69 साल में 5 गुना बढ़ी चुनाव लडऩे वाले क्षेत्रीय दलों की संख्या

Edited By Anil dev,Updated: 16 Mar, 2019 12:13 PM

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लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है। लगभग सभी बड़े दल विभिन्न दलों से गठबंधन और प्रत्याशी चयन के जोड़-तोड़ में लगे हैं। चुनाव आयोग द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार 2019 लोकसभा चुनावों के लिए आयोग...

जालन्धर(विशेष): लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है। लगभग सभी बड़े दल विभिन्न दलों से गठबंधन और प्रत्याशी चयन के जोड़-तोड़ में लगे हैं। चुनाव आयोग द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार 2019 लोकसभा चुनावों के लिए आयोग के पास कुल 2,354 पाॢटयां रजिस्टर्ड हुई हैं। यह संख्या 2014 के चुनावों के लिए रजिस्टर्ड 1,709 दलों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। हालांकि ये सभी दल मैदान में नहीं उतरते और चुनाव लडऩे वाले दलों की वास्तविक संख्या कहीं कम होती है लेकिन फिर भी पिछले चुनावों पर नजर डालें तो जहां 69 सालों में चुनाव लडऩे वाले राष्ट्रीय दलों की संख्या में 8 गुना इजाफा हुआ है, वहीं क्षेत्रीय दलों की संख्या भी 5 गुना तक बढ़ी है। 

1951 में 53 से 2014 में 464 पर
साल 1951 में पहली लोकसभा के लिए हुए चुनावों में आयोग के पास दर्ज राष्ट्रीय दलों में से 53 दलों ने हिस्सा लिया था। साल दर साल इस संख्या में इजाफा होता रहा और 2014 के चुनावों में यह आंकड़ा लगभग 8 गुना बढ़कर 464 पर पहुंच गया। हालांकि 1998 और 1999 के चुनावों में यह संख्या 1996 की तुलना में कम रही। 1996 में जहां 209 राष्ट्रीय दल मैदान में थे, वहीं 1998-99 में यह आंकड़ा क्रमश: 176 और 169 था।

34 से 182 पर पहुंचा क्षेत्रीय दलों का आंकड़ा
क्षेत्रीय दलों की बात करें तो 1951 में 34 दलों ने चुनाव में हिस्सा लिया था, जो 2014 में लगभग 5 गुना बढ़कर 182 पर पहुंच गया। इस दौरान 1998 को छोड़कर लगभग हर चुनाव में क्षेत्रीय दलों की संख्या बढ़ती ही रही। 1996 के 129 दलों के मुकाबले 1998 में यह आंकड़ा घटकर 101 रह गया था।  

आखिर क्यों रजिस्टर्ड होते हैं इतने अधिक दल
चुनाव विश्लेषकों की मानें तो प्रत्येक लोकसभा चुनाव से पहले आयोग के पास रजिस्टर्ड होने वाले दलों की संख्या बढ़ती ही रहती है। इसके पीछे एक कारण जहां चुनावी चंदे के नाम पर काले धन को सफेद करना होता है, वहीं स्थानीय स्तर पर किसी प्रत्याशी पर दबाव बनाने के लिए इन दलों का उपयोग किया जाता है। किसी प्रत्याशी के खिलाफ नामांकन दाखिल करने के बाद नाम वापस लेने के बीच धन के लेन-देन व अन्य मसलों को दबाव की राजनीति के जरिए सुलझाया जाता है। हालांकि चुनाव विश्लेषक काले धन को सफेद करने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं बता सके।

4 गुना से ज्यादा बढ़ गए प्रत्याशी
जालंधर (विशेष): पिछले 69 वर्षों के दौरान चुनावों में हिस्सा लेने के लिए दिलचस्पी बढ़ी है। हालांकि चुनावों के दौरान हजारों उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो जाती है, लेकिन इसके बावजूद पिछले 16 चुनावों में हिस्सा लेने वाले उम्मीदवारों की संख्या 4 गुना से ज्यादा बढ़ गई है। हालांकि 1996 के दौरान देश में सबसे ज्यादा उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन पिछले 5 चुनावों के दौरान ये संख्या बढ़ रही है। अब तक हुए आम चुनावों में कुल 83,160 प्रत्याशी किस्मत आजमा चुके हैं। इसमें सबसे कम 1519 प्रत्याशी 1957 में और 1996 के चुनावों में सबसे अधिक 13952 प्रत्याशी मैदान में थे। 

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