कई और दरवाजे खोल सकता है कर्नाटक

Edited By Anil dev,Updated: 10 Dec, 2019 11:15 AM

karnataka by election yeddyurappa kumaraswamy bjp

कर्नाटक उपचुनाव के जो नतीजे आए हैं, वे सिर्फ नए समीकरण बनाने वालेे ही नहीं हैंं, बल्कि कई सवाल भी पैदा करते हैं। 15 में से 12 सीटों पर कब्जा कर इस जीत से न सिर्फ भाजपा गदगद है, बल्कि इसने संभावनाओं के कई द्वार भी खोल दिए हैं।

नई दिल्ली: कर्नाटक उपचुनाव के जो नतीजे आए हैं, वे सिर्फ नए समीकरण बनाने वालेे ही नहीं हैंं, बल्कि कई सवाल भी पैदा करते हैं। 15 में से 12 सीटों पर कब्जा कर इस जीत से न सिर्फ भाजपा गदगद है, बल्कि इसने संभावनाओं के कई द्वार भी खोल दिए हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य भी भविष्य में ऐसी जीत की नई प्रयोगशाला हो जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अब इस जीत से कर्नाटक में येद्दियुरप्पा सरकार स्थिर हो गई है। सदन में पूर्ण बहुमत के लिए उसे इन 15 सीटों में से छह सीटें जीतना जरूरी था, जो इसे मिल गईं। बल्कि ज्यादा ही मिल गईं।  वैसे उपचुनावों के नतीजों के पहले पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कह दिया था कि जरूरत पड़ी तो येद्दियुरप्पा सरकार को समर्थन हम देंगे। लेकिन उसकी नौबत नहीं आई। इस जीत से कई सवाल पैदा होते हैं। क्या महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के बाद उसका धरातल पर आया मनोबल फिर से उड़ान भरने लगेगा।  

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क्या अब दलबदल कानून में सेंध का कोई नया रास्ता खुल गया है। फिर से चुनाव लडऩे को तैयार विधायकों को पाला बदलवाकर राजनीति के नए खेल पूरे भरोसे से खेले जा सकते हैं। इस खेल पर कर्नाटक की जनता ने भी अपनी मुहर लगा दी है। साल के मध्य में भाजपा के रणनीतिकारों ने कांग्रेस के 14 और जदयू एस के 3 विधायकों को बगावत करवा कर कर्नाटक में कुमारस्वामी की सरकार गिराई गई थी और अल्पमत येद्दियुरप्पा सरकार ने सत्ता की बागडोर संभाली थी। इन 17 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने  इन सदस्यों के दुबारा चुनाव लडऩे की हरी झंडी मिल दे दी थी। 17 में से 15 सीटों पर उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में भाजपा ने अपनी पार्टियों से बगावत कर भाजपा सरकार बनवाने में परोक्ष मदद करने वाले इन अधिकतर पूर्व विधायकों को ही अपने निशान पर चुनाव लड़वाया। इनमें से 11 सफल रहे। वो भी तब जब इन सीटों पर भाजपा के विक्षुब्धों के ताल ठोंकने से हाई कमान की नाक में दम  हो गया था। येदिरुप्पा की साख दांव पर थी ही, आलाकमान भी हैरान -परेशान रहा।

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इस जीत के साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या कर्नाटक के बाद अगला प्रयोग भाजपा अब मध्य प्रदेश में कर सकती है। 230 सदस्यों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 सीटें हैं। बसपा के दो सदस्यों के समर्थन से वहां सरकार चल रही है। विधानसभा में भाजपा के पास 109 सीटें हैं। अगर वहां कांग्रेस के 12-13 विधायक बगावत कर अपनी सदस्यता गंवा दें तो बाकी बचे 218 के सदन में भाजपा कर्नाटक की तरह ही आसानी से अल्पमत सरकार बना सकती है। आगे उपचुनाव में जनता बेड़ा पार कर सकती है। नहीं जीते तो सीट जाने का रिस्क तो है ही। मगर इस खेल में जो असली मोल-भाव होता है, वह सब पर्दे के पीछे रहता है और जनता कभी जान ही नहीं पाती। कर्नाटक के बाद यह खतरा महाराष्ट्र में किस तरह भाजपा उठायगी, यह कहना जल्दबाजी होगी। 

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खास तौर से पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस के नवम्बर में खेले गए दांव के हारने के बाद। वैसे पार्टी का एक वर्ग मानता है कि अब भी कांग्रेस को दोफाड़ करना महाराष्ट्र में अपेक्षाकृत आसान है, खास तौर पर एनसीपी और शिवसेना की तुलना में।  इस उपचुनाव के बाद जनप्रतिनिधित्व कानून के तू डाल-डाल , मैं पांत - पांत की तर्ज पर सवाल उठेंगे।  किसी भी पार्टी के टूटने के लिए दो तिहाई संख्या की बाध्यता का जिस तरह इस्तीफा देकर और फिर चुन कर आने का तोड़  निकाला गया, अब उस पर फिर से विचार करना ही होगा। अभी तक इस्तीफा देने वाला छह साल तक चुनाव लड़ नहीं सकता था, पर नए ताजे सुप्रीम फैसले के बाद यह नजीर की तरह से इस्तेमाल किया जाएगा। 

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क्या येद्दियुरप्पा को बदलने का सही समय आया
भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से विवादित छवि और भाजपा के 75 वर्ष की सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्ति नियम के दायरे में आने वाले कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा के विकल्प पर विचार करने का सही समय क्या अब आ गया है। येद्दियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं और उन्होंने मैसूर क्षेत्र में कांग्रेस के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाकर राज्य में भाजपा को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। माना जा रहा है कि अब येद्दियुरप्पाअपने किसी विश्वस्त को अपनी कुर्सी सौंप देंगे। पर कब,यह अभी भविष्य की गर्त में है। वैसे इसमें कनार्टक पार्टी अध्यक्ष बीएल संतोष और  चीनी मंत्री सीटी रवि आगे हैं। वह कर्नाटक युवा मोरचा के अध्यक्ष रहे हैं। 

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