आपकी भी उड़ गई है रातों की नींद और दिन का चैन, ये है रामबाण औषधी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Sep, 2019 07:28 AM

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ध्यान लगाना मन का वातानुकूलन है यानी पूरी आरामदायक अवस्था। हर कोई आराम चाहता है परन्तु हमें यह नहीं पता होता कि पूरी तरह आरामदायक कैसे महसूस किया जा सकता है। यहां हम सफलतापूर्वक ध्यान लगाने के तरीकों की खोज करेंगे। पहला तरीका

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ध्यान लगाना मन का वातानुकूलन है यानी पूरी आरामदायक अवस्था। हर कोई आराम चाहता है परन्तु हमें यह नहीं पता होता कि पूरी तरह आरामदायक कैसे महसूस किया जा सकता है। यहां हम सफलतापूर्वक ध्यान लगाने के तरीकों की खोज करेंगे। पहला तरीका है योग तथा शारीरिक कसरत के माध्यम से। जब हमारा शरीर कुछ विशेष तरह की मुद्राएं करता है किसी विशेष ताल के साथ तो इससे थोड़ी थकावट आती है और हमारा मन ध्यान की अवस्था में पहुंच जाता है। यदि आप पूरी तरह सक्रिय हैं या पूरा आराम करते हैं तो आप ध्यान नहीं लगा सकते परन्तु जिस स्थिति में शरीर को सही मात्रा में थकान मिलती है उस स्थिति तक यदि शरीर थका नहीं है उस नर्म संतुलन तक आप बिना किसी प्रयास के ध्यान की अवस्था में जा सकते हैं।  दूसरा तरीका है प्राण या श्वास प्रक्रिया के माध्यम से। श्वास संबंधी तकनीकों तथा प्राणायाम के माध्यम से मन शांत होता है और आप बिना किसी प्रयास के ध्यान की अवस्था में पहुंच जाते हैं। 

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तीसरा तरीका है इंद्रियों संबंधी आनंद के माध्यम से। हमारी पांच इंद्रियां हैं देखना, सुनना, किसी चीज का स्वाद लेना, सूंघना या छूना। पूरा संसार इन पांच तत्वों का संगम है- पृथ्वी, पानी, हवा, अग्रि तथा आकाश। आंखों का संबंध अग्रि तत्व से है, सूंघने का संबंध पृथ्वी तत्व से है, स्वाद का संबंध पानी तत्व से, सुनने का संबंध आकाश तत्व से और छूने का संबंध वायु तत्व से। आप इन इंद्रियों में से किसी के भी माध्यम से गहरी ध्यान की अवस्था में जा सकते हैं। किसी छुट्टी वाले दिन आराम से लेट जाएं तथा आकाश की ओर देखें या जब आप पूरी तरह संगीत सुनने में व्यस्त हों तो एक क्षण ऐसा आता है जब मन स्थिर हो जाता है।  कोई सोच नहीं रहती और आपको यह पता नहीं चलता कि आप कहां हैं और फिर आपकी कोई सीमाएं नहीं होतीं। आपको हर तरफ केंद्र का अनुभव होता है और दायरा कहीं नहीं होता। किसी भी प्रकार का आश्चर्य आपको उस स्थिति में ले जाता है। जब आपके अंदर से ‘वाह’ की आवाज निकलती है तो आपका मन वहां नहीं होता आपकी कोई सोच नहीं होती परन्तु सिर्फ आप होते हैं। यही स्थिति आपको ध्यान में ले जाती है।

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चौथा तरीका भावनाओं के माध्यम से है। सकारात्मक तथा नकारात्मक भावनाओं के माध्यम से आप ध्यान की अवस्था में जा सकते हैं। जब आप बुरी तरह निराशाजनक या गुस्से में होते हैं तो आप कहते हैं, ‘‘मैं सब छोड़ देता हूं।’’ 

इसका अर्थ है- यही है मैं इसे और अधिक नहीं ले सकता। ऐसे क्षणों में यदि आप निराशा या अवसाद की अवस्था में नहीं जाते तो आप पाएंगे कि एक ऐसा पल है कि आपकी कोई सोच नहीं है। आपका मन अभी भी स्थिर है। 

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पांचवां तरीका है बौद्धिकता। जानकारी तथा जागरूकता के माध्यम से इसे ज्ञान योग कहते हैं। आप आराम से बैठ जाएं और यह सोचें कि हमारा शरीर अरबों कोशिकाओं से बना है। आपके साथ कुछ घटित हो रहा है, आप उत्तेजित हो रहे हैं। कोई अंतरिक्ष के किसी अजायब घर में दाखिल हो रहा है या ब्रह्मांड के बारे में एक फिल्म देख रहा है। आपके अंदर गहराई में कुछ घटित हो रहा है। आप ऐसे अनुभव से तुरन्त बाहर नहीं आ सकते। यह लगभग असंभव हो जाता है क्योंकि आपके जीवन का संदर्भ तुरन्त बदल जाता है। जब आप ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में जागरूक होते हैं। आपके अंदर कोई परिवर्तन घटित होता है। 

ध्यान लगाना बहुत ही प्राकृतिक है। चाहे यह घर पर आप अपने साथ करें या पूरे ब्रह्मांड में किसी भी अन्य चीज के साथ। आपको सिर्फ यह जानने की जरूरत है कि गहराई तक आराम कैसे महसूस करना है। यदि आप एक मसाज टेबल पर हों तो आप क्या करेंगे? मसाज करने वाला अपना काम करता है और आप कुछ नहीं करते। ध्यान की अवस्था में भी कुछ ऐसा ही होता है। आप खुद कुछ नहीं करते जबकि आपको प्रकृति को अपना ध्यान रखने देना चाहिए। किसी भी तरह का प्रयास करें क्योंकि प्रयास के माध्यम से हम जो भी प्राप्त करते हैं वह भौतिक तथा सीमित होता है। प्रयास भौतिक संसार की भाषा है। यदि आप प्रयास नहीं करते तो आप पैसा नहीं कमा सकते या एक घर नहीं बना सकते, आप शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते तथा अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर सकते। कुछ भी अपने आप, बैठे-बिठाए तथा सोचने से नहीं होता। भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए आपको प्रयास करना पड़ता है परन्तु कुछ आध्यात्मिक प्राप्त करने के लिए आपको इस प्रक्रिया को बिल्कुल उलटा करने की जरूरत होती है यानी कोई प्रयास नहीं। बैठने के कुछ पल और बिल्कुल कोई प्रयास न करना आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए सभी प्रयासों को छोड़ देना चाहिए। तब आप कुछ ऐसा प्राप्त करते हैं जो बहुत बड़ा है। 
- श्री श्री रविशंकर

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