Edited By Seema Sharma,Updated: 13 Apr, 2020 11:55 AM
कोरोना वायरस के खतरे के चलते देशभर में लॉकडाउन जारी है। देश में इस संंकट की घड़ी में सुरक्षाकर्मी अपनी ड्यूटी पर तैनात हैं। पुलिस लोगों को लॉकडाउन का पालन करने और सुरक्षित रहने के लिए के लिए अपील कर रहे हैं। इसी बीच खबरें भी आईं कि लॉकडाउन के कारण...
नेशनल डेस्कः कोरोना वायरस के खतरे के चलते देशभर में लॉकडाउन जारी है। देश में इस संंकट की घड़ी में सुरक्षाकर्मी अपनी ड्यूटी पर तैनात हैं। पुलिस लोगों को लॉकडाउन का पालन करने और सुरक्षित रहने के लिए के लिए अपील कर रहे हैं। इसी बीच खबरें भी आईं कि लॉकडाउन के कारण कई सुरक्षाकर्मी कड़ी मशक्कत करके ड्यूटी पर पहुंचे। वहीं इसी दौरान, लॉकडाउन में छत्तीसगढ़ में सशस्त्र बल के एक जवान की मां का निधन हो गया। मां के निधन की खबर सुन जवान को अपने पिता का ख्याल हो आया जो इस दुख की घड़ी में अकेेले पड़ गए। ऐसे में जवान ने मालगाड़ी, ट्रक और पैदल आदि चलकर करीब 1,100 किलोमीटर तक का सफर तय किया और अपने घर पहुंचा।
जवान संतोष यादव ने बताया कि जब मां के निधन की खबर सुनी तो मैं घर पहुंचना चाहता था क्योंकि मेरे पिता इस समय बिल्कुल अकेले हैं। छोटा भाई और एक विवाहित बहन दोनों मुंबई में रहते हैं तथा लॉकडाउन की वजह से उनका गांव पहुंचना मुमकीन नहीं था और ऐसी स्थिति में पिता को भी अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था। यादव ने बताया कि उसने साल 2009 में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल ज्वाइन किया था और 15वीं बटालियन में तैनात है। वह बीजापुर जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात है। जवान ने बाता कि 4 अप्रैल तारीख को पिता का फोन आया तब मां की तबीयत बिगड़ने की खबर मिली। मां को अगले दिन वाराणसी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया और शाम को उनकी मृत्यु की खबर मिली।
जवान यादव ने बताया कि कमांडेंट से मंजूरी मिलने के बाद जगदलपुर पहुंचने के लिए धान से भरे ट्रक पर लिफ्ट ली और उसके बाद में एक मिनी ट्रक से रायपुर से लगभग दो सौ किलोमीटर पहले कोंडागांव तक पहुंचा। यादव ने बताया कि कोंडागांव में पुलिस कर्मियों ने उसे रोक लिया तब उनको अपनी स्थिति बताई। ऐसे में एक परिचित अधिकारी ने दवाइयों वाले एक वाहन से रायपुर तक पहुंचने में मदद की। इसके बाद रायपुर से अपने गांव के निकटतम रेलवे स्टेशन चुनार तक का सफर आठ माल गाड़ियों से किया। फिर करीब 5 किलोमीटर चलकर गंगा नदी तक पहुंचा और नाव से गंगा नदी पार कर 10 अप्रैल को अपने गांव पहुंचा।