Edited By Utsav Singh,Updated: 22 Sep, 2024 02:50 PM
सड़क दुर्घटनाओं में घायलों की मदद करने के लिए सरकार ने प्रोत्साहन योजना शुरू की है, जिसमें घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने वाले को ₹5000 का पुरस्कार दिया जाता है।फिर भी, यह निराशाजनक है कि इस प्रोत्साहन योजना के बावजूद लोग घायलों की मदद के लिए आगे...
नेशनल डेस्क : सड़क दुर्घटनाओं में घायलों की मदद करने के लिए सरकार ने प्रोत्साहन योजना शुरू की है, जिसमें घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने वाले को ₹5000 का पुरस्कार दिया जाता है।फिर भी, यह निराशाजनक है कि इस प्रोत्साहन योजना के बावजूद लोग घायलों की मदद के लिए आगे नहीं आते। वास्तविकता यह है कि दुर्घटनास्थल पर लोगों की भीड़ तो देखने को मिलती है, लेकिन किसी की भी मदद करने की तत्परता कम ही नजर आती है। अधिकतर लोग वीडियो बनाना, तस्वीरें लेना या खुद को समाजसेवी साबित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन घायल व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाने से कतराते हैं।
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मौजूदा स्थिति
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वीडियो बनाना बनाम सहायता करना: लोग दुर्घटनास्थल पर मोबाइल से वीडियो बनाने और समाजसेवी होने का दावा करने में तो बहुत सक्रिय हैं, लेकिन घायल को सहायता देने से पीछे हटते हैं। इससे हर साल कई घायल लोगों की जान जाती है।
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सड़क हादसे और मौतें: सड़क हादसों में हर दिन लोगों की जान जा रही है। सड़क सुरक्षा के लिए चलाए जा रहे अभियानों के बावजूद दुर्घटनाओं का सिलसिला जारी है। सर्वे के अनुसार, 50% घायलों की मौत इसलिए होती है क्योंकि उन्हें घटना के एक घंटे के भीतर उचित उपचार नहीं मिल पाता।
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अस्पतालों और पुलिस का रवैया
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अस्पतालों की व्यवस्था: सरकारी अस्पतालों में अक्सर घायलों को देखे जाने के बाद डॉक्टर तुरंत रेफर का आदेश दे देते हैं। अस्पतालों में इलाज की समुचित व्यवस्था न होने के कारण भी लोगों की जान चली जाती है।
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पुलिस का रवैया: घायलों को अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों को अक्सर पुलिस पूछताछ के लिए बुला लेती है, जिससे लोग घायलों को अस्पताल पहुंचाने से डरते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति को सुधारने के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय को 13 सूत्रीय गाइडलाइन जारी की थी। लेकिन, इस आदेश का पालन नहीं हो रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
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साइन बोर्ड: गाइडलाइन के अनुसार, थानों और अस्पतालों में ऐसे साइन बोर्ड लगाने के निर्देश दिए गए थे जिनमें लिखा हो कि घायलों को अस्पताल पहुंचाने वालों से पुलिस कोई पूछताछ नहीं करेगी।
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पुलिस और डॉक्टरों की कार्रवाई: अगर पुलिस अधिकारी पूछताछ के लिए दबाव बनाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके बावजूद, अब तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया जहां पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई हो।
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अस्पताल में प्रक्रिया: सरकारी अस्पताल में घायलों को लाने वाले का नाम-पता दर्ज किया जाता है। कई बार डॉक्टर नाम-पता नहीं देने पर भी घायलों को अस्पताल में भर्ती नहीं करते या मरीज को ले जाने की बात कहने लगते हैं। इसके अलावा, पुलिस भी नाम-पता दर्ज कर एक बार पूछताछ करती है, जिससे लोग मदद से बचते हैं।
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सड़क दुर्घटनाओं के मामलों में घायलों को त्वरित और उचित चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत है। सरकारी योजनाओं और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद, अगर अस्पताल और पुलिस की व्यवस्था में सुधार नहीं होता, तो इस समस्या का समाधान संभव नहीं होगा।