इस बार राज्यसभा में नजर नहीं आएंगे मनमोहन सिंह!

Edited By Seema Sharma,Updated: 28 May, 2019 03:36 PM

manmohan singh will not be seen in rajya sabha

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के सामने कई संकट खड़े हो गए हैं। जहां एक तरफ राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का मन मना लिया है वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस बार राज्यसभा में नजर नहीं आएंगे।

नेशनल डेस्कः लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के सामने कई संकट खड़े हो गए हैं। जहां एक तरफ राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का मन मना लिया है वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस बार राज्यसभा में नजर नहीं आएंगे। मनमोहन सिंह का असम से राज्यसभा सांसद हैं और उनका कार्यकाल भी जून में खत्म हो जाएगा। मनमोहन सिंह जैसे नेता जिनको आर्थिक नीति पर विशेषज्ञता हासिल है, का संसद में न रहना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। असम विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की जो संख्या है उस हिसाब से मनमोहन सिंह की सीट नहीं बचाई जा सकती है। राज्यसभा का चुनाव 7 जून को है। मनमोहन सिंह के अलावा असम से ही एक और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद एस कुजूर भी 14 जून को रिटायर हो रहे हैं, इनकी सीट भी बीजेपी के खाते में जाना तय है।

इन संकटों से जूझ रही कांग्रेस

  • कांग्रेस के लिए जो सबसे बड़ा संकट उसके सामने आकर खड़ा हुआ है वो यह कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड़े हुए हैं और उन्होंने एक महीने तक नया विकल्प ढूंढने को कहा है।
  • इसी बीच मध्य प्रदेश और कर्नाटक की राज्य सरकारों पर संकट मंडरा रहा है। कर्नाटक कांग्रेस के नेता केएन रजन्ना का कहना है कि पीएम मोदी के शपथ लेते ही राज्य सरकार गिर जाएगी।
  • मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रही बीएसपी की विधायक का आरोप है कि भाजपा उन्हें अपनी तरफ आने के लिए 50 करोड़ रुपए का ऑफर दे रही है।
  • कांग्रेस के सामने हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव भी खड़े हैं। ऐसे में जो भी कांग्रेस का अध्यक्ष होगा उशके लिए इन राज्यों में नई जान फूंकने दारोमदार होगा।
  • वहीं एक और जो संकट कांग्रेस के सामने है वो यह कि अगले साल तक भाजपा राज्यसभा में भी पूर्ण बहुमत पा लेगी इसके बाद उसको अपने एजेंडे को लागू करने में रोकना आसान नहीं होगा। फिलहाल ज्यसभा में एनडीए के पास 102 सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन संप्रग के पास 66 और दोनों गठबंनों से बाहर की पार्टियों के पास 66 सदस्य हैं।

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