सियासत में पूरे हक को तरसती आधी आबादी

Edited By Anil dev,Updated: 10 Apr, 2019 06:10 PM

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दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र में लोकतंत्र का महाकुम्भ शुरू हो रहा है। पहले चरण का मतदान कल है और आखिरी चरण के लिए 19 मई को मतदान होगा। पूरे 90 करोड़ वोटर  543 सांसदों का चुनाव करेंगे।

इलेक्शन डेस्कः ( संजीव शर्मा): दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र में लोकतंत्र का महाकुम्भ शुरू हो रहा है। पहले चरण का मतदान कल है और आखिरी चरण के लिए 19 मई को मतदान होगा। पूरे 90 करोड़ वोटर  543 सांसदों का चुनाव करेंगे। इन 90  करोड़ में से 42 करोड़ महिला मतदाता हैं।उसपर भी सवा सौ सीटें ऐसी हैं जहां महिला मतदाता ज्यादा हैं। जाहिर है कोई भी दल महिलाओं के समर्थन के बिना सत्ता सिंहासन तक नहीं पहुंच सकता। लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पक्ष यह है कि संसद चुनने में बराबरी की हिस्सेदारी रखने वाली महिलाएं संसद में महज 10 फीसदी सीटों पर भी बैठी नहीं दिखतीं। वास्तविकता यह है कि सोलह लोकसभा चुनाव होने के बाद भी देश की राजनीति में महिलाएं हाशिए पर ही दिखती हैं। इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, महिलाओं के संसद में प्रतिनिधित्व के हिसाब से भारत 98वें स्थान पर है। इस मामले में हम नेपाल और पाकिस्तान से भी पीछे हैं।  पाकिस्तान में तो बाकयदा 70 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। तो आज बात भारतीय संसद में  महिलाओं की। 

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पहले चुनाव में 22 महिला सांसद   
पहले ही चुनाव से महिलाओं ने सियासी पारी शुरू कर दी थी।  पहले चुनाव में 22 महिलाएं न सिर्फ चुनकर आई थीं बल्कि उन्होंने मंत्रिमंडल में भी जगह पाई थी।  पहली कैबिनेट में  स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे महकमे का जिम्मा राज कुमारी अमृत कौर को मिला था।  उनके बाद  सुशीला नय्यर  भी नेहरू कैबिनेट में स्वास्थ्यमंत्री रहीं।  वे भी पहले ही चुनाव से चुनकर आ रही थीं। लेकिन जिस शान से यह सफर शुरू हुआ था  उस शान से जारी न रह सका. चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या तो जरूर बढ़ी  लेकिन संसद  पहुंचने  वाली महिलाओं की संख्या में  उस अनुपात में इज़ाफ़ा न हो सका। 2014 के चुनाव में अब तक की सर्वाधिक 61 महिला सांसद  चुनाव जीतकर आई थीं।  
 

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लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

लोकसभा     कुल सीट    चुनाव लड़ीं    निर्वाचित
पहली          489            43            22 
दूसरी          494              45           22
तीसरी        494            66             31
चौथी      518          67            29
पांचवीं       518             86            21
छठवीं        542            70          19
सातवीं       542           143         28
आठवीं      542            162          42
नौवीं        543            198              29
दसवीं       543          326            37
ग्यारहवीं    543          599            40
बारहवीं     543         274              43
तेरहवीं      543      284          49
चौदहवीं   543        355            45
पंद्रहवीं     543       556         59 
सोलहवीं    543        1300         61 



मुस्लिम महिलाओं की स्थिति भी अलग नहीं 
पहले चुनाव में किसी भी मुस्लिम महिला ने हिस्सा नहीं लिया था।  दूसरे आम चुनाव में 1957  में कांग्रेस के टिकट पर दो मुस्लिम महिलाएं, माफिदा अहमद (जोरहट) और मैमूना सुल्तान (भोपाल) से लोकसभा  पहुंचीं। 
 

वर्ष         चुनाव लड़ीं    निर्वाचित
1951-52       00            00 
1957        23              02 
1962      23              02 
1967      29              00  
1971        29              00  
1977      34              03 
1980      49              02  
1984      45              03 
1989      29               00         
1991      27             00  
1996     27             01  
1998     29         00 
1999      31            01 
2004      36            01 
2009    28          03 
2014      20          03 


269 सीटों पर नहीं रही कोई महिला सांसद 
लोकसभा की 543 में से 269 यानी क़रीब आधी सीटों पर आज तक एक भी महिला सांसद नहीं चुनी गई है। इनमे  गांधीनगर,  गुरुग्राम,  मैसूर,  उज्जैन, हैदराबाद और  नालंदा सीटें शामिल हैं.अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और त्रिपुरा राज्य से एक भी महिला सांसद नहीं चुनी गई है। ऐसी 130 सीटें हैं जहां से महिला सांसद सिर्फ़ एक ही बार चुनी गईं हैं, यानी किसी भी लोकसभा चुनाव क्षेत्र से महिला सांसदों का बार-बार चुना जाना कम ही देखा गया है। 1952 में पहली लोकसभा से 2014 में 16वीं लोकसभा तक के आंकड़ों को देखें तो सिर्फ़ 15 सीटें ऐसी हैं जहां महिला सांसद पांच से ज़्यादा बार चुनी गईं। 

1996 से लटका है महिला आरक्षण बिल 
संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिलाने का बिल 1996 से अटका पड़ा है। देवेगौड़ा की सरकार ने संविधान के 81 वें संशोधन के रूप में 12  सितंबर 1996 को महिला आरक्षण बिल पेश किया था। बिल पास होने से पहले ही देवेगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गयी थी और संसद  भंग हो गयी थी। बाद में अलग अलग सरकारों के समय इस बिल को पेश किया गया लेकिन बात अब तक नहीं बन पायी है।   

जब वोट नहीं दे सकीं थीं 28 लाख महिलाएं  
पहले चुनाव में कुल 17 करोड़ 30 लाख मतदाता थे।   इसमें से  8 करोड़ यानी करीब -करीब आधी आबादी महिलाओं की थी। लेकिन इसके बावजूद  इनमें से  28 लाख महिलाएं वोट नहीं दे स्कीन थीं।  इसकी बड़ी अजीब वजह थी।  दरअसल वोटर लिस्ट बनाने वालों को महिलाएं अपना नाम नहीं बता रही थीं। अनपढ़ता या रूढ़िवाद  के चलते कई महिलाओं ने खुद का नाम  किसी पुरुष की बीवी, बहन ,बेटी आदि के रूप में बताया।  ऐसे में उन  महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा देने पड़े क्योंकि उन्होंने अपने नाम ही नहीं बताए। 

शिमला में  हुआ था महिला मताधिकार का फैसला 
भारत में महिलाओं को मताधिकार का फैसला 1935 में शिमला में हुआ था।  लार्ड वेलिंग्टन उस समय वाइसराय थे।  हालांकि  1921 में बॉम्बे और मद्रास (आज की मुंबई और चेन्नई) में सीमित तौर पर महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिए जा चुके थे।  बाद में 1923 से 1930 के बीच सात अन्य प्रांतों में भी महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिला(इम्पीरियल /प्रांतीय ब्रिटिश विधानसभाओं के लिए )। लेकिन बात जब पूरे राष्ट्र की आई तो अंग्रेज नहीं चाहते थे कि भारत में सभी महिलाओं को मतदान का हक़ मिले. इसके पीछे उनकी महिलाओं का शैक्षणिक स्तर कम होने की दलील थी।  हालांकि भारतीय नेता इससे सहमत नहीं थे। बीच में 35 साल की आयु पर यह हक़ देने की बात भी चली। लगातार बातचीत के बाद 1935 में शिमला में हुई एक विशेष बैठक में यह तय कर दिया गया कि भारत में पुरुषों की ही तरह महिलाओं को भी 21 साल की उम्र से मतदान का हक़ होगा।  

पहली महिला मंत्री राज कुमारी अमृत कौर
आज़ादी से पहले बने अंतरिम मंत्रिमंडल का एकमात्र महिला चेहरा राज कुमारी अमृत कौर थीं।  उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था। पहले आम चुनाव के बाद भी वे स्वास्थ्यमंत्री बनीं। पहली दफा राज कुमारी अमृत कौर हिमाचल के मंडी से चुनकर संसद पहुंचीं थीं और खुद नेहरू उनके प्रचार के लिए मंडी गए थे।  वे कपूरथला के राजा हरनाम सिंह की बेटी थीं।  सन 1889 में जन्मी अमृत कौर  की सारी पढ़ाई विदेश में हुई। जब वे भारत लौटीं तो 1919 में महात्मा गाँधी से मिलने के बाद  कांग्रेस से जुड़ गईं।  प्रखर गांधीवादी के रूप में  प्रसिद्ध हुई अमृत कौर 1950 में विश्व हेल्थ असेम्ब्ली की पहली महिला और एशियाई प्रमुख भी चुनी गईं। 1957 से 1964 तक वे राजयसभा की सदस्य भी रहीं। 1964 में उनका देहांत हो गया था।  1989 में उनपर डाक टिकट भी जारी हुआ था।  

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