Election Diary: जब 182 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी BJP

Edited By Anil dev,Updated: 06 Apr, 2019 01:25 PM

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वर्ष 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में अस्थिरता का दौर समाप्त नहीं हुआ तथा एक बार फिर किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनायी जो ज्यादा चल नहीं सकी। इस चुनाव में कांग्रेस को देश के सबसे बड़े...

नई दिल्ली: वर्ष 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में अस्थिरता का दौर समाप्त नहीं हुआ तथा एक बार फिर किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनायी जो ज्यादा चल नहीं सकी। इस चुनाव में कांग्रेस को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं मिली। उसका पंजाब और तमिलनाडु में भी सफाया हो गया था जबकि भाजपा अपनी स्थिति कुछ बेहतर की और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे थे।  कांग्रेस का न केवल उत्तर प्रदेश में सफाया हुआ था बल्कि नेहरु-गांधी परिवार की सीट अमेठी भी उसके हाथ से निकल गयी। पश्चिम बंगाल में उसे केवल एक सीट से संतोष करना पड़ा था। 


कांग्रेस को मिली थी कुल 141 सीटें
दूसरी ओर भाजपा ने राजनीति को नई दिशा देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी तथा दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी कुछ सीटें जीत ली थी। कांग्रेस को कुल 141 सीटें मिली थी जबकि भाजपा 182 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को नौ, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को 32, समाजवादी पार्टी (सपा) को 20 , जनता दल (जद) को छह, समता पार्टी को 12, अन्नाद्रमुक को 18, बीजू जनता दल (बीजद) को नौ तथा कुछ अन्य राजनीतिक दलों को सीटें मिली थी। इस चुनाव में सात राष्ट्रीय पार्टियों, 30 राज्य स्तरीय पार्टियों तथा 40 निबंधित दलों ने आम चुनाव में अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। 

राष्ट्रीय पार्टियों को मिला था 67.98 प्रतिशत वोट
लोकसभा की 543 सीटों के लिए हुए इस चुनाव में 60 करोड़ 58 लाख से अधिक मतदाताओं में से 61.97 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इस चुनाव में कुल 4750 उम्मीदवारों में से 1915 निर्दलीय थे। राष्ट्रीय पार्टियों के 1493 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे जिनमें से 387 विजई हुए थे। राष्ट्रीय पार्टियों को 67.98 प्रतिशत वोट मिला था। राज्य स्तरीय पार्टियों ने 471 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 101 निर्वाचित हो गए थे। निबंधित पार्टियों के 871 उम्मीदवारों में से 49 चुने गये थे। अपने दमखम पर चुनाव लड़े 1915 निर्दलीय प्रत्याशियों में से छह जीते थे।  कांग्रेस ने इस चुनाव में 477 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 141 निर्वाचित हुए थे। उसे 25.82 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा ने 388 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 182 विजयी हुए थे। उसे 25.59 प्रतिशत वोट मिले थे। समता पार्टी के 57 प्रत्याशियों में से 12, भाकपा के 58 में से नौ तथा माकपा के 71 में से 32 उम्मीदवारों की जीत हुई थी।  


कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 22, असम में दस, बिहार में पांच, गोवा में दो, गुजरात में सात, हरियाणा में तीन, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, अंडमान निकोबार और लक्ष्यद्वीप में और नागालैंड में एक-एक, कर्नाटक में नौ, केरल में आठ, मध्य प्रदेश में दस, महाराष्ट्र में 33, राजस्थान में 18, मेघालय में दो, ओडिशा में पांच सीट मिली थी। भाजपा को उत्तर प्रदेश में 57, बिहार में 20, आन्ध्र प्रदेश में चार, गुजरात में 19, असम, हरियाणा में एक-एक , हिमाचल प्रदेश में तीन, जम्मू-कश्मीर में दो, कर्नाटक में 13, मध्य प्रदेश में 30, महाराष्ट्र में चार, ओडिशा में सात, दिल्ली में पांच, पंजाब में तीन, राजस्थान में पांच, तमिलनाडु में तीन, पश्चिम बंगाल, चंडीगढ, दादर नागर हवेली और दामनदीव में भी एक-एक सीट मिली थी। भाकपा को आन्ध्र प्रदेश में दो, केरल में दो, मणिपुर में एक, तमिलनाडु में एक और पश्चिम बंगाल में तीन सीटें मिली थी। 

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जनतादल को बिहार में एक, आन्ध्र प्रदेश में एक, कर्नाटक में तीन और पंजाब में एक सीट मिली थी। जनता पार्टी को तमिलनाडु में एक सीट मिली थी जबकि समता पार्टी को बिहार में दस और उत्तर प्रदेश में दो सीटें मिली थी। राजद को बिहार में 17, अकाली दल को पंजाब में आठ, बीजद को ओडिशा में नौ, अन्नाद्रमुक को तमिलनाडु में 18, द्रमुक को इसी राज्य में पांच और पांडिचेरी में एक सीट मिली थी।  बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को उत्तर प्रदेश में चार और हरियाणा में एक सीट मिली थी। तेलगू देशम पार्टी को आन्ध्र प्रदेश में 12 तथा शिवसेना को महाराष्ट्र में छह सीटें मिली थी। निर्दलीय उम्मीदवारों को उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम, मिजोरम, राजस्थान और तमिलनाडु में एक-एक लोकसभा क्षेत्र में कामयाबी मिली थी।  उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भाजपा प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी ने सपा के मुजज्फर अली को दो लाख से अधिक मतों से हराया था जबकि अमेठी में गांधी परिवार के नजदीकी सतीश शर्मा को भाजपा के उम्मीदवार संजय सिंह ने पराजित किया था। 

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नैनीताल क्षेत्र में कांग्रेस नेता नारायणदत्त तिवारी भाजपा की इला पंत से हार गये थे। सपा के मुलायम सिंह यादव संबल सीट पर भाजपा के धर्मपाल यादव से भारी मतों से चुनाव जीत गये थे।  इस चुनाव में पीलीभीत से मेनका गांधी निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में जीती थी। रामपुर में भाजपा के टिकट पर मुख्तार अब्बास नकवी निर्वाचत हुए थे। अकबरपुर में बसपा नेता मायावती ने सपा उम्मीदवार को हराया था जबकि बलिया में समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर चन्द्रशेखर निर्वाचित हुए थे।  बिहार में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में जनता दल के टिकट पर राम विलास पासवान ने समाजवादी जनता पार्टी के राम सुन्दर दास को हराया था। समता पार्टी के उम्मीदवार नीतीश कुमार ने बाढ में राजद के विजय कृष्ण को हराया था। राजद के लालू प्रसाद यादव ने जनता दल के शरद यादव को तथा नालंदा में समता पार्टी के जार्ज फर्नाडीस ने राजद के राम स्वरुप प्रसाद को पराजित किया था। 

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तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कलकत्ता दक्षिण सीट पर माकपा के प्रशांत सूर को हराया था। भाकपा के दिग्ग्ज नेता इन्द्रजीत गुप्त मिदनापुर में भाजपा पर तथा माकपा के सोमनाथ चटर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के हरिचन्द्र गौड़ पर जीत दर्ज की थी। दक्षिण दिल्ली में भाजपा की सुषमा स्वराज ने कांग्रेस के अजय माकन को भारी मतों से हराया था ।  राजस्थान के बीकानेर सीट पर कांग्रेस के बलराम जाखड़ तथा जोधपुर में इसी पार्टी के अशोक गहलोत निर्वाचित हुये थे। कांग्रेस ने दोनों स्थानों पर भाजपा उम्मीदवारों को हराया था। झालावाड़ में भाजपा की वसुन्धरा राजे निर्वाचित हुई थी। पंजाब में जनता दल के इन्द्र कुमार गुजराल ने कांग्रेस के उमराव सिंह को हराया था।  महाराष्ट्र के बारामती में कांग्रेस नेता शरद पवार ने भाजपा के बिरज बाबू लाल तथा लातुर में कांग्रेस के शिवराज पाटिल ने भाजपा के गोपालराव पाटिल को हराया था। पावार को पांच लाख 29 हजार से अधिक वोट मिले थे जबकि भाजपा उम्मीदवार दो लाख 60 हजार से कुछ अधिक वोट पाने में सफल हुए थे।  

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