भारत में पांच वर्ष से कम वर्ष के बच्चों में 69 प्रतिशत मौतों का कारण कुपोषण: यूनीसेफ

Edited By shukdev,Updated: 16 Oct, 2019 10:10 PM

malnutrition causes 69 percent deaths in children under five in india unicef

भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में 69 प्रतिशत मौतों का कारण कुपोषण है। यूनीसेफ की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। अपनी रिपोर्ट ‘ द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2019'' में यूनिसेफ ने कहा कि इस आयु वर्ग में हर दूसरा बच्चा...

नई दिल्ली: भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में 69 प्रतिशत मौतों का कारण कुपोषण है। यूनीसेफ की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। अपनी रिपोर्ट ‘ द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2019' में यूनिसेफ ने कहा कि इस आयु वर्ग में हर दूसरा बच्चा किसी न किसी रूप में कुपोषण से प्रभावित है। इसमें बच्चों का विकास बाधित होने के 35 प्रतिशत मामले, दुर्बलता के 17 प्रतिशत और वजन अधिक होने के दो प्रतिशत मामले हैं। केवल 42 प्रतिशत बच्चों (छह से 23 महीने के आयु वर्ग में) को पर्याप्त अंतराल पर भोजन दिया जाता है और 21 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त रूप से विविध आहार मिलते हैं। 

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रिपोर्ट में कहा गया है कि 6-8 महीने की आयु के केवल 53 प्रतिशत शिशुओं के लिए समय पर पूरक आहार देना शुरू किया जाता है। भारतीय महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में इसमें कहा गया है कि हर दूसरी महिला में खून की कमी है। यह भी कहा गया है कि पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में खून की कमी सबसे अधिक व्याप्त है। किशोर लड़कियों में यह प्रवृत्ति किशोर लड़कों से दोगुनी है।    

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भारतीय बच्चों के बीच उच्च रक्तचाप, किडनी रोग और मधुमेह जैसे वयस्क रोगों का निदान किया जा रहा है। रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों में कहा गया है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से प्रभावित हैं जबकि पांच वर्ष से कम आयु के हर पांचवें बच्चे में विटामिन ए की कमी है, हर तीसरे बच्चे में से एक को विटामिन बी 12 की कमी है और हर पांच में से दो बच्चे खून की कमी से ग्रस्त हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि पोषण अभियान या राष्ट्रीय पोषण मिशन पूरे भारत में पोषण सुरक्षा संकेतकों को बेहतर बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है। 

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रक्तहीनता से लड़ने के लिए ‘एनीमिया मुक्त भारत' कार्यक्रम को कुपोषण को दूर करने के लिए दुनिया भर की सरकारों द्वारा लागू किए गए सबसे अच्छे कार्यक्रमों में से एक माना गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूली बच्चों और किशोरों में मधुमेह (10 प्रतिशत) जैसे गैर-संचारी रोगों के बढ़ते खतरे के साथ बचपन में अधिक वजन और मोटापा शुरू होता है। दशकों में, बढ़ती आमदनी के बावजूद, प्रोटीन-आधारित कैलोरी कम और अपरिवर्तित रहती हैं, और फलों तथा सब्जियों की कैलोरी के हिस्से में गिरावट आई है। 

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रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर प्रसंस्कृत खाद्य बिक्री का 77 प्रतिशत सिर्फ 100 बड़ी फर्मों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि छह महीने और दो वर्ष आयु वर्ग के बीच तीन बच्चों में से लगभग दो बच्चों को भोजन नहीं दिया जाता। इससे बच्चों में मस्तिष्क का पूरा विकास नहीं होने का खतरा, कमजोर प्रतिरक्षण प्रणाली तथा संक्रमण में वृद्धि और कुछ मामलों में मृत्यु होने की आशंका हो जाती है। यूनीसेफ ने 20 साल पहले इस तरह की रिपोर्ट जारी की थी।

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