आर्टिकल 370 हटने पर कश्मीरी पंडितों में खुशी की लहर, वतन वापसी की जताई उम्मीद

Edited By prachi upadhyay,Updated: 06 Aug, 2019 07:35 PM

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कश्मीर घाटी, खूबसूरत वादियां, झेलम, डल झील। इनके किनारे पैदा हुए, बचपन बीता, बड़े हुए और फिर रातों-रात वहां से निकाल दिया गया। सब कुछ पीछे छूट गया। बसी-बसाई जिंदगी एक बार फिर नए सिरे से शुरू करनी पड़ी। लेकिन जेहन से कश्मीर नहीं निकल पाया, उसकी यादें...

नेशनल डेस्क: कश्मीर घाटी, खूबसूरत वादियां, झेलम, डल झील। इनके किनारे पैदा हुए, बचपन बीता, बड़े हुए और फिर रातों-रात वहां से निकाल दिया गया। सब कुछ पीछे छूट गया। बसी-बसाई जिंदगी एक बार फिर नए सिरे से शुरू करनी पड़ी। लेकिन जेहन से कश्मीर नहीं निकल पाया, उसकी यादें आज भी दिलो-दिमाग में मौजूद है और अब आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद एक बार फिर उम्मीद जगी है वापस अपने वतन जाने की। अपने कश्मीर को वापस अपना बनाने की। ये उन कश्मीरी पड़ितों की उम्मीदें जो केंद्र के कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जगी है।

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केंद्र के कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाने की घोषणा के बाद से देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे कश्मीरी पंडितों में जश्न का माहौल है। उत्तर प्रदेश हो या गुजरात या फिर मुंबई। हर जगह कश्मीरी पंडित की आंखों में खुशी के आंसू हैं। उनका कहना है कि अनुच्छेद 370 हटने से हमारी घर वापसी का सपना पूरा होगा। निर्वासित कश्मीरी पंडितों के हक के लिए काम करने वाली संस्था पनुन कश्मीर के लखनऊ यूनिट के सचिव रवि काचरू ने बताया कि, हमारी जो संपत्तियां वहां लगभग 29-30 सालों से पड़ी हैं, जिन्हें हम कभी कभार किसी दोस्त की मदद से तस्वीरों में या  सोशल मीडिया पर देख लिया करते थे, अब  उम्मीद है कि उन्हे अपनी आंखों से देखेंगे और वहां बस भी सकेंगे। वहीं अहमदाबाद में रहनेवाले कश्मीरी पंडित भरत भामरू ने कहा कि आर्टिकल 370 और 35A को लेकर केंद्र ने जो कदम उठाया है वो काबिल-ए-तारीफ है। इस कदम के चलते अब कश्मीरी पंडितों का वनवास खत्म होगा।

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वहीं मुंबई में बसे कश्मीरी परिवारों में भी खुशी की लहर है। सभी ने एकदूसरे को मिठाई बांटी और गले लगकर खुशी जाहिर की। मुंबई में रहनेवाले कश्मीर के मूल निवासी राजेन कौल बताते हैं, 'हमारा घर-बार, जमीन-जायदाद-सब कुछ वहीं छूट गया। हमें लगता था, हम वोट बैंक नहीं हैं, इसलिए किसी को हमारी परवाह नहीं है।' एक और निर्वासित कश्मीरी पंडित नीना खेर बताती हैं, 'इस फैसले से हमारी उम्मीदें नए सिरे से बंधी हैं।'

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