1988 की वो घटना, जिस कारण वकीलों ने फूंका था किरण बेदी का पुतला

Edited By Seema Sharma,Updated: 06 Nov, 2019 05:38 PM

पुलिस की शान समझी जाने वाली खाकी वर्दी से लोगों को काफी अपेक्षाए होती हैं। और यही बात मंगलवार को पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने पुलिस मुख्यालय के सामने प्रदर्शन कर रहे जवानों से कही कि वे सभी कानून के रखवाले हैं और जनता के रक्षक हैं। लेकिन पुलिस के...

नई दिल्लीः पुलिस की शान समझी जाने वाली खाकी वर्दी से लोगों को काफी अपेक्षाए होती हैं। और यही बात मंगलवार को पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने पुलिस मुख्यालय के सामने प्रदर्शन कर रहे जवानों से कही कि वे सभी कानून के रखवाले हैं और जनता के रक्षक हैं। लेकिन पुलिस के जवान नहीं माने और किरण बेदी के नाम के नारे लगाते रहे। बता दें कि किरण बेदी और वकीलों के बीच हमेशा से ही एक विवाद रहा। खास कर 1988 का मामला काफी गर्माया था जब उन्होंने डीसीपी रहते हुए वकीलों पर लाठीचार्ज करवाया था।

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वकील आज तक किरण बेदी का विरोध करते हैं। 2015 में भी किरण बेदी ने जब राजनीति में कदम रखा तब भी वकीलों ने काफी विरोध किया था क्योंकि भाजपा ने उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी के तौर पर घोषित किया था। तब वकीलों ने विरोध प्रदर्शन के साथ-साथ किरण बेदी का पुतला भी फूंका था। राष्ट्रीय राजधानी में सभी छह जिला अदालतों के वकीलों ने बेदी को उम्मीदवार बनाने के लिए भाजपा की निंदा की। हालांकि किरण बेदी दिल्ली से जीत हासिल नहीं कर पाई थीं। वे वकील एसके बग्गा से हार गई थीं।

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क्या है 1988 का मामला
तीस हजारी अदालत परिसर में पुलिस-वकीलों की झड़प की 1988 की उस घटना की याद दिला दी जब दिल्ली की ‘‘सख्त मिजाज पुलिस अधिकारी' ने वकीलों की नाराजगी मोल ली थी। वह 1988 का जनवरी का महीना था जब दिल्ली पुलिस ने राजेश अग्निहोत्री नाम के वकील को गिरफ्तार किया था। सेंट स्टीफन कॉलेज के छात्रों ने उन्हें लेडीज कॉमन रूम से कथित तौर पर चोरी करते हुए पकड़ा था। घटना 16 जनवरी 1988 की है । पुलिस ने वकील अग्निहोत्री को हाथ में हथकड़ी लगाए तीस हजारी अदालत में पेश किया तो वकीलों ने इसे गैरकानूनी बताते हुए प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।

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मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने वकील को उसी दिन दोषमुक्त कर दिया और साथ ही पुलिस आयुक्त को दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए। वकील, पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अपनी मांग के समर्थन में 18 जनवरी से हड़ताल पर चले गए। पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने 20 जनवरी को एक संवाददाता सम्मेलन में पुलिस की कार्रवाई को न्यायोचित बताया और कथित ‘‘चोर'' को दोषमुक्त करने के मजिस्ट्रेट के आदेश की आलोचना की। अगले दिन वकीलों के समूह ने तीस हजारी अदालत परिसर में ही स्थित बेदी के कार्यालय में उनसे मुलाकात करनी चाही तो उन पर लाठी चार्ज का आदेश दिया गया जिसमें कई वकील घायल हो गए। इसके बाद अगले दो महीने के लिए वकीलों ने दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में अदालतों में काम करना बंद कर दिया और बेदी के इस्तीफे की मांग की।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की जांच के लिए न्यायाधीश डीपी वाधवा के नेतृत्व में दो सदस्यीय समिति गठित की जिसके बाद हड़ताल बंद की गई। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वकील को हथकड़ी लगाना गैरकानूनी था और उसने बेदी के तबादले की सिफारिश की। जिसके बाद उनके डीसीपी पद से हटा दिया गया, लेकिन वकीलों ने बेदी का विरोध करना नहीं छोड़ा। वहीं मंगलवार को कुछ पुलिसकर्मियों ने बेदी का बड़ा पोस्टर हाथ में ले रखा था जिसमें ‘‘किरण बेदी शेरनी हमारी'' और ‘‘हमारा पुलिस कमीशनर कैसा हो, किरण बेदी जैसा हो'' जैसे नारे लिखे हुए थे। बेदी अभी पुडुचेरी की उपराज्यपाल हैं।

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