Edited By vasudha,Updated: 02 Oct, 2019 10:29 AM
दिल्ली के वाल्मीकि मंदिर परिसर के एक कमरे में महात्मा गांधी रूके थे । उस बात को 72 साल बीत चुके हैं लेकिन उनसे जुड़ी यादों को आज भी उसी तरह संजो कर रखा गया है। उनका चरखा, मेज, लकड़ी से बना कलम स्टैंड...
नेशनल डेस्क: दिल्ली के वाल्मीकि मंदिर परिसर के एक कमरे में महात्मा गांधी रूके थे । उस बात को 72 साल बीत चुके हैं लेकिन उनसे जुड़ी यादों को आज भी उसी तरह संजो कर रखा गया है। उनका चरखा, मेज, लकड़ी से बना कलम स्टैंड, आसन और बिस्तर वैसा ही है, जैसा उन्होंने इसका इस्तेमाल किया था। महर्षि वाल्मीकि मंदिर में बायें तरफ गांधीजी का कमरा है।
बापू अप्रैल 1946 से जून 1947 के बीच 214 दिन यहां ठहरे थे। मंदिर की देखरेख करने वाले एक सहायक कृष्ण शाह विद्यार्थी ने बताया कि गांधीजी की 150 वीं जयंती के पहले ‘बापू आवास' को सजाया गया है और रंगरोगन किया गया है। उन्होंने कहा कि बुधवार की सुबह प्रार्थना और कीर्तन होगा और बाद में इस अवसर पर एक मार्च का आयोजन होगा। मंदिर के दायें तरफ एक एकड़ का भूखंड है। यहीं पर गांधीजी ने सभा की थी। आज यहां पर परिंदों का जुटान रहता है। वाल्मीकि सत्संग शिक्षा केंद्र मंडल के एक सदस्य हितेश वाल्मीकि ने बताया कि बहुत लोगों को पता नहीं है कि गांधीजी यहां 200 से ज्यादा दिन ठहरे थे।
बापू आवास के भीतर दिनेश वाल्मीकि ने दीवार के एक हिस्से की ओर इशारा किया, जहां का रंग काला है। उन्होंने कहा कि यह गांधीजी का ब्लैकबोर्ड था। वह पास की वाल्मीकि कॉलोनी के 60-70 बच्चों को अंग्रेजी-हिंदी सिखाते थे। उनका आसन, मेज, चरखा, लकड़ी का कलम स्टैंड आज भी उसी तरह से मौजूद है। ब्लैकबोर्ड के नीचे छोटे से बिस्तर पर गांधीजी की एक तस्वीर लगी है। बिस्तर को सफेद चादर से लपेट कर रखा गया है।
दीवार पर जवाहरलाल नेहरू, लार्ड माउंटबेटन, वल्लभभाई पटेल आदि नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें लगी हुई हैं । एक अन्य हिस्से में महर्षि वाल्मीकि, पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन और 2014 में मंदिर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लगी हुई है। 96 साल के राम कृष्ण पालीवाल बताते हैं कि गांधी जी समुदाय के लोगों के साथ बेहद घुलमिल गए थे । दूसरे लोग बस्ती के लोगों को अछूत मानते थे लेकिन गांधी उनके हाथों का बना खाना खाते थे। वह बताते हैं, ‘‘मुझे याद है, गांधीजी झाडू से अपना आंगन बुहारते थे ।उनकी दो बकरियां भी थीं जो मैदान में चरती रहती थीं और हम वहीं पर खेलते रहते थे।