Edited By Anil dev,Updated: 15 Dec, 2018 10:19 AM
लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस बड़ी कुर्बानी देने जा रही है। कांग्रेस इन चुनावों में करीब 300 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उसने इनमें से 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस पिछले चुनाव में 464 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस...
नई दिल्ली (नरेश कुमार): लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस बड़ी कुर्बानी देने जा रही है। कांग्रेस इन चुनावों में करीब 300 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उसने इनमें से 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस पिछले चुनाव में 464 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस लिहाज से वह सहयोगियों की खातिर 164 सीटों की कुर्बानी देगी।
7 राज्य, 269 सीटें, 90 कांग्रेस को!
कांग्रेस उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, झारखंड, केरल, कर्नाटक में क्षेत्रीय दलों के सामने झुक कर समझौता कर सकती है। इन 4 राज्यों में लोकसभा की 269 सीटें हैं। कांग्रेस को इनमें से 90 सीटें मिलने का अनुमान है जबकि अन्य 179 सीटें वह अपने सहयोगियों के लिए छोड़ेगी। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में यदि कांग्रेस सपा और बसपा गठबंधन का हिस्सा बनी तो उसे 80 सीटों में से 7 सीटें मिल सकती हैं जबकि बिहार में भी महा गठबंधन का हिस्सा बनने पर उसे राज्य की 40 में से 8 सीटें मिलने की संभावना है। कांग्रेस पहले राजद के साथ गठबंधन के दौरान 15 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है। तमिलनाडु में कांग्रेस का डी.एम.के. के साथ गठबंधन लगभग तय माना जा रहा है। यहां कांग्रेस को राज्य की 39 में से 8 सीटें मिल सकती हैं। हालांकि डी.एम.के. ने उसे 5 सीटों का ऑफर दिया है जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस एन.सी.पी. के साथ मिलकर 24-24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यदि इन दोनों के गठबंधन में कोई छोटी पार्टी भी शामिल हुई तो दोनों दल अपने-अपने हिस्से की एक या दो सीटें छोड़ेंगे। झारखंड विकास पार्टी व झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठजोड़ करेगी और उसे राज्य की 14 में से 8 सीटें मिलने का अनुमान है। इसी प्रकार कर्नाटक में कांग्रेस का जे.डी.एस. के साथ तालमेल है और राज्य की 28 सीटों में से कांग्रेस को 8 सीटें जे.डी.एस. के लिए छोडऩी पड़ सकती हैं। केरल में कांग्रेस पिछले चुनाव के दौरान 15 सीटों पर लड़ी थी और उसका केरल, कांग्रेस और अन्य छोटी पाॢटयों के साथ करार है। लिहाजा यहां कांग्रेस एक बार फिर 15 सीटों पर ही चुनाव लड़ सकती है।
इन राज्यों में समझौता करेगी कांग्रेस
राज्य |
कुल सीटें |
संभावित सीटें |
उत्तर प्रदेश |
80 |
07 |
बिहार |
40 |
08 |
कर्नाटक |
28 |
20 |
केरल |
20 |
15 |
झारखंड |
14 |
08 |
महाराष्ट्र |
48 |
24 |
तमिलनाडु |
39 |
08 |
कुल |
269 |
90 |
117 पर सीधा मुकाबला
इन राज्यों के अलावा कई राज्यों में कांग्रेस का भाजपा के साथ सीधा मुकाबला है। पार्टी के रणनीतिकारों ने 7 राज्यों में बिना गठबंधन के चुनाव लडऩे का सुझाव दिया है। पार्टी गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। इन 7 राज्यों में से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा है और 3 राज्यों में पार्टी ने सरकार भी बनाई है। लिहाजा पार्टी नेताओं के हौसले बम-बम हैं।
इन राज्यों में सारी सीटें लड़ेगी
राज्य |
कुल सीटें |
संभावित सीटें |
गुजरात |
26 |
26 |
राजस्थान |
25 |
25 |
दिल्ली |
07 |
07 |
हरियाणा |
10 |
10 |
हिमाचल प्रदेश |
04 |
04 |
उत्तराखंड |
05 |
05 |
मध्य प्रदेश |
29 |
29 |
छत्तीसगढ़ |
11 |
11 |
कुल |
117 |
117 |
कांग्रेस के कम सीटों पर लडऩे के कारण
दरअसल कांग्रेस की इस कुर्बानी के कई कारण हैं। सबसे पहला कारण वह विपक्ष का वोट बिखरने नहीं देना चाहती जबकि दूसरा बड़ा कारण संसाधनों की कमी का है। कांग्रेस के पास पिछले चुनाव जितनी सीटें लडऩे के लिए संसाधन नहीं हैं क्योंकि उसने पिछले 4 सालों के दौरान कई राज्यों में सत्ता गंवाई है और देश के कई राज्यों में कांग्रेस का मजबूत आधार नहीं बचा है। संगठन के स्तर पर भी कांग्रेस में काफी कमजोरियां हैं। इसके अलावा एक सबसे बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ सीधी लड़ाई का संदेश नहीं देना चाहती।
पार्टी को अगली सरकार बनने का भरोसा
कांग्रेस को कम सीटों पर लडऩे का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उसका फोकस अपने प्रभाव वाली सीटों पर रहेगा और इनमें से अधिकतर सीटें जीतने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगा सकेगी। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि यदि लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें 140 के पार गईं तो अगली सरकार कांग्रेस के नेतृत्व में बनेगी। कांग्रेस के नेताओं के इस भरोसे का कारण 2004 का चुनाव है। उस समय कांग्रेस को 145 सीटें हासिल हुई थीं और भाजपा 138 सीटों पर चुनाव जीती थी लेकिन भाजपा केंद्र में सरकार बनाने के लिए गठबंधन नहीं कर पाई थी और यू.पी.ए. की सरकार का गठन हो गया था। यह सरकार 10 साल चली।
असम, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना पर सस्पैंस कायम
इन राज्यों के अलावा पूर्वोत्तर में असम की 14 सीटों पर कांग्रेस अकेले लडऩे की बजाए सहयोगी की तलाश करेगी, जबकि आंध्र प्रदेश व तेलंगाना की 42 सीटों पर भी पार्टी को मजबूत सहयोगी की तलाश रहेगी। इन राज्यों में कांग्रेस के गठबंधन की स्थिति को लेकर सस्पैंस बना हुआ है। तेलंगाना में हाल ही में कांग्रेस द्वारा किया गया प्रयोग फेल रहा है। लिहाजा कांग्रेस या टी.डी.पी. दोनों में से कोई भी लोकसभा चुनाव के दौरान समझौते के लिए तैयार नहीं होगा। सहयोगी न मिलने की स्थिति में कांग्रेस इन तीनों राज्यों की 56 सीटों के अलावा पूर्वोत्तर की अन्य सीटों पर भी अकेले मैदान में उतर सकती है।