13 नंबर को पूरी दुनिया क्यों मानती है मनहूस? खुल गया गहरा रहस्य

Edited By Tanuja,Updated: 16 Sep, 2019 10:29 AM

know about the secret of 13 number

वैसे तो नंबरों का हमारी जिंदगी में खास महत्व है लेकिन 13 नंबर को लेकर दुनिया भर के लोगों का नजरिया अलग है...

सिडनीः वैसे तो नंबरों का हमारी जिंदगी में खास महत्व है लेकिन 13 नंबर को लेकर दुनिया भर के लोगों का नजरिया अलग है । दरअसल नंबर 13 को विश्व भर में बेहद अशुभ माना जाता है । इसकी वजह शायद ही लोग जानते होंगे लेकिन अब इसके पीछे का रहस्य खुल गया है। 13 नंबर को मनहूस नंबर माने के पीछे कई कारण हैं। पश्चिमी देशों में 13 नंबर के प्रति डर जैसा माहौल होता है। अगर आप इसके पीछे की वजह जान लेंगे तो शायद आप भी 13 नंबर से डरने लगेंगे।  इसी वजह से दुनिया में लोगों ने इस अंक से दूरी बनाना शुरू कर दिया।

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विश्वासघात का प्रतीक
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 13 तारीख को ईसा मसीह के साथ एक शख्स ने विश्वासघात किया था। वो शख्स ईसा मसीह के साथ रात्रिभोज कर रहा था। वह व्यक्ति 13 नंबर की कुर्सी पर बैठा हुआ था, तभी से लोग इस अंक को दुर्भाग्यपूर्ण समझते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने 13 अंक के इस डर को ट्रिस्काइडेकाफोबिया या थर्टीन डिजिट फोबिया नाम दिया है। लोगों के अंदर इस नंबर के प्रति डर बन गया कि उन्होंने इससे दूरी बना ली।

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विदेश में 13 नंबर का डर
अगर विदेश में जाए और आपको किसी होटल में नंबर 13 का कोई रूम या कोई इमारत न मिले तो आप समझ जाएं कि होटल का मालिक 13 नंबर को अशुभ मानता है। कुछ लोग किसी होटल में 13 नंबर का रूम लेना बिल्कुल पसंद नहीं करते। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो 13 नंबर की टेबल पर खाना खाना भी पसंद नहीं करते। फ्रांस के लोगों का मानना है कि खाने की मेज पर 13 कुर्सियां होना सही नहीं है। इटली के कई ओपरा हाउस में भी 13 नंबर के इस्तेमाल से बचा जाता है।

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भारत में 13 नंबर का असर
भारत में लोग 13 नंबर को बहुत ही अशुभ मानते हैं। यहां सपनों के शहर कहे जाने वाले चंडीगढ़ को देश का सबसे सुनियोजित शहर माना जाता है। यह पंडित जवाहरलाल नेहरू के सपनों का शहर हुआ करता था। लेकिन इस शहर में सेक्टर 13 नहीं है. इस शहर का नक्शा बनाने वाले आर्किटेक्ट ने 13 नंबर का सेक्टर नहीं बनाया, क्योंकि वह इस नंबर को अशुभ मानता था।

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अटल बिहारी वाजपेयी से रहा 13 नंबर का नाता
अटल बिहारी वाजपेयी का भी 13 नंबर से गहरा संबंध रहा। उनकी सरकार पहली बार में 13 दिन की ही रही थी। इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी ने दोबारा शपथ ग्रहण की, उन्होंने 13 तारीख को चुना लेकिन इसके बाद उनकी सरकार केवल 13 महीने तक ही चल सकी। इसके बाद उन्होंने 13वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री के रूप में 13 दलों के सहयोग से 13 तारीख को शपथ ली। लेकिन उनको 13 को ही हार का सामना करना पड़ा था हालांकि लोग इसे संयोग ही मानते हैं।

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