नवरात्र के चौथे दिन करें कांगड़ा देवी का Live दर्शन: खास रस्म को रखा जाता है गुप्त

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Sep, 2017 08:31 AM

live view of kangra devi

आज नवरात्र का चौथा दिन है, इस दिन मां कुष्माण्डा का पूजन किया जाता है। पंजाब केसरी की टीम आज आपको दर्शन करवाएगी कांगड़ा देवी का। देवभूमि हिमाचल में देवी-देवताअों के कई प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर हैं।

आज नवरात्र का चौथा दिन है, इस दिन मां कुष्माण्डा का पूजन किया जाता है। पंजाब केसरी की टीम आज आपको दर्शन करवाएगी कांगड़ा देवी का। देवभूमि हिमाचल में देवी-देवताअों के कई प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर हैं। वहीं कांगड़ा में बज्रेश्वरी देवी माता का मंदिर स्थित है। इस स्थान को नगरकोट की रानी के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। यहां तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में मां की तीन पिण्डियों की पूजा होती है। मां सती का बायां वक्षस्थल यहां गिरने से इसे स्तनपीठ भी कहा गया है। 

 

मां बज्रेश्वरी देवी के धाम के बारे मे कहते हैं कि जब मां सती ने पिता के द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब क्रोधित शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए।


मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है। माता बज्रेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष है क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। कहते हैं ब्रजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख संप्रदाय का प्रतीक है। 


मंदिर परिसर में भगवान लाल भैरव का मंदिर भी है। मंदिर में विराजित लाल भैरव की प्रतिमा लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी बताई गई है। कहा जाता है कि जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस प्रतिमा की आंखों से आंसू अौर शरीर से पसीना आने लगता है। उसके बाद पुजारी विशाल हवन का आयोजन करते हैं अौर मां से इस विपदा को टालने के लिए प्रार्थना करते हैं। मां के आशीर्वाद से आने वाली आपदा टल जाती है। कहा जाता है कि यहां ऐसा कई बार हो चुका है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भैरव बाबा की प्रतिमा बहुत प्राचीन है। वर्ष 1976-77 में इस मूर्ति में आंसू व शरीर से पसीना निकला था। उस समय कांगड़ा में भीषण अग्निकांड हुआ था। उस समय काफी दुकानें जलकर राख हो गई थी। उस घटना के बाद आपदा को टालने के लिए यहां हर वर्ष नवंबर व दिसंबर के मध्य में भैरव जयंती मनाई जाती है। यहां पाठ अौर हवन किया जाता है। 

 

मां ब्रजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर मां की प्रात: आरती संपन्न होती है। खास बात यह है की दोपहर की आरती और मां को भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है। 
 

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