घर लौट रहे प्रवासियों ने सुनाई आपबीती: कहा, बीमारी नहीं भूख हमें मार डालेगी

Edited By shukdev,Updated: 29 Mar, 2020 05:47 PM

migrant laborers returning home said they will die of hunger before any disease

कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लागू बंद के बीच पैदल ही अपने घरों की ओर लौट रहे कुछ प्रवासी मजदूरों का कहना है कि अगर वे यहां रहे तो किसी बीमारी से पहले भूख से मर जाएंगे। ऐसे ही प्रवासी मजदूरों में सावित्री भी है जो...

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लागू बंद के बीच पैदल ही अपने घरों की ओर लौट रहे कुछ प्रवासी मजदूरों का कहना है कि अगर वे यहां रहे तो किसी बीमारी से पहले भूख से मर जाएंगे। ऐसे ही प्रवासी मजदूरों में सावित्री भी है जो पैदल ही दिल्ली से 400 किलोमीटर दूर उत्तरप्रदेश के कन्नौज अपने पैतृक गांव जा रही है। 30 वर्षीय सावित्री राजौरी गार्डन की मलिन बस्ती में रहती थी। वह बताती है, लॉकडाउन की वजह से नौकरी छूट गई और दो छोटे बच्चों को खिलाना मुश्किल हो गया, इसलिए उन्हें पैदल ही अपने गांव जाने का कठिन फैसला लेना पड़ा। 

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सिर पर सामन की गठरी लेकर मथुरा राजमार्ग पर चल रही सावित्री ने बताया,‘लोग कह रहे हैं कि किसी वायरस से हमारी मौत हो जाएगी। मैं यह सब नहीं समझती। मैं मां हूं और मुझे दुख होता है जब बच्चों को खाना नहीं खिला पाती। यहां कोई मदद करने वाला नहीं है। सभी को अपनी जान की चिंता है।' सावित्री उन लाखों प्रवासी मजदूरों में है जिनका एकमात्र लक्ष्य यथा शीघ्र किसी भी सूरत में अपने गांव- घर पहुंचना है। हालांकि, फंसे हुए लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार ने बसों का इंजताम किया है लेकिन कई लोगों ने पैदल ही चलने का फैसला किया। 

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कुछ बसों की व्यवस्था की भी गई तो उनके छत तक पर लोगों की भीड़ देखने को मिली। भयभीत कामगार अपने घरों की ओर लौट रहे हैं जबकि सरकार ने इनके पलायन को रोकने के लिए आश्रय गृह बनाए हैं। इन मजदूरों पर बीमारी से ज्यादा लॉकडाउन का भय है जिसकी वजह से संक्रमण से बचने के लिए सामाजिक दूरी, मास्क पहने, हाथ धोने जैसे एहतियात भी बरत नहीं पा रहे हैं। 

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बदरपुर बॉर्डर के नजदीक इस्माइलपुर में रहने वाला 25 वर्षीय अशोक निर्माण कर्मी है और पीठ पर जरूरी सामान लेकर पैदल अपने गृहनगर हरदोई जा रहा है। गले में पहचान पत्र है ताकि पुलिस के रोकने पर वह दिखा सके। जब उनसे पूछा गया कि वह कब तक घर पहुंचने की उम्मीद कर रहा है तो अशोक ने कहा,‘ मैं नहीं जानता, लेकिन कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। मैं अकेला मरना नहीं चाहता। मैं बेरोजगार हूं और इतनी बचत नहीं कि यहां गुजारा कर सकूं। इससे बेहतर है कि घर जाकर खेती करूं, अगर खुशनशीब रहा और जिंदा रहा। 

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एक अन्य दैनिक वेतनभोगी महेश जो लोकनिर्माण विभाग के साथ कम करता था, अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ 440 किलोमीटर दूर झांसी जिले स्थित अपने गांव पैदल ही जाने को प्रतिबद्ध है। कई किलोमीटर चलने के बाद राजमार्ग पर उसे खाने को कुछ पैकेट मिले जिससे दिन में पहली बार मुंह में निवाला गया।

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