कहीं टूटकर बिखर न जाए महबूबा की पीडीपी

Edited By Monika Jamwal,Updated: 15 Jan, 2019 02:43 PM

mehbooba s pdp is on breaking mode

पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की मुसीबतें तब शुरू हुईं जब भाजपा ने पिछले साल जून में उनकी सरकार गिरा दी।

श्रीनगर : पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की मुसीबतें तब शुरू हुईं जब भाजपा ने पिछले साल जून में उनकी सरकार गिरा दी। पिछले सात महीनों में पी.डी.पी के 13 वरिष्ठ नेताओं, जिनमें सात पूर्व विधायक और मंत्री भी शामिल हैं, ने पार्टी छोड़ दी। विश्लेषकों को आशंका है कि दो बार मुख्यमंत्री रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद की ओर से 1999 में स्थापित पीडीपी, कहीं लोकसभा चुनावों से पहले टूटकर बिखर न जाए। राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की उम्मीद है।PunjabKesari
हाल ही में 5 जनवरी को विधायक जाविद मुस्तफा मीर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। मीर ने अभी अपनी योजनाओं का खुलासा नहीं किया है, जबकि पीडीपी के अन्य बागी नेशनल कॉन्फ्रेंस या फिर सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपल्स कॉन्फ्रेंस  में चले गए। इनमें पार्टी के दो वरिष्ठ नेता बशारत बुखारी और पीर मोहम्मद हुसैन भी शामिल हैं, जिनका फारूक अब्दुल्ला ने 19 दिसंबर को अपने श्रीनगर स्थित निवास पर बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया था।

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 दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद के कभी खास सहयोगी रहे हुसैन, 2017 में जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से ही महबूबा से नाराज थे। महबूबा के शासनकाल में बुखारी से भी कानून और संसदीय मामलों जैसे अहम विभाग छीन लिए गए थे। 7 जनवरी को अनंतनाग जिले के बिजबिहाडा क्षेत्र में अपने पिता की तीसरी पुण्यतिथि पर आयोजित एक सभा में महबूबा ने बागियों पर धोखा देने का आरोप लगाया।

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नागपुर मुख्यालय से मिलने का आरोप
उन्होंने कहा था कि आज जो लोग पार्टी पर उंगलियां उठा रहे हैं, वे सभी नागपुर आरएसएस मुख्यालय गए थे और वहां पीडीपी को तोडऩे की पेशकश की थी। उन्होंने मेरे लिए हमेशा परेशानियां खड़ी कीं। उनका इशारा पूर्व वित्त मंत्री अल्ताफ बुखारी की ओर था जिन्होंने 2016 में मुफ्ती सईद की मौत के बाद पीडीपी को कथित तौर पर तोडऩेे की कोशिश की थी। हालांकि बुखारी पीडीपी में बने हुए हैं पर पार्टी में महबूबा के खास माने जाने वाले नेताओं नईम अख्तर और पीरजादा मंसूर का खुलकर विरोध करते रहे हैं। बढ़ते असंतोष पर चर्चा करने के लिए 10 दिसंबर को बुलाई गई पार्टी की एक बैठक से उन्हें बाहर निकलना पड़ा। 

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पीपल्स कान्फ्रेंस को हुआ पीडीपी टूटने का लाभ

पीडीपी में टूट का सबसे ज्यादा फायदा पीपल्स कॉन्फ्रेंस को हुआ है। प्रभावशाली शिया राजनेताओं इमरान अंसारी और उनके चाचा आबिद अंसारी ने लोन के साथ गठबंधन किया है और साथ ही टंगमर्ग के पूर्व विधायक अब्बास वानी के भी लोन के साथ जाने की उम्मीद है। ऐसे में पीपल्स कॉन्फ्रेंस इस बार बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैए जिसने पिछले विधानसभा चुनावों में दो सीटें हासिल की थी।

PunjabKesari बागी सत्ता के भूखे
पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता, जिन्होंने मुफ्ती सईद के साथ पीडीपी का गठन किया था और फिर महबूबा मुफ्ती के साथ भी काम किया है, बागियों को सत्ता के लिए लार टपकाते मतलबी लोगों की जमात बताते हैं। वे कहते हैं कि अब चूंकि पार्टी सत्ता में नहीं है, तो पार्टी से उनका मतलब खत्म हो चुका है। आज जो पार्टी पर उंगलियां उठा रहे हैं, वे सभी नागपुर गए थे और पीडीपी को तोडऩे की पेशकश की थी।

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