Edited By shukdev,Updated: 24 Jan, 2020 07:57 PM
भारत में उज्ज्वला कार्यक्रम से गरीब परिवारों तक तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) सिलेंडर की पहुंच तो बढ़ी है लेकिन इसका आगे इस्तेमाल बढ़ाने में मदद नहीं मिली। एक अध्ययन में यह कहा गया है। इसमें कहा गया है कि उज्ज्वला कार्यक्रम से एलपीजी को गरीब...
नई दिल्ली: भारत में उज्ज्वला कार्यक्रम से गरीब परिवारों तक तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) सिलेंडर की पहुंच तो बढ़ी है लेकिन इसका आगे इस्तेमाल बढ़ाने में मदद नहीं मिली। एक अध्ययन में यह कहा गया है। इसमें कहा गया है कि उज्ज्वला कार्यक्रम से एलपीजी को गरीब परिवारों तक पहुंचाने में मदद तो मिली, लेकिन इसके बावजूद इन परिवारों ने भोजन पकाने के लिए अत्यधिक प्रदूषण वाले माध्यमों यानी लकड़ी आदि का इस्तेमाल बंद नहीं किया। कनाडा की यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया (यूबीसी) सहित अन्य शोधकर्ताओं ने अध्ययन में कहा है कि ग्रामीण गरीब परिवारों के बीच रसोई गैस के नियमित इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिकी देशों में करीब 2.9 अरब लोग भोजन आदि पकाने के लिए लकड़ी जैसे ईंधनों का प्रयोग करते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका जन स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक विकास पर उल्लेखनीय रूप से नकारात्मक असर पड़ता है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत भारत सरकार ने गरीब महिलाओं के बीच रसोई गैस सिलेंडर पहुंचाने के लिए पूंजी लागत सब्सिडी उपलब्ध कराई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना के पहले 40 माह के दौरान ही आठ करोड़ परिवारों को एलपीजी स्टोव प्राप्त हुए।‘नेचर एनर्जी' पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि एलपीजी को अपनाने का पूरा लाभ तभी हासिल हो सकता है जबकि यह पूरी तरह प्रदूषित ईंधनों की जगह ले ले। शोधकर्ताओं ने कहा कि घर में सिर्फ एलपीजी सिलेंडर रखा होने से यह लक्ष्य हासिल नहीं हो सकता।
अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के पोस्टडॉक अभिषेक कार ने कहा,‘हमारे शोध से पता चलता है कि उज्ज्वला के जरिए नए उपभोक्ताओं को जोड़ने में मदद मिली, लेकिन इन लोगों ने नियमित रूप से एलपीजी का इस्तेमाल शुरू नहीं किया है। इस अध्ययन में 25 हजार से अधिक उपभोक्ताओं के एलपीजी बिक्री आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इनमें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थी भी शामिल किए गए। अध्ययन में कर्नाटक के कोप्पल जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के सामान्य एलपीजी उपभोक्ताओं को भी शामिल किया गया।