सियासत के समीकरण: क्या गुल खिलाएगी 'सोनिया की माया'

Edited By Anil dev,Updated: 31 May, 2018 03:00 PM

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देश के  गलियारों में आजकल एक तस्वीर हलचल मचाए  हुए है।  कर्नाटक में  कुमार स्वामी सरकार के शपथ ग्रहण के अवसर पर यह तस्वीर खींची गई है । तस्वीर में  यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती काफी आत्मीयता भरे अंदाज में एक दूसरे से मिल रही...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ) : देश के  गलियारों में आजकल एक तस्वीर हलचल मचाए  हुए है।  कर्नाटक में  कुमार स्वामी सरकार के शपथ ग्रहण के अवसर पर यह तस्वीर खींची गई है । तस्वीर में  यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती काफी आत्मीयता भरे अंदाज में एक दूसरे से मिल रही हैं।  हालांकि उस मौके पर  ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव, सीता राम येचुरी और चंद्र बाबू नायडू सरीखे नेता भी आस-पास ही थे तथापि सोनिया-माया की तस्वीर चर्चा का सबब बन गई। सियासी माहिर इस तस्वीर में  भविष्य की राजनीति के संकेत  पढ़ रहे हैं। अधिकांश विश्लेषकों का मानना  है कि आगे चलकर कांग्रेस और बसपा  हाथ मिला सकते हैं।  दोनों ही पार्टियां अस्तित्व  के संकट से गुजर रही हैं।  कांग्रेस लोकसभा में राजधानी  दिल्ली  के  वर्तमान तापमान से भी कम सीटों पर सिमटी हुई है तो बसपा एक अदद सीट को तरस रही है। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि  दोनों एकदूसरे की मदद से आगे बढ़ने की जुगत लड़ाएं। यदि ऐसा हुआ तो यह दोस्ती  कांग्रेस, बसपा और बीजेपी के साथ साथ देश की सियासत की दशा और दिशा को भी  बदल सकती है।  
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इसी साल तीन राज्यों मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में  चुनाव होने हैं।  फिलवक्त दोनों पार्टियां अपने बूते यहां  सत्ताधारी बीजेपी के आस-पास भी नहीं हैं।  लेकिन गठबंधन  की स्थिति में ये  न सिर्फ मजबूत होकर  उभरेंगी बल्कि  सत्ता तक भी पहुँच सकती हैं। ऐसा हम नहीं आंकड़े कह रहे हैं। सबसे पहले  बात मध्य प्रदेश की कर लेते हैं।  पिछले चुनाव में बीजेपी ने 44. 88  फीसदी वोट लेकर सत्ता  हासिल की थी। कांग्रेस ने 36. 38 % तो बसपा 6. 29 % वोट लिए थे।  अब अगर  इन दोनों के वोट  प्रतिशत को मिला दें तो यह 42 . 67  % हो जाता है।  यानी बीजेपी से महज दो फीसदी कम।  ऊपर से 15  साल की सत्ता विरोधी लहर।  यानी बाजी पलट सकती है।  मध्य प्रदेश के पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नज़र डालेंगे तो तस्वीर और साफ़ हो जाएगी।  यदि कांग्रेस -बसपा मिलकर लड़तीं तो शिवराज की हैट ट्रिक तो कम से कम नहीं बनती।  ऐसे में  अगर इस बार दोस्ती परवान चढ़ी तो बीजेपी के पसीने छूटना तय है।

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मध्य प्रदेश -  2013  की तस्वीर 
कुल सीटें - 230

 

पार्टी      वोट शेयर सीट 
बीजेपी 44 . 88 % 166   
कांग्रेस   36 .38  %     57  
बसपा    6 .29  %  4   


मध्य प्रदेश - 2008  की तस्वीर 
कुल सीटें - 230

 

पार्टी  वोट शेयर सीट 
बीजेपी     37.64 % 143   
कांग्रेस     32.39  %     71  
बसपा    8.97 %     7   


मध्य प्रदेश - 2003  की तस्वीर 
कुल सीटें - 230

 

पार्टी    वोट शेयर सीट 
बीजेपी   42.50 % 173   
कांग्रेस   31.61  % 38  
बसपा      7.26 %   2

 

छतीसगढ़ में रमन के लिए बड़ी चुनौती 
अब बात करते हैं छतीसगढ़ की।. छतीसगढ़ में  भी दिलचस्प ढंग से बसपा का एक तय वोट बैंक लगातार बना हुआ है। बल्कि इसमें  चुनाव दर  चुनाव बढ़ोतरी भी हुई है। मसलन पिछले  विधानसभा चुनाव में बसपा ने यहां साढ़े चार फीसदी वोट  लिए थे। कांग्रेस ने 40. 29  फीसदी मत लिए थे।  और बीजेपी कांग्रेस से करीब आधा फीसदी अधिक वोट लेकर सरकार बना गई थी।  दूसरे शब्दों में यदि कांग्रेस और बसपा मिल जातीं तो बीजेपी किसी भी सूरत में सत्ता में नहीं आती । यही नहीं अगर  2008  और 2003  के चुनाव में भी दोनों  बीजेपी से अधिक  सीटें पाते , आंकड़े यह स्पष्ट  दर्शा रहे हैं।  ऐसे में अगर  कांग्रेस-बसपा यहां हाथ मिलाते हैं तो चावल वाले बाबा को सन्यास तय है। 

छत्तीसगढ़ -  2013  की तस्वीर 
कुल सीटें - 90

 

पार्टी    वोट शेयर     सीट 
बीजेपी     41.04% 49   
कांग्रेस 40.29  % 39  
बसपा    4.27  %    01   


छत्तीसगढ़ -  2008  की तस्वीर 
कुल सीटें - 90

 

पार्टी        वोट शेयर   सीट 
बीजेपी   40.33 %   50   
कांग्रेस   38.63 %   38  
बसपा  6.11 %  02   


छत्तीसगढ़ -  2003  की तस्वीर 
कुल सीटें - 90

 

पार्टी   वोट शेयर     सीट 
बीजेपी   39.26 %     50   
कांग्रेस   36.71 % 37
बसपा    4.45 %     02  


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गुल तो मरुभूमि में भी खिल सकता है 
राजस्थान के बारे में अब यह मशहूर हो गया है कि मतदाता यहां सरकारों को दूसरा मौका नहीं देते। उपचुनाव में  बीजेपी को झटका लग चुका है। हालांकि पिछले चुनाव के मतांतर के आधार पर वसुंधरा अभी कॉन्फिडेंट दिखती हैं, लेकिन  बदलाव के इतिहास, सत्ता विरोधी लहर की रेसिपी में अगर  कांग्रेस -बसपा की दोस्ती का छोंक लग गया तो खिचड़ी यहां भी कुछ और ही पकेगी। यहां पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो बसपा का  औसतन पांच फीसदी का वोट शेयर है। इसे कम नहीं आँका जा सकता क्योंकि कांग्रेस के वोट शेयर के साथ मिलकर यह कमल को खिलने से पहले मसलने का मादा रखता है।हालांकि यह सब आंकड़े हैं और धरातली सच्चाई चुनावी रण के दौरान ज्यादा स्पष्ट होती है , तथापि  सोनिया - मायावती की तस्वीर  जो कहती है , वह अगर हकीकत में भी हो गया तो समीकरणों में बदलाव  हो सकता है। 

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