कब रुकेगा समुद्र में इंसानों का शिकार

Edited By ,Updated: 22 Jul, 2016 09:27 PM

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श्रीलंका ने बंदी बनाए गए भारत के 73 भारतीय मछुआरों को रिहा करने का फैसला किया है। हालांकि इसकी तारीख अभी तक नहीं बताई

श्रीलंका ने बंदी बनाए गए भारत के 73 भारतीय मछुआरों को रिहा करने का फैसला किया है। हालांकि इसकी तारीख अभी तक नहीं बताई गई है, लेकिन भारतीय उच्चायोग के हस्तक्षेप के बाद इन मछुआरों के रिहा होने की उम्मीदें बड़ गई हैं। इन मछुआरों पर आरोप था कि वे कथित रूप से उसकी समुद्री सीमा में प्रवेश कर गए थे। सामान्यत:यह कार्रवाई हर देश करता है और जांच पूरी होने के बाद मछुआरों को रिहा किया जाता है। खास बात यह हे कि श्रीलंका में कैद सैकड़ों मछुआरों को छुड़वाने के लिए चेन्नई में प्रदर्शन हो चुके हैं।

दिल दहला देने वाली कहानी
ये मछुआरे सिर्फ समुद्री लहरों का ही खतरा नहीं झेलते हैं। कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि निश्चित नहीं होता है​ कि ये जीवित वापस लौट पाएंगे या नहीं। कुछ ऐसी ही घटना गुजरात के मछुआरे के साथ हुई थी। वह गया तो था मछली पकड़ने, लेकिन लौटा तो उसका शरीर गोलियों से छलनी था। पाकिस्तान की समुद्री पुलिस ने उसे गोलियों से भून दिया था। पाकिस्तान के कराची के इब्राहीम हैदरी के हनीफ की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं है। जब वह पकड़ा गया था तो उसकी उम्र सिर्फ 16 साल थी। रिहा होने पर जब वह 23 साल बाद घर लौटा तो पीढ़ियां बदल चुकी थीं। उसकी भी उम्र ढल गई थी। वह अपने गांव की सिंधी जुबान करीब—करीब भूल चुका था। हिन्दी या गुजराती में बात करता था है। उसके नाती-पोते पूछते कि यह कौन है ? 

घुसपैठिया या जासूस 
जब गलती से एक देश के मछुआरे की नाव दूसरी तरफ चली जाती है तो उन्हें घुसपैठिया या जासूस बता दिया जाता है। फिर सजा पूरी होने के बाद भी रिहाई हो पाती है। जेल का नारकीय जीवन, वहां पहले से बंद कैदियों द्वारा उन्हें शक से देखना, स्तरहीन भोजन खाकर वे मछली पकड़ने से तौबा कर लेते हैं।

यह कैसी सीमा
भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान में साझा सागर के किनारे रहने वाले कोई डेढ़ करोड़ परिवार सदियों से मछलियों पकड़ कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। दोनों देशों का कच्छ के रन के पास सर क्रीक का विवाद अभी नहीं सुलझा है। वहां पानी से हुए कटाव की ज़मीन को नापना बहुत मुश्किल है। पानी से आए दिन ज़मीन कट जाती है। दोनों देशों के बीच की यह तथाकथित सीमा करीब 60 मील अर्थात 100 किलोमीटर के आसपास है। 

मुसीबतों का पहाड़ 
तूफान आने पर मछुआरों को पता ही चलता कि वे किस दिशा में जा रहे हैं। यही वजह है कि वे एक दूसरे के सुरक्षा बलों द्वारा पकड़ लिए जाते हैं। कुछ मारे भी जाते हैं। जरूरी नहीं कि घर तक सबकी खबर पहुंचे। बन्दरगाहों पर जहाज़ों की आवाजाही बढ़ने से गोदी के कई-कई किलोमीटर तक तेल रिसता है। शहरी सीवर डालने और कई तरह के प्रदूषण से समुद्री जीव तेजी से समाप्त हो रहे हैं। मछली पकड़ने के लिए मछुआराों को काफी दूर जाना पड़ता है। 

रिहाई का समय तय नहीं
खुले समुद्र में उनके लिए सीमाओं की तलाश करना असम्भव होता है। यदि दोनों देशों के बीच के कटु सम्बन्ध हैं तो शक और साजिशों का शिकार वे बन जाते हैं। तलाशी और पूछताछ के बाद तटरक्षक बल स्थानीय पुलिस को सौंप देता है। इन पर घुसपैठिए, जासूस, खबरी जैसे मुकदमे दर्ज होना आम बात हैं। वहां की भाषा का ज्ञान नहीं होने अदालत की बात नहीं समझ पाते है। कई बार इसके भयंकर परिणाम निकलते हैं। सालों बीत जाने के बाद सरकारों की इच्छा हुई तो ये रिहा हो पाते हैं। पाकिस्तान के मछुआरों  में एक आठ साल के बच्चे की कहानी बड़ी मार्मिक है। वह अपने पिता के साथ रिहा नहीं हो पाया क्योंकि उसके कागज पूरे नहीं थे। पाकिस्तान में भारतीय मछुआरों के साथ एक बच्चा भी ऐसे ही पकड़ा गया था। 

सवाल है कि निर्दोष मछुआरे कब तक इन परेशानियों को झेलते रहेंगे। यदि कहीं मछुआरे पकड़े जाएं और सरकारों में सूचनाओं का तत्काल आदन-प्रदान हो तो इनकी रिहाई पर तुरंत विचार होना चाहिए। कुछ महीनों पहले रूस के ऊफा शहर में भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई वार्ता के बाद दोनों देशों की जेलों में बंद मछुआरों की हो रही रिहाई के साथ ही ऐसी कई कहानियां सामने आईं। भारत ने अपने सीमावर्ती इलाके के मछुआरों को सुरक्षा पहचान पत्र देने, उनकी नावों को चिह्नित करने और नावों पर ट्रैकिंग डिवाइस लगाने का काम शुरू किया है। श्रीलंका और पाकिस्तान में भी ऐसे प्रयास हो रहे हैं।

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