Edited By Anil dev,Updated: 18 Mar, 2019 12:09 PM
देश में हर 5 साल बाद सबसे बड़ा लोकतांत्रिक महापर्व होता है। 17वीं लोकसभा के इस महापर्व का डंका बज चुका है। ऐसे में आपको बताने जा रहे हैं कि हमारे देश का लोकतंत्र अरबों रुपए में लिपटा हुआ है।
जालंधर(सूरज ठाकुर): देश में हर 5 साल बाद सबसे बड़ा लोकतांत्रिक महापर्व होता है। 17वीं लोकसभा के इस महापर्व का डंका बज चुका है। ऐसे में आपको बताने जा रहे हैं कि हमारे देश का लोकतंत्र अरबों रुपए में लिपटा हुआ है। महापर्व में खर्च होने वाले अरबों रुपए को कारोबार की संज्ञा देना कहां तक उचित है यह चिंतन का विषय है। चुनावी पर्व में हिस्सा ले रहे 7 बड़े राष्ट्रीय दल वर्तमान में 34.65 अरब की संपत्ति के मालिक हैं। भाजपा के 2014 में सत्तासीन होने के बाद इसकी संपत्ति में 47.37 व आय में 68.55 फीसदी बढ़ौतरी हुई जबकि अन्य 6 राष्ट्रीय दलों की आय और संपत्ति में गिरावट आई है।
संपत्ति अर्जित करने में भाजपा अव्वल
चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों के सबमिट किए गए 2017-18 के लेखे-जोखे के मुताबिक भाजपा सर्वाधिक आय वाली पार्टी है। इन आंकड़ों के मुताबिक 7 दलों भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सी.पी.आई., सी.पी.आई.-एम., एन.सी.पी. व बी.एस.पी. के पास करीब 3,456 करोड़ रुपए की संपत्ति है जिसमें से अकेले भाजपा की संपत्ति ही करीब 1,483 करोड़ रुपए की है। 2014 लोकसभा चुनाव से पहले वित्तीय वर्ष 2013-14 में भाजपा की आय 324.16 करोड़ थी, वहीं सत्ता संभालने के बाद करीब साढ़े 4 सालों में यह बढ़कर 1,027.33 करोड़ पहुंच गई। इसी तरह भाजपा की संपत्ति 2013-14 में 780.74 करोड़ थी जो 2017-18 में बढ़कर 1,483.33 करोड़ हो गई।
सभी दलों की कुल आय का 73 फीसदी पैसा भाजपा के पास
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 7 बड़े राष्ट्रीय दलों की 2017-2018 में कुल आय 1,398.59 करोड़ रुपए है जिसमें से 73.45 फीसदी पैसा भाजपा के पास ही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा की आय कांग्रेस से 80 फीसदी ज्यादा है। 2013-14 में भाजपा की 780.74 करोड़ और कांग्रेस की 767.23 करोड़ रुपए की संपत्ति थी जबकि अब भाजपा की संपत्ति कांग्रेस से 51 फीसदी ज्यादा हो चुकी है।
कहां से आता है पैसा
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 बी के मुताबिक भारत में कोई भी राजनीतिक दल व्यक्तिगत, कॉर्पोरेट और विदेशी नागरिकों से चंदा ले सकता है। राजनीतिक दल केवल सरकारी कंपनी या फिर विदेशी कंपनी से चंदा नहीं ले सकते। अगर विदेशी कंपनी भारत में मौजूद हो तब भी राजनीतिक दल उससे चंदा नहीं ले सकते। विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम, 1976 की धारा 3 और 4 के मुताबिक भारतीय राजनीतिक दल विदेशी कंपनियों और भारत में मौजूद ऐसी कंपनियों से चंदा नहीं ले सकते जिनका संचालन विदेशी कंपनियां कर रही हैं।
उम्मीदवारों के खर्चे की सीमा
चुनाव आयोग ने हाल ही में प्रत्येक लोकसभा सीट के लिए व्यय सीमा बड़े राज्यों में 40 लाख से बढ़ाकर 70 लाख रुपए और छोटे राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए यह सीमा 22 लाख से बढ़ाकर 54 लाख रुपए कर दी है। सनद रहे कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए खर्च की सीमा 70 लाख ही है। विधानसभा में चुनाव के लिए बड़े राज्यों में चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा 16 लाख से बढ़ाकर 28 लाख रुपए कर दी गई है।
चंदा लेने की कोई सीमा नहीं
कंपनियां राजनीतिक दलों को कितना चंदा दे सकती हैं इसको लेकर अलग-अलग तरह के प्रावधान हैं, मसलन 3 साल से कम समय वाली कंपनी राजनीतिक चंदा नहीं दे सकती। कंपनी एक्ट की धारा 293ए के मुताबिक कोई भी कंपनी अपने सालाना मुनाफे की 5 फीसदी तक की राशि को चंदे के तौर पर दे सकती है। वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों के लिए चंदा लेने के लिए कोई सीमा नहीं है। 20 हजार रुपए से कम के चंदे के बारे में चुनाव आयोग को बताना जरूरी नहीं है।
सत्ता खोने के बाद कांग्रेस की आय
2014 में सत्ता खोने के बाद कांग्रेस पार्टी की माली हालत में गिरावट आई है। कॉर्पोरेट्स की डोनेशन कम होने के कारण 2013-14 में जहां कांग्रेस की आय 644.33 करोड़ थी, वहीं 2017-18 में यह घट कर 69.1 प्रतिशत के साथ 199.15 करोड़ रह गई। कांग्रेस की संपत्ति में भी पिछले करीब 5 सालों में 5.5 फीसदी गिरावट आई है। 2013-14 में पार्टी के पास 767.23 करोड़ रुपए की संपत्ति थी जो मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक 724.35 करोड़ रह गई है।