नजरिया: सियासी दल अपने चंदे से दोबारा बसाएं केरल को

Edited By Anil dev,Updated: 22 Aug, 2018 05:05 PM

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ये काफी दुखभरा है कि जहां केरल में लोग बाढ़ में अपना सर्वस लुट जाने के बाद दो वक्त की रोटी को तरस रहे हैं ,वहीं सूरत शहर में रक्षाबंधन पर लोगों के लिए नौ हजार प्रतिकिलो की दर से मिलने वाली मिठाई बनाई जा रही है। दिलचस्प ढंग से इतनी महंगी मिठाई के लिए...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): ये काफी दुखभरा है कि जहां केरल में लोग बाढ़ में अपना सर्वस लुट जाने के बाद दो वक्त की रोटी को तरस रहे हैं ,वहीं सूरत शहर में रक्षाबंधन पर लोगों के लिए नौ हजार प्रतिकिलो की दर से मिलने वाली मिठाई बनाई जा रही है। दिलचस्प ढंग से इतनी महंगी मिठाई के लिए एडवांस में बुकिंग भी हो रही है। यह लोगों के पास अकूत धन सम्पदा और उसके दुरूपयोग का सबसे नवीनतम श्रेष्ठ उदाहरण है।  काश इन पैसे वालों को इतनी अक्ल होती कि एक किलो मिठाई के पैसे वे केरल राहत कोष में भेज देते। सूरत की जिस दूकान ने यह मिठाई लांच की है सूचना के मुताबिक अब तक उसके पास 20 हजार किलो के आर्डर आ चुके हैं। यानी 18 करोड़ की मिठाई की बुकिंग हो चुकी है। अब इसे दूसरी नजऱ से देखें। 

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18 करोड़ में केरल के एक बड़े गांव को फिर से बसाया जा सकता है। लेकिन शायद हमारे समाज में चीजों को अलग से देखने के नजरिए ने ही यह फर्क पैदा किया है। जाहिर है महंगी सोने के वर्क वाली मिठाई स्टेटस सिम्ब्ल है। जबकि बेसहारा लोगों के लिए दान पुण्य को हम उस नजर से नहीं देखते। दान देने की तस्वीर को फेसबुक और ट्विटर पर उतने लाइक नहीं मिलते जितने..ईटिंग 9 द्म वाली मिठाई --वाले अपडेट को मिलेंगे। खैर ये तो रहे  अमीरों के चोंचले। लेकिन दिलचस्प ढंग से अपने देश के कर्णधारों को भी शायद इस मामले में  दिक्कत है।  

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केंद्र सरकार ने केरल को 500 करोड़ का पैकेज दिया। डेढ़ दर्जन राज्य सरकारों ने पांच, सात या 10 करोड़ दिया। लेकिन यह सब तो आम जनता का पैसा था। केंद्र या राज्य सरकारों के पास जो पैसा होता है वह  आम करदाता का होता है। फिर इन राजनीतिज्ञों ने क्या दिया।  यह सवाल इसलिए कि अगर आप पिछले साल राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे पर नजऱ दौड़ाएंगे तो आपको साफ हो जाएगा कि हम ऐसा सवाल क्यों पूछ रहे हैं। विश्व और देश की सबसे बड़ी पार्टी यानी बीजेपी को पिछले वित्तीय वर्ष में 590 करोड़ का चंदा मिला था। और इसमें भी असल बात यह कि  यह महज  वो 2123  डोनेशंस थीं जो बीस हजार से ऊपर की थीं। बीस हजार से नीचे के चंदो का हिसाब किताब नहीं है।  

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कांग्रेस को भी पिछले साल 50 करोड़ का चंदा मिला था। अज्ञात स्रोतों से बीजेपी को 2016-17 में 464.94 करोड़ रुपया बतौर चंदा मिला है। इस आमदनी का 99.98 फीसदी या 464.84 करोड़ रुपया 'स्वैच्छिक योगदान' के तहत मिला है। अज्ञात स्रोतों ने कांग्रेस को भी 126.12 करोड़ रुपए चंदे के तौर पर दिए। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल राजनीतिक दलों की कुल घोषित आय 11,367.करोड़ रही। सात राष्ट्रीय दलों को 2016-17 में अज्ञात स्रोतों से 710 करोड़ रुपए का चंदा मिला है। इसी तरह क्षेत्रीय दलों को भी पिछले साल 632  करोड़ रुपये चंदे के रूप में मिले हैं। और यह सिर्फ और सिर्फ एक साल का हिसाब है।  पीछे जाएंगे तो  कुबेर के और खजाने पाएंगे। तो क्या इन दलों को ऐसे मामलों में आगे नहीं आना चाहिए। जब हमारी पार्टियां इतनी मालामाल हैं तो सरकारी कोष के साथ साथ क्या उनको भी आपदाग्रस्त लोगों के लिए अपनी थैलियों का मुंह नहीं खोलना चाहिए ?

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