नजरिया: आखिर BJP क्यों और किससे डरी हुई है?

Edited By Anil dev,Updated: 26 Nov, 2019 04:34 PM

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आखिरकार महाराष्ट्र में भी कर्नाटक हो गया। कर्नाटक का अगला पैंतरा मुंबई में काम करेगा या नहीं ये तो वक्त बताएगा लेकिन फिलहाल महाराष्ट्र में तीन दिन बाद फडणवीस और अजित सरकार बिना बहुंमत साबित किए विधानसभा के बजाए प्रेस कांफ्रेंस में ही गिर गई। प्रकरण...

नेशनल डेस्क ( संजीव शर्मा ): आखिरकार महाराष्ट्र में भी कर्नाटक हो गया। कर्नाटक का अगला पैंतरा मुंबई में काम करेगा या नहीं ये तो वक्त बताएगा लेकिन फिलहाल महाराष्ट्र में तीन दिन बाद फडणवीस और अजित सरकार बिना बहुंमत साबित किए विधानसभा के बजाए प्रेस कांफ्रेंस में ही गिर गई। प्रकरण में बीजेपी की जमकर किरकिरी हुई है। 

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अलसुबह लोगों के जागने से पहले कोशियारी जी का फडणवीस और अजित पवार को को शपथ दिलाना पूरे देश को भौचक्क कर गया था। हालांकि उसके बाद  जो बहस बुद्धिजीवी वर्ग में शुरू हुई थी वह उसी निष्कर्ष पर पहुंची है कि बहुमत साबित करना कठिन था। तो क्या बीजेपी ने  महज सत्ता का दुरूपयोग करके बहुमत जुटाने का प्रयास किया था? इसपर चर्चा अब लाजिमी है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल है कि क्या बीजेपी डरी हुई है? क्या उसे सरकारें खोने का डर सताता है ? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि वह लगातार ऐसे प्रयास कर रही है। कर्नाटक में उसने ऐसा ही किया। गुजरात के चुनाव में बाजी बड़ी मुश्किल से जीतने के बाद बीजेपी ने कर्नाटक में राजभवन के दम पर खुद को बेताज साबित करने की कोशिश की। राज्यपाल ने न सिर्फ गठबंधन की सीट संख्या को दरकिनार करके येदुरप्पा को शपथ दिलवाई बल्कि बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का लम्बा वक्त भी दिया। जाहिर है यह सब टाइम गेनिंग प्रक्रिया थी। नाराज कांग्रेस एस और कांग्रेस जब अदालत पहुंचे तो बाजी पलट गई। 

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कोर्ट ने चौबीस घंटे के भीतर बहुमत साबित करने के आदेश दिए और येदुरप्पा लम्बा चौड़ा भाषण पेलकर इस्तीफा देकर चलते बने। बाद में एक साल बाद जरूर वे फिर से तोडफ़ोड़ करके सीएम बन गए, लेकिन इस सबके बीच बीजेपी की सत्ता के लिए भूख को लेकर काफी चर्चा /निंदा हुई। लेकिन दिलचस्प ढंग से हरियाणा का चुनाव होते होते यह भूख डर साबित हो गई। हरियाणा में बीजेपी ने 75 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी का  खूब प्रचार किया। लेकिन जनता ने नकार दिया। बीजेपी को 75 तो दूर जनता ने उसे जो 48 सीटें थीं भी वे भी नहीं लौटाईं और बीजेपी बहुमत के लिए जरुरी 46 सीटें नहीं जीत पाई। इससे बीजेपी बौखला गई। उसने आनन-फानन में जेजेपी से समझौता किया और सरकार बनाने का दावा ठोका गया। यहां तक की गोपाल कांडा भी बीजेपी दफ्तर पहुंच गए। हालांकि कांग्रेस किसी भी स्थिति में सरकार बनाने की सूरत में नहीं थी, लेकिन फिर भी बीजेपी को डर था कि कहीं सारे उसके खिलाफ इक्ट्टा न हो जाएं।

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यह डर इस कदर गहरा था कि नतीजे सम्पूर्ण होने से पहले ही खटटर दिल्ली तलब कर लिए गए और उन्हें उसी दिन प्लान बी समझाकर देर रात सरकार बनाने का दावा पेश करने को कहा गया। आठ घंटे में चंडीगढ़ से दिल्ली और दिल्ली से चंडीगढ़ पहुंचकर किए गए उसी दावे को सही साबित करने के लिए बीजेपी को जेजेपी के साथ एक ऐसा समझौता करना पड़ गया जिसने महाराष्ठ्र में गठबंधन टूटने की नींव रख दी। जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को जैसे ही डिप्टी सीएम बनाया गया उसके ठीक बाद ही शिवसेना ने सीएम पद मांग डाला। शिव सेना को आभास हो गया था कि बीजेपी कमजोर पड़ गई है। हरियाणा में सरकार बनाने के लिए दुष्यंत के साथ अतिरिक्त झुकाव दिखाने की कीमत बीजेपी को मुंबई में चुकानी पड़ी। जबकि वास्तविकता यह थी कि समीकरण ऐसे थे कि दुष्यंत को बीजेपी के साथ ही आना था। बेहतर होता अगर बीजेपी वहां सरकार बनाने की पहल न करती। 

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दूसरा कोई समीकरण  तो फिट नहीं बैठता था, ले देकर मामला उसके पाले में ही आना था। ऐसे में  वो दुष्यंत को महज कैबिनेट मिनिस्टर बनाकर भी सत्ता पा लेती। इसी तरह से बीजेपी महाराष्ट्र में भी काम कर सकती थी। शिवसेना का साथ छूटने के बाद  उसे  उनको ही सरकार बनाने देनी चाहिए थी। ऐसी सरकार भला कितने दिन चलती? लेकिन बीजेपी शायद डर गई कि ऐसा होने दिया तो झारखण्ड में कहीं  इसका असर उल्टा न पड़ जाए और उसकी सरकारें जाने की शुरुआत हो जाए। हालांकि यह डर तो अभी भी बना हुआ है, लेकिन इस डर की वजह से जो किरकिरी बीजेपी की हुई है वह शायद ही भुलाई जा सके।  

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