Edited By Anil dev,Updated: 19 Jun, 2018 02:06 PM
महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर देश में पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाने वाले नए राज्य हैं. यहां पॉलीथीन के प्रयोग पर 500 से 25000 तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस प्रतिबंध के लागू होने के बाद से जहां महाराष्ट्र में हड़कंप की स्थिति है
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर देश में पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाने वाले नए राज्य हैं. यहां पॉलीथीन के प्रयोग पर 500 से 25000 तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस प्रतिबंध के लागू होने के बाद से जहां महाराष्ट्र में हड़कंप की स्थिति है वहीं दिलचस्प ढंग से जम्मू कश्मीर में अधिकांश लोगों को यह मालूम भी नहीं है की राज्य में पॉलीथीन तीन माह पहले ही प्रतिबंधित हो चुका है। कुलमिलाकर अब तक देश के 25 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। यह तस्वीर निश्चित ही सुखद और सुर्ख दिखाई देती है। खासकर जब प्लास्टिक कचरे से महासागर कराह रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र तक ने इस वर्ष महासागरों को प्लास्टिक से बचाने के लिए अभियान छेड़ रखा है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है।
तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भारत में प्रतिदिन 15000 टन यानी 1500 ट्रक प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन निकलता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक इसमें से 9000 टन प्लास्टिक पुनर्चक्रित यानी रिसाइकिल हो जाता है लेकिन शेष 6000 टन गलियों , खेतों , नालियों और नदियों को प्रदूषित करता है। यह तो एक दिन की बात है , एक साल की तस्वीर क्या होगी इसका आपका सहज अंदाजा लगा सकते हैं। दरअसल तमाम प्रयासों और उपायों के बावजूद प्लास्टिक / पॉलीथीन कचरे की समस्या न सिर्फ जस की तस बनी हुई है बल्कि लगातार बढ़ भी रही है।
क्या है असल दिक्क्त
दरअसल इस मामले में असल दिक्क्त यह है कि अधिकांश जगहों या राज्यों में पॉलीथीन प्रतिबंध महज कागजी है। या यूं कहलें कि कुछ विश्व बैंक परियोजनाओं और अखबारी वाहवाही के लिए सरकारें प्रतिबंध की घोषणा करती हैं लेकिन वह सही अर्थों में ज़मीन पर नहीं उतर पाता। पॉलीथीन पर सभी राज्यों में एकमुश्त प्रतिबंध नहीं है। कुछ ग्रेड का पॉलीथीन अभी भी स्वीकृत है। इसी की आड़ में प्रतिबंधित पॉलीथीन भी चोरी -छिपे प्रयोग में लाया जा रहा है। उधर पॉलीथीन निर्माण में जुटी कंपनियों का भी स्थानीय सरकारों पर दवाब रहता है। ये सब कारण मिलकर प्रतिबंध को फेल करने का काम करते हैं। होना तो यह चाहिए कि पॉलीथीन निर्माण से लेकर वितरण और प्रयोग तक सभी स्तरों पर सख्ती से बैन सुनिश्चित बनाया जाये ,लेकिन किसी न किसी नियम कायदे की आड़ में शेष चीजें पूर्ववत्त जारी रहती हैं। इसका एक सर्वमान्य हल तमाम तरह के पॉलीथीन पर पूर्ण प्रतिबंध ही है।
कितना नुक्सान ?
गांव, शहर और महानगरों में पॉलीथीन का कचरा आम है। दिल्ली में तो सुप्रीम कोर्ट तक को ऐसे कचरे के पहाड़ को लेकर टिप्पणियां करनी पडी थीं। शोध बताते हैं कि पॉलीथीन के कारण हर साल पूरे विश्व में दस लाख समुद्री पक्षी और एक लाख अन्य समुद्री जीव मर रहे हैं। दुनिया का 90 % प्लास्टिक कचरा जिन दस नदियों में बहता हैं उनमे से दो ,गंगा और ब्रह्मपुत्र भारत में हैं. भारत की ही एक अन्य नदी सिंधु जिसका अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान में बहता है वह भी इस सूची में शामिल है।
हिमाचल ने दिखाई थी राह
सबसे पहले यह प्रतिबंध 2005 में हिमाचल में लगा था। कुछ तय किस्म के पॉलीथीन पर प्रतिबंध से शुरू हुई हिमाचल में पॉलीथीन प्रतिबंध की कहानी अब थर्मोकोल पर प्रतिबंध तक पहुँच गयी है। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पिछले हफ्ते ही राज्य में थर्मोकोल उत्पादों पर बैन की घोषणा की है । प्रदेश में पॉलीथीन प्रतिबंध का असर अन्य राज्यों के मुकाबले साफ़ दिखता भी है। राज्य में पॉलीथीन बैग्स करीब करीब बंद हैं। हालाँकि कुछ जगह चोरी छिपे दूकानदार ऐसे बैग्स रखे हुए हैं। सफाई अभियानों के जरिये भी हिमाचल ने करीब 70 % पॉलीथीन एकत्रित करके उसका निष्पादन किया है। दिलचस्प ढंग से हिमाचल ऐसा पहला राज्य हैं जहां पॉलीथीन कचरे से करीब नब्बे किलोमीटर सड़कें बनाई गयी हैं।
25 पर11 भारी
देश में इस समय 20 राज्यों /केंद्र शासित प्रदेशों में पॉलीथीन पूरी तरह प्रतिबंधित है। पांच राज्यों में पॉलीथीन पर आंशिक प्रतिबंध है। महज 11 राज्य / केंद्र शासित प्रदेश ही ऐसे हैं जिनकी वजह से यह समस्या है।ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि जब सब मालूम है तो क्यों नहीं इन राज्यों में भी पॉलीथीन प्रतिबंधित किया जाता। उस स्थिति में इसके निर्माण पर भी रोक लग जाएगी। ऐसे में पॉलीथीन को समाप्त करने में ज्यादा मदद मिलेगी।