कृषि प्रधान देश, संसद में सिर्फ 5 किसान

Edited By Anil dev,Updated: 26 Apr, 2019 11:31 AM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही किसान वोटों को हासिल करने के लिए चुनावी सभा और चुनाव मैनीफैस्टो में बड़े-बड़े दावे और वायदे कर रहे हों लेकिन कृषि को लेकर संसद का कड़वा सच यह है कि रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर करने...

इलैक्शन(संजीव शर्मा): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही किसान वोटों को हासिल करने के लिए चुनावी सभा और चुनाव मैनीफैस्टो में बड़े-बड़े दावे और वायदे कर रहे हों लेकिन कृषि को लेकर संसद का कड़वा सच यह है कि रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर करने वाली 80 फीसदी आबादी का संसद में प्रतिनिधित्व करने के लिए महज 5 सांसद हैं और 543 के सदन का यह 1 फीसदी भी नहीं है। उससे भी कड़वी सच्चाई यह है कि खेती के मामलों की संसद की समिति में 20 में से 10 सांसद बिल्डर और बिजनैसमैन हैं। यही कारण है कि संसद में कृषि जैसे मुद्दे पर न तो कभी मत विभाजन की नौबत आती है और न ही कृषि से जुड़े मुद्दों पर देश की शीर्ष संस्था गंभीरता दिखाती है। नतीजा यह है कि देश की कृषि ग्रोथ की रफ्तार महज 3.8 फीसदी है और किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हैं।  

भाजपा देगी पेंशन
भाजपा ने छोटे किसानों को 6,000 प्रति वर्ष देना शुरू कर दिया है। उसका वायदा है कि 60 साल से अधिक आयु वर्ग के किसानों को पैंशन भी दी जाएगी।

कांग्रेस देगी अलग बजट 
किसानों की कर्ज माफी के मुद्दे पर 3 राज्यों में (कर्नाटक समेत 4) सत्ता में आई कांग्रेस का कहना है कि अगर केंद्र में दोबारा हमारी सरकार आई तो अलग से किसान बजट पेश होगा। 

विधानसभा चुनाव में लहलहाई वोटों की फसल 
3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस मुद्दे ने जिस तरीके से अपना असर दिखाया है उसके बाद सभी पाॢटयों ने किसानों को लेकर बड़े-बड़े दावे-प्रति दावे किए हैं। रजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सत्ता में आते ही किसानों का कर्ज माफ करने का वायदा किया था। इसका असर भी पड़ा और जो कांग्रेस रसातल में जा रही थी उसे नवजीवन मिल गया। उससे पहले कर्नाटक और पंजाब में भी किसानों की कर्ज माफी का नारा अपना असर दिखा चुका था। ऐसे में लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही घोषणापत्र किसानों के लिए वायदों से भरे पड़े हैं। कांग्रेस ने कहा है कि सत्ता मिली तो देश में अलग से किसान बजट पेश किया जाएगा। भाजपा ने फिर से सत्तासीन होने पर किसानों को 1 लाख तक का कर्ज बिना ब्याज के देने का वायदा किया है। भाजपा ने सीमान्त किसानों को 60 साल के बाद पैंशन देने की बात भी कही है। देखना होगा कि इस बार किसान का वोट किस तरफ  जाता है।  

 सिर्फ 1 फीसदी सांसद किसान 
लोकसभा सदस्यों के पेशे का अध्ययन करने से पता चलता है कि लोकसभा में सिर्फ  1 फीसदी सांसद ऐसे हैं जो किसान हैं। इनकी कुल संख्या 5 है। हालांकि 15 फीसदी सांसद ऐसे हैं जो एग्रीकल्चरिस्ट हैं। सामान्यत: दोनों शब्दों का एक ही अर्थ लिया जाता है लेकिन लोकसभा की वैबसाइट ने इसका महीन वर्गीकरण करते हुए इन्हें 2 श्रेणियों में विभाजित किया है यानी खुद खेती करने वाले और खेती करवाने वाले अलग-अलग माने गए हैं। केवल एक सांसद ऐसा है जो बागवान है। खैर दोनों को मिला भी दिया जाए तो भी तस्वीर ज्यादा सुर्ख नहीं है। कुल 543 सांसदों का प्रोफाइल बताता है कि 16वीं लोकसभा में 44 सांसद ऐसे थे जिन्हें किसान/कृषक कहा जा सकता है। हालांकि पेशे के हिसाब से लोकसभा में सबसे बड़ी जमात समाजसेवियों की है जिनका प्रतिशत 28 है। ऐसे सांसदों की कुल संख्या 77 है। किसानों से अधिक संख्या ऐसे सांसदों की है जो बिजनैसमैन/उद्योगपति हैं।    

 केंद्रीय कृषि मंत्री की स्थिति 
केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के पास 16 एकड़ जमीन है। इसमें से आधी उन्हें विरासत में मिली है और आधी उन्होंने वर्ष 2000 में खरीदी थी। 18 साल में उन्होंने एक भी खेत/कृषि योग्य भूखंड नहीं खरीदा। उनकी कुल संपत्ति अढ़ाई करोड़ है जिसमेंसे अधिकांश हिस्सा वेतन और किराए के रूप में दर्शा रखा है। वह 1989 में मोतिहारी से चुनकर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे और इस बार उनका 5वां कार्यकाल था। उनके प्रोफाइल में कहीं भी उनकी कृषि आधारित पृष्ठभूमि दर्ज नहीं है। हालांकि चुनावी हलफनामे में हर बार उनकी आय का मुख्य स्रोत कृषि, वेतन और किराया दर्शाया जाता है। 

कृषि स्टैंडिंग कमेटी में भी किसानों का टोटा 
लोकसभा की कृषि पर बनाई गई स्टैंडिंग कमेटी का हाल भी अलग नहीं है। इसमें 20 लोकसभा सदस्य हैं लेकिन यह कमेटी महज सांसदों को एडजस्ट करने वाली ही प्रतीत होती है। इसमें सिर्फ  4 सांसद ऐसे हैं जो कृषक हैं। कमेटी में बिल्डर, बिजनैसमैन और अन्य काम-धंधा करने वालों की संख्या 10 है। शेष समाजसेवी हैं। 

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