सामाजिक बहिष्कार, परिवार संबंधी चिंताओं से लड़ रहे हैं कोविड-19 योद्धा, परिवार बना रहा है दूरियां

Edited By Anil dev,Updated: 13 May, 2020 05:14 PM

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तेजी से फैल रहे कोविड- 19 काबू करने की कोशिशों में जुटे स्वास्थ्यकर्मी किसी योद्धा की भांति अपनी जान जोखिम में डालकर न केवल एक अदृश्य वायरस के खतरे से लड़ रहे हैं,

गुवाहाटीः तेजी से फैल रहे कोविड- 19 काबू करने की कोशिशों में जुटे स्वास्थ्यकर्मी किसी योद्धा की भांति अपनी जान जोखिम में डालकर न केवल एक अदृश्य वायरस के खतरे से लड़ रहे हैं, बल्कि सामाजिक बहिष्कार, अपने एकाकीपन और अपने परिवारों के अनिश्चित भविष्य की चिंताओं से भी युद्ध कर रहे हैं।

‘गौहाटी मेडिकिल कॉलेज एवं अस्पताल’ (जीएमसीएच) के पंजीयक डॉ. नयन ज्योति बेज अस्पताल में कोरोना वायरस के संदिग्ध मरीजों की जांच के तीन प्रभारी चिकित्सकों में से एक हैं। वह सात मई को अपनी पत्नी एवं चिकित्सक जीता बरूआ को गुवाहाटी से करीब 180 किलोमीटर दूर तेजपुर से लेने गए थे। वह पीठ दर्द के कारण बिस्तर पर थीं। बेज की करीब दो महीने बाद अपनी पत्नी से मुलाकात हुई, लेकिन तभी उन्हें पता चला कि कोविड-19 के मरीज का उपचार कर रहा उनका एक सहकर्मी उसी दिन संक्रमित पाया गया, जिस दिन वह गुवाहाटी से गए थे और एक अन्य सहकर्मी इसके अलग दिन संक्रमित पाया गया। बेज दोनों के संपर्क में आए थे।

बेज ने कहा, ‘‘यह समाचार मिलते ही मैंने मास्क पहन लिया और अपनी पत्नी से दूरी बना ली। हमने एक-दूसरे से दूर बैठकर रात्रि का भोजन किया और हम अलग-अलग कमरों में सोए। मैं उस समय अपनी पत्नी के माथे पर चिंता की लकीरों और लगातार बहते आंसुओं को भूल नहीं सकता।’’ बेज अपनी पत्नी को तेजपुर छोड़कर गुवाहाटी चले गए और उन्होंने अस्पताल में स्वयं को पृथक कर लिया। जांच रिपोर्ट में उनके संक्रमित नहीं पाए जाने पर उन्होंने राहत की सांस ली। तेजपुर के एक अस्पताल में कोविड-19 के संदिग्ध मरीजों की जांच की जिम्मेदारी संभाल रहीं बरूआ ने कहा, ‘‘जब मेरे पति जा रहे थे, तब मैं क्या महसूस कर रही थी, उसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं सकती। हम दो महीने बाद मिले थे और मैं उनका हाथ भी नहीं पकड़ सकती थी।’’ 

बेज गुवाहाटी में अपनी मां, भाई और भाभी के साथ रहते थे। उन्होंने स्वयं को सबसे अलग कर लिया है। वह अपने घर की पहली मंजिल पर अकेले रहते हैं और एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले (डिस्पोजेबल) बर्तनों में खाना खाते हैं। इसी प्रकार डॉ. बी बरूआ कैंसर संस्थान में कार्यरत डॉ. सुमनजीत एस बोरो अपने घर में घरेलू सहायक के लिए बनाए गए कमरे में रह रहे हैं और उन्होंने भी स्वयं को अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथक कर लिया है।

बोरो ने कहा, ‘‘आपको नहीं पता कि कैंसर का कौन सा मरीज संक्रमित हो सकता है। हाल में 16 वर्षीय एक किशोरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसमें संक्रमण का पता चला और उसकी मौत हो गई।’’ बोरो की पत्नी मोनालिसा भी डिब्रूगढ़ में असम मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 मरीजों का उपचार कर रही हैं। जोरहाट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के चिकित्सक बेनेडिक्ट तेरोन ने पश्चिम कारबी आंगलोंग में रहने वाले अपने परिवार को अभी तक यह नहीं बताया है कि वह कोरोना वायरस के मरीजों का उपचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां की मौत हो चुकी है और मेरे पिता बुजुर्ग हैं। वह मेरे दो भाइयों के साथ रहते हैं। मैं उन्हें चिंतित नहीं करना चाहता। यह संक्रमण समाप्त होने और हमारी जीत के बाद शायद मैं उन्हें बता दूंगा।’’ सात दिन की ड्यूटी के बाद तेरोन की पूरी टीम पृथक-वास पर चली जाती है।

तेरोन के सहकर्मी डॉ अनूप आर ने कहा, ‘‘हम जब एक बार पीपीई पहन लेते हैं, तो हम बाहरी दुनिया के कट से जाते हैं। हम खा-पी नहीं सकते और ना ही शौचालय जा सकते हैं। पीपीई ऐसा सुरक्षा उपकरण होता है, जिसमें से हवा अंदर नहीं जा सकती। इसके कारण हमें बहुत पसीना आता है। अपनी पाली के समापन पर जब हम पीपीई उतारते हैं तो ऐसा लगता है कि हमने पूरे शरीर पर भाप ली हो, हम थक जाते हैं और हमारे शरीर में पानी की कमी हो जाती है।’’ 

कोविड-19 के मरीजों का उपचार कर रहे डॉ पार्थ प्रतिम मेधी अपनी आठ माह की बेटी को गले लगाना चाहते हैं, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकते।उन्होंने बताया कि एक संक्रमित मरीज की मौत के बाद उनके अस्पताल के निचले दर्जे के कर्मियों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा था। उनके संक्रमित नहीं पाए जाने के बावजूद पड़ोसी उनके पास नहीं रहना चाहते थे। मेधी ने कहा, ‘‘इन बातों से हमारा दिल टूट जाता है और हमारा मनोबल कमजोर होता है लेकिन लड़ाई जारी है।’’ 

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