राजनीति के बड़े खिलाड़ी थे करुणानिधि, जानिए कैसा था उनका सफर

Edited By vasudha,Updated: 07 Aug, 2018 07:46 PM

दक्षिण भारत के दिग्गज राजनेता और DMK अध्यक्ष एम. करुणानिधि का आज लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनके निधन की खबर सुनते ही पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। देश के कद्दावर नेता दक्षिण भारत की राजनीति में अपना एक अलग प्रभाव और दबदबा रखते थे...

नेशनल डेस्क: दक्षिण भारत के दिग्गज राजनेता और DMK अध्यक्ष एम. करुणानिधि का आज लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनके निधन की खबर सुनते ही पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। देश के कद्दावर नेता दक्षिण भारत की राजनीति में अपना एक अलग प्रभाव और दबदबा रखते थे। द्रविड़ मुनेत्र कझगम प्रमुख पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। इतना ही नहीं वह जब-जब अपनी सीट से विधानसभा चुनाव लड़े उन्हें कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। जानिए उनके राजनीति सफर की दिलचस्प कहानी। 

नहीं देखा कभी पीछे मुड़कर
तिरुवरूर के तिरुकुवालाई में तीन जून 1924 को करुणानिधि का जन्म हुआ था। वह इसाई वेल्लालर समुदाय से संबंध रखते थे। 14 वर्ष की उम्र में राजनीति में प्रवेश करने वाले करुणानिधि पहली बार कुलाथालाई विधानसभा सीट से 1957 में विधायक बने और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। करुणानिधि ने तमिल फिल्म में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। द्रविड़ आंदोलन के दौरान वह समाजवादी विचारों को बढ़ावा देने वाली कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे।
PunjabKesari

1957 में किया राजनीति में प्रवेश 
कद्दावर नेता ने तमिल सिनेमा जगत के पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया। 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया। करूणानिधि ने बाकायादा विधायक के रूप में तमिलनाडु की सियासत में प्रवेश सन 1957 में किया, जब वे तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा से जीते। इसके बाद वे 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने और 1967 में जब डीएमके सत्ता में आई, तब वे सार्वजनिक कार्य मंत्री बने। 

1969 में पहली बार बने मुख्यमंत्री 
करूणानिधि के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब 1969 में डीएमके (द्रविड मुनैत्र कसगम) के संस्‍थापक अन्नादुरई की मौत हो गई और वे अन्‍नादुरई के बाद न केवल डीएमके का न केवल चेहरा बने, बल्‍कि पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर उनकी पहचान बनी। हालांकि उन्हे राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले। 

PunjabKesari
चौ देवीलाल के साथ निभाई महत्वपूर्ण भूमिका 
1977 में जब दिल्ली में जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ, तब एआईएडीएमके पार्टी कांग्रेस के साथ और डीएमके जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन में थी तब डीएमके को केवल एक सीट और एआईएडीएमके को 19 सीटें मिली थी  गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन के साथ ही करुणानिधि का दिल्ली की राजनीति में प्रवेश हुआं वे तमिलनाडु में कांग्रेस-विरोध के ध्रुव के रूप में उभरे। 1989 को लोकसभा चुनाव के नतीजों में डीएमके पार्टी को एक भी सीट पर विजय ‍नहीं मिल पाई थी, लेकिन करुणानिधि ने वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में चौधरी देवीलाल के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

करुणानिधि के सुझाव पर देवेगौड़ा बने पीएम 
1991 के लोकसभा चुनाव में करुणानिधि की पार्टी डीएमके को एक भी सीट पर विजय नहीं मिली। नतीजा यह हुआ कि दिल्ली की राजनीति में उनका वजूद काफी कम हुआ। राव सरकार के मंत्री अर्जुन सिंह ने डीएमके नेताअों पर आरोप लगाया था कि राजीव गांधी की हत्या में उनका हाथ था। 1996 के लोकसभा चुनाव में डीएमके को 17 और उसकी सहयोगी तमिल मनीला कांग्रेस को 20 सीटें प्राप्त हुई। दिल्ली में करुणानिधि अचानक प्रधानमंत्री बनाने वाले नेता बन गए। करुणानिधि चाहते थे कि वीपी सिंह फिर प्रधानमंत्री बनें, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया अंतत: करुणानिधि के सुझाव पर एच.डी. देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया। 

PunjabKesari
2004 में एनडीए का छोड़ा साथ 
1998 में एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से अटल बिहारी वाजेपयी की सरकार गिर गई। फिर 1999 के लोकसभा में डीएमके एनडीए का हिस्सा बन गई। 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले ही डीएमके ने एनडीए का साथ छोड दिया।करुणानिधि यूपीए के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। मनमोहन सिंह सरकार में करुणानिधि का दबदबा इतना अधिक था कि वे ही तय करते थे कि उनकी पार्टी से जुड़े मंत्रियों को कौन-से विभाग मिलने चाहिए। बाद में जब 2जी में भ्रष्टाचार को लेकर विवाद इतना गंभीर हो गया कि डा. मनमोहन सिंह को डीएमके के मंत्री ए.राजा व करुणिानिधि की बेटी कनिमोझी को जेल भिजवाना पड़ा ऐसी स्थिति में करुणानिधि के सामने कांग्रेस पार्टी से अपना रिश्ता खत्म करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। 

अपने नाम दर्ज करवाया रिकार्ड
करुणानिधि जैसा नेता पूरे भारतीय राजनीति में बेहद अलग है, उनके नाम एक ऐसा रिकॉर्ड है जो किसी के पास नहीं है। दरअसल करुणानिधि ने अपने 60 साल के राजनीतिक कॅरियर में अपनी भागीदारी वाले हर चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया है, ऐसा नेता पूरे भारत में कोई नहीं है। वे पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 
PunjabKesari

करुणानिधि ने की थी तीन शादियां 
वहीं राजनीति के साथ साथ करुणानिधि का निजी जीवन भी काफी दिलचस्प रहा। उन्होंने तीन बार शादियां की उनकी तीनों पत्‍नी पद्मावती, दयालु आम्माल और राजात्तीयम्माल. उनके बच्‍चे एम.के. मुत्तु, एम.के. अलागिरी, एम.के. स्टालिन और एम.के. तामिलरसु जबकि पुत्रियां सेल्वी और कानिमोझी रही। पद्मावती, जिनका देहावसान काफी जल्दी हो गया था, ने उनके सबसे बड़े पुत्र एम.के. मुत्तु को जन्म दिया था। अज़गिरी, स्टालिन, सेल्वी और तामिलरासु दयालुअम्मल की संताने हैं, जबकि कनिमोझी उनकी तीसरी पत्नी राजात्तीयम्माल की पुत्री हैं। 
 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!