जानिए क्या है धारा 377, समलैंगिकता पर ये है सजा का प्रावधान

Edited By Seema Sharma,Updated: 10 Jul, 2018 04:14 PM

know what is section 377

सुप्रीम कोर्ट समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी याचिकाओं पर आज महत्वपूर्ण सुनवाई की। इस दौरान महाभारत काल के शिखंडी का भी जिक्र हुआ। दरअसल शिखंडी उस समय में घोर तपस्या करके स्त्री से पुरुष बना था। कोर्ट ने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि...

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी याचिकाओं पर आज महत्वपूर्ण सुनवाई की। इस दौरान महाभारत काल के शिखंडी का भी जिक्र हुआ। दरअसल शिखंडी उस समय में घोर तपस्या करके स्त्री से पुरुष बना था। कोर्ट ने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि 160 साल पहले जो चीज नैतिक मूल्यों के दायरे में आती थी, वह आज नहीं आती। इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर. नरीमन, जस्टिस एम. खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच ने सुनवाई की।
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क्या है धारा 377
धारा 377 के तहत अगर दो पुरुषों या महिलाओं के बीच प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स होता है, उसे यह अप्राकृतिक यौन संबंध दंडनीय अपराध है और इसके लिए दोषी व्यक्ति को उम्र कैद, या एक निश्चित अवधि के लिए (10 साल) तक सजा हो सकती है और उसे इस कृत्य के लिए जुर्माना भी देना होगा। वहीं धारा 377 पर समलैंग‍िकों का कहना है कि समलैंगिक संबंध अप्राकृतिक कैसे हो सकते हैं। आम बोलचाल में समलैंग‍िकों को लेस्ब‍ियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर कह के बुलाया जाता है। धारा 377 के तहत पुलिस शक के आधार पर और गुप्त सूचना मिलने पर भी किसी को गिरफ्तार कर सकती है और इशके लिए वारंट की भी जरूरत नहीं होती।
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कब लागू हुआ धारा 377
अंग्रेजों ने 1862 में धारा 377 को इस देश में लागू किया था और अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया था। हालाकिं भारत में इस कानून को लागू करने वाले ब्र‍िटिश शासन ने 1967 में इसे ब्र‍िटेन से अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। देश में एक अर्से से इस समुदाय के लोग मांग कर रहे हैं कि उन्हें उनका हक दिया जाए और धारा 377 को अवैध ठहराया जाए। सेक्‍स वर्करों के लिए काम करने वाली संस्‍था नाज फाउंडेशन ने इस मामले में हाईकोर्ट में कहा था कि अगर दो एडल्‍ट आपसी सहमति से सेक्‍सुअल संबंध बनाते है तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए।  
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नाज फाउंडेशन की याचिका पर हाईकोर्ट ने 2009 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया और कहा कि दो व्‍यस्‍क आपसी सहमति से एकातं में समलैंगिक संबंध बनाते है तो वह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने सभी नागरिकों के समानता के अधिकारों की बात की थी लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में समलैंगिगता मामले में उम्रकैद की सजा के प्रावधान के कानून को बहाल रखने का फैसला किया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था, जिसके बाद से अब तक कोर्ट में इस मामले पर बहस जारी है।

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