Edited By Seema Sharma,Updated: 04 Jul, 2018 12:47 PM
सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच पैदा हुए मतभेदों को लेकर सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान का पालन सबकी ड्यूटी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि संसद द्वारा बनाया गया कानून सबके लिए है और यह कानून सबसे ऊपर है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच पैदा हुए मतभेदों को लेकर सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान का पालन सबकी ड्यूटी है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अलग-अलग, परंतु सहमति वाले फैसले में कहा कि संसद द्वारा बनाया गया कानून सबके लिए है। कोर्ट ने सलाह दी कि दिल्ली सरकार और एलजी आपसी तालमेल से काम करे। न्यायमूर्ति मिश्रा ने साथी न्यायाधीश- न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी एवं न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ा। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपना-अपना फैसला अलग से सुनाया।
एलजी पर कोर्ट की टिप्पणी
- उपराज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 239एए के प्रावधानों को छोड़कर अन्य मुद्दों पर दिल्ली सरकार की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं।
- उपराज्यपाल कानून व्यवस्था, पुलिस और भूमि संबंधी मामलों के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार हैं लेकिन अन्य मामलों में उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होगी।
- उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद के प्रत्येक निर्णय को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।
- उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार के कामकाज में बाधा नहीं डालनी चाहिए।
- उपराज्यपाल को स्वतंत्र अधिकार नहीं सौंपे गए हैं। उन्हें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि निर्णय वह नहीं बल्कि मंत्री परिषद लेगी ।
दिल्ली सरकार पर कोर्ट का फैसला
- जनता द्वारा चुनी गई सरकार के पास असली ताकत है।
- दिल्ली सरकार को अपराज्यपाल को हर कामकाज की जानकारी देनी चाहिए।
- दिल्ली सरकार को हर मामले में एलजी की सहमति की जरूरत नहीं है।
- विधानसभा के फैसलों के लिए भी उपराज्यपाल की सहमति जरूरी नहीं है।
- उपराज्यपाल की भूमिका राष्ट्रहित का ध्यान रखना है, वे मंत्रिमंडल के फैसले को अटका नहीं सकते।
उल्लेखनीय है कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिका दायर की थीं। इस पर न्यायालय का यह फैसला सामने आया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी का प्रशासनिक प्रमुख बताया था। दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इन अपीलों पर सुनवाई शुरू की थी जो 6 दिसंबर, 2017 को पूरी हुई थी।