ममता बनर्जी : भाजपा की चुनावी युद्ध मशीन को हराकर 'दीदी' ने बनाई अपनी खास छवी

Edited By vasudha,Updated: 03 May, 2021 02:35 PM

mamata banerjee history

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के शानदार प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी की छवि एक ऐसे सैनिक और कमांडर के रूप में बनी है जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की चुनावी युद्ध मशीन को भी हरा...

नेशनल डेस्क: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के शानदार प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी की छवि एक ऐसे सैनिक और कमांडर के रूप में बनी है जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की चुनावी युद्ध मशीन को भी हरा दिया। तीसरी बार की यह जीत न सिर्फ राज्य में बनर्जी की स्थिति को और मजबूत करेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में भी मदद करेगी।


 2019 में भाजपा ने दी ममता को चुनौती
बनर्जी ने एक दशक से अधिक पहले सिंगूर और नंदीग्राम में सड़कों पर हजारों किसानों का नेतृत्व करने से लेकर आठ साल तक राज्य में बिना किसी चुनौती के शासन किया। आठ साल के बाद उनके शासन को 2019 में तब चुनौती मिली जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर अपना परचम फहरा दिया। बनर्जी (66) ने अपनी राजनीतिक यात्रा को तब तीव्र धार प्रदान की जब उन्होंने 2007-08 में नंदीग्राम और सिंगूर में नाराज लोगों का नेतृत्व करते हुए वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ राजनीतिक युद्ध का शंखनाद कर दिया। इसके बाद वह सत्ता के शक्ति केंद्र ‘नबन्ना’ तक पहुंच गई।

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स्वयंसेवक के रूप में ममता ने की थी राजनीतिक जीवन की शुरुआत
पढ़ाई के दिनों में बनर्जी ने कांग्रेस स्वयंसेवक के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। यह उनके करिश्मे का ही कमाल था कि वह संप्रग और राजग सरकारों में मंत्री बन गईं। राज्य में औद्योगीकरण के लिए किसानों से ‘जबरन’ भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर वह नंदीग्राम और सिंगूर में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ दीवार बनकर खड़ी हो गईं और आंदोलनों का नेतृत्व किया। ये आंदोलन उनकी किस्मत बदलने वाले रहे और तृणमूल कांग्रेस एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई।

 

1998 में हुई तृणमूल कांग्रेस की स्थापना
बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होने के बाद जनवरी 1998 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और राज्य में कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ संघर्ष करते हुए उनकी पार्टी आगे बढ़ती चली गई। पार्टी के गठन के बाद राज्य में 2001 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो तृणमूल कांग्रेस 294 सदस्यीय विधानसभा में 60 सीट जीतने में सफल रही और वाम मोर्चे को 192 सीट मिलीं। वहीं, 2006 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की ताकत आधी रह गई और यह केवल 30 सीट ही जीत पाई, जबकि वाम मोर्चे को 219 सीटों पर जीत मिली।

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इस बार शुभेन्दु अधिकारी ने दी टक्कर
वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने ऐतिहासिक रूप से शानदार जीत दर्ज करते हुए राज्य में 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका। उनकी पार्टी को 184 सीट मिलीं, जबकि कम्युनिस्ट 60 सीटों पर ही सिमट गए। उस समय वाम मोर्चा सरकार विश्व में सर्वाधिक लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली निर्वाचित सरकार थी।  बनर्जी अपनी पार्टी को 2016 में भी शानदार जीत दिलाने में सफल रहीं और तृणमूल कांग्रेस की झोली में 211 सीट आईं। इस बार के विधानसभा चुनाव में बनर्जी को तब झटके का सामना करना पड़ा जब उनके विश्वासपात्र रहे शुभेन्दु अधिकारी और पार्टी के कई नेता भाजपा में शामिल हो गए।

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भाजपा ने ममता को हराने के लिए झोंक पूरी ताकत
बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मीं बनर्जी पार्टी के कई नेताओं की बगावत के बावजूद अंतत: अपनी पार्टी को तीसरी बार भी शानदार जीत दिलाने में कामयाब रहीं। इस चुनाव में भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन बनर्जी एक ऐसी सैनिक और कमांडर निकलीं जिन्होंने भगवा दल की चुनावी युद्ध मशीन को पराजित कर दिया। वह 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में कोलकाता दक्षिण सीट से लोकसभा सदस्य भी रह चुकी हैं।

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