केंद्र सरकार को लेना है। 

राज्य का अलग झंडा 
चुनाव से पहले सरकार ने राज्य के झंडे को भी स्वीकृति दे दी है। राज्य के अलग झंडे के लिए भी केंद्र सरकार ने ही अनुमति लेनी होगी। इस मुद्दे पर भी कांग्रेस ने बीजेपी को एक तरह से घेर लिया है। मुख्यमंत्रई सिद्धारमैया शुरू से ही अलग झंडे का विरोध करते थे लेकिन अब उन्होंने कहा कि क्या संविधान में कोई ऐसा प्रावधान है जो कि राज्य को अपना झंडा रखने से रोकता हो? साथ ही कहा कि इसका चुनाव से कोई लेना देना नहीं है। 

भाषा को बढ़ावा 
कांग्रेस ने इस मुद्दे को भी भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सिद्धारमैया ने बेंगलुरु के नए मेट्रो स्टेशन में सारे हिंदी साइन बोर्ड हटवा दिए है। 

बजट में लुभावने वादे 
चुनाव से पहले सिद्धारमैया सरकार ने चुनाव से पहले अपना लगातार छठा बजट पेश किया। सरकार का ये बजट काफी लोकलुभावना बजट था। सरकार ने घोषणा की कि वो 5.93 लाख कर्मचारियों और 5.73 लाख पेंशनरों पर 10,508 करोड़ रुपए खर्च करेगी। साथ ही कर्मचारियों के वेतन में 30 प्रतिक्षत की वृद्धि की सिफारिश की। साथ ही मुख्यमंत्री अनिला भाग्य योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत दो चूल्दे वाला गैस स्टोव और दो गैस सिलेंडर  निशुल्क दिए जाएंगे। किसानों के लिए रैयत बेलाकू योजना का ऐलान किया है। जिसके तहत वर्षा पर निर्भर खेती करने वाले प्रत्येक किसान को अधिकतम 10,000 रुपए और न्यूनतम 5000 रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से राशि उनके बैंक खातों में भेज दी जाएगी।    

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