मानसिक बीमारी से जूझ रहे कैदियों के अधिकारों की रक्षा राज्यों का कर्तव्य- NHRC

Edited By prachi upadhyay,Updated: 08 Aug, 2019 06:29 PM

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष जस्टिस एच एल दत्तू ने कहा किस मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे कैदियों के अधिकार की रक्षा करना राज्य सरकार का फर्ज है। जस्टिस दत्तू ने ये बात मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधी एक दिवसीय समीक्षा बैठक में कही।

नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष जस्टिस एच एल दत्तू ने कहा किस मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे कैदियों के अधिकार की रक्षा करना राज्य सरकार का फर्ज है। जस्टिस दत्तू ने ये बात मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधी एक दिवसीय समीक्षा बैठक में कही। उन्होने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने एक हालिया निर्णय के मुताबिक, मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 की धारा 103 के तहत मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं से जूझ रहे कैदियों के अधिकारों की रक्षा का कर्तव्य राज्य सरकारों का है। उन्होने मानसिक स्वास्थ्य पर जोर देते हुए कहा कि देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार को लेकर प्रयास किये गए हैं। लेकिन इस क्षेत्र में सुविधाओं की आवश्यकताओं और उपलब्धता के बीच एक बहुत बड़ा अंतर अभी भी बना हुआ है।

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NHRC के एक बयान में जस्टिस दत्तू के हवाले से कहा गया है कि, ‘मौजूदा वक्त में 13,500 मनोचिकित्सकों की आवश्यकता है लेकिन उपलब्ध केवल 3,827 मनोचिकित्सक ही हैं। 20,250 क्लीनिकल मनोवैज्ञानिकों की आवश्यकता है लेकिन केवल 898 ही उपलब्ध हैं। इसी तरह, पैरामेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी है। उन्होंने कहा कि केवल 19 राज्यों ने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम को लागू किया गया है। देश में 10.6 प्रतिशत वयस्क आबादी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से ग्रस्त है, जो एक बड़ी संख्या है। उन्होंने इसे आयोग के लिए गंभीर चिंता का विषय बताया।

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